आई.आर.डी.पी का झोल एक व्यंग्य !

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वह चीखना चाह रहा था, पर चीख गले से बाहर  निकल नहीं पा रही थी।  ऐसा लग रहा था मानो प्राण निकलने ही वाले हों। छटपटाता हुआ कमलू  किसी तरह उन मजबूत हाथों को गले से परे हटाने में कामयाब हो गया जो उसके गले  को जकड़े हुए थे।  वह झटके से उठकर बैड पर बैठ गया। सांस घोकनी से भी तेज चल रही थी।   घुप्प अंधेरे में  कम्मो के खर्राटों के बीच  दीवार पर टंगे टीवी के नीचे का लाल बिंदु   उसे किसी  रेड सिग्नल की तरह दिखाई दे रहा था । अपने माथे पर उभर आयी पसीने की बूंदों को  पोंछते हुए उसे एहसास हुआ कि  पसीने से कपड़े भी भीग चुके हैं। सूखे गले को  पानी से तर करने में लौटा खाली हो चुका था  पर वह भयानक और  अजीबो गरीब  सपना दिलो दिमाग से नहीं उतर रहा था।
   
 ऐसे में नींद कैसे आती। घड़ी की टिक टिक और अंधेरे में अधखुली आंखों में  अब भी वह सपना  किसी  चल चित्र की भांति चल रहा था। ऐसे कैसे हो सकता है  ?   प्रधान  कैसे मुझे अाई आर डी पी से बाहर कर सकता है? आखिरकार मैंने ही तो  उसे जितवाने के लिए मेहनत की थी।  नंदू अपनी जात  बिरादरी  का था पर प्रधान के लिए तो अपनी बिरादरी  से भी पंगा  ले लिया था। भले ही पैसे प्रधान ने दिए ही पर मेरी हिम्मत थी कि हर जगह चोरी छुपे शराब पहुंचाई। रात दिन एक किए थे। ये सिर्फ सपना है, प्रधान ऐसा नहीं कर सकता है आखिरकार उसको फिर से चुनाव भी तो लड़ना है, ये ठीक है कुछ लोगों ने शिकायत की है I किसी गरीब की जगह मेरे अाईअारडीपी में होने को लेकर है,  पर शिकायत कहां नहीं होती है।   और आज की दुनिया में गरीब  है भी कौन ?
          वो तो पिता जी थे गजेटेड ऑफिसर थे, में थोड़े ना हूं।  मेरे पास कोई सरकारी नौकरी नहीं है । रहते साथ है पर  कागजों में   मां बाप से खुद का खाता अलग  भी  तो अलग कर दिया है। कार मेरे पास है  जरूर है पर वो भी तो माता जी के नाम पर है।  पटवारी से लो  इनकम का सर्टिफिकेट बनाना कोई खाला जी का  बाड़ा थोड़े ना था। ऐसी सेवा पानी की थी कि भाई अभी भी सलाम ठोकता है। पक्के मकान के साथ पुरानी रसोई को अपना मकान दिखाकर कोई गैर कानूनी थोड़े ना किया है। वो भी तो हमारी ही है। मैं अकेला थोड़े ना हूं  गांव में ऐसे कितने ही और लोग भी तो हैं जिन्होंने ऐसा किया है। पीले बोर्ड से क्या फर्क पड़ता है रसोई के बाहर टंगा हुआ है कोन देखता है उसे?   नहीं नहीं ये सिर्फ सपना है   वहम है । वास्तव में प्रधान कभी ऐसा नहीं करेगा। यार बेली है , परसों ही तो खाई पी है साथ में अब ऐसे क्यों करेगा?
     मन को इतना दिलासा दिए जाने के बाद भी घबराहट कम नहीं हो रही थी। क्या होगा अगर गरीबी के सर्टिफिकेट से नाम कट गया तो?  यह सोचते ही पसीने कि बूंदे  एक बार फिर  से माथे पर उभर  आयी।   आंखें बंद होने के बजाय अधिक चौड़ी होती जा रही थी । प्रधानमंत्री आवास योजना  के तहत घर बनाने के नाम की अभी तो  पहली  ही  किस्त  ली है। नाममात्र के खर्च पर  25 किलो का राशन,  ऐश्वर्या और  समृद्धि की पढ़ाई पर कोई खर्च नहीं वो भी एमए तक , मुफ्त का गैस सिलेंडर, कम्मो को नरेगा में काम करने की प्रथमिकता, काम काहे का वहां सब मिलकर गप्पे ही तो मारती हैं।  सुना है एक मनरेगा मजदूरों के लिए एक स्कीम भी अाई है जिसमें मुफ्त साईकल, वाशिंग मशीन,  टीवी , मुफ्त इलाज , पैंशन और बेटियों की शादी में 51,000 रुपए भी मिलेंगे। ऊपर से भला हो मोदी जी का कुछ ना कुछ टाइम बाद कम्मो के साथ साथ मेरे खाते में भी  2000 रुपए डाल देती है। और पांच लाख का इलाज भी मुफ्त है।   इस से अच्छे दिन और क्या आएंगे।  
         बड़ा आया रमेश, बड़े ताने दे रहा  था कि प्राईवेट में नौकरी करता है वो भी 40,000 की।  अब आया मजा ,जब से कोरोना फैला है तब से घर बैठा हुआ है। सुना है तनख्वाह भी नहीं मिल रही है। बेटे बेटी की फीस  देने के लिए पैसे नहीं बचे हैं।  प्रधान से उधार मांग रहा था।  प्रधान ही बता रहा था कि कमबख्त  को रो ना पता नहीं कब तक चलेगा। पता नहीं लौटा भी पाएगा की नहीं।  और भी है 15-20 लोग जो वापिस आए है बड़े बड़े शहरों से । सुना है उनके  यहां भी लाले पड़े हुए है।  आजकल प्रधान के साथ कुछ ज्यादा ही गलबहियां डाल कर घूम रहे थे। हां कहीं प्रधान को खिला पिला कर मेरा नाम कटवा कर अपना नाम ना लिखवा दें।  सतर्क रहना पड़ेगा। प्रधान का कोई भरोसा नहीं । जब से मुआ प्रधान बना है तबसे पैसे का पीर हो गया है। सुना है सुबह का सपना सच भी हो जाता है। पसीने की बूंदे फिर माथे पर उभर आयी।  बाहर पक्षियों कि चहचहाट शुरू हो गई थी।

 तारा बीड़ी के बंडल को हाथों में  लिए  कमलू के कदम  प्रधान के घर की तरफ तेजी से बढ़ रहे थे।

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