बोधकथा का तात्पर्य एवं महत्व

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हमारे धर्म शास्त्रों और वेदों में ऋषि-मुनियों द्वारा मनुष्य की जीवन शैली के अनेक  प्रेरक  प्रसंग तथा गूढ़ ज्ञान वेदों और शास्त्रों में लिखे गए हैं परंतु यह आम जन के लिए नीरस और कठिन होते हैं तथा यह उनके जीवन को उनके जीवन को प्रभावित प्रभावित नहीं करते हैं यदि इसी ज्ञान को और उपदेशों को कथा के रूप में प्रस्तुत किया जाए तो यह रोचक ही नहीं बल्कि मनुष्य के जीवन  में गहरी छाप छोड़ते हैं तथा जीवन शैली को खुशहाल बनाते हैं इन कथाओं में रोचकता मनोरंजन कुतूहल शिक्षा हश्य  चेतावनी प्रेरणा आदि का समावेश रहता है। बालक किशोर इन कथाओं के प्रति विशेष आकर्षण होता है तथा इससे उनके  कोमल और भावुक मन पर गहरी छाप पड़ती है। बड़ी आयु वर्ग के लोगों को किसी गंभीर बात का दृष्टांत बोध कथाओं के सात समझाया जाए तो ना केवल उन्हें लाभ होता है अपितु आनंद भी आता है जैसे उनके जैसे रत्नाकर नाम के दस्यु ने अपना भरण पोषण करने के लिए   डाका डालने तथा राहगीरों को लूटने का कार्य करता था जब उसको देव ऋषि नारद जी ने पाप कर्म का बोध कराया तो उसने दस्यु  प्रवृत्ति  छोड़ कर राम नाम का आश्चर्य लिया। और बाद में वह बाल्मीकि महर्षि के नाम से  प्रसिद्ध हुए और उन्होंने आदिकाल रामायण की रचना की।

बोध कथा की महता की अनादि काल से स्थापित है । प्राचीन काल में विद्यार्थी श्रद्धा भक्ति से युक्त गुरुकुल आश्रम में रहते थे और गुरु मुख से ज्ञान और विद्या को अर्जित करते थे। गुरु जन गुड़ विषयों के ज्ञान को बौद्ध दायक व अनुभवों को बोध कथाओं के माध्यम से  समझाते थे। पुराने समय से अनेक विद्वानों द्वारा रचित बोध कथाओं के ग्रंथ पाए जाते हैं। श्री  विष्णु शर्मा द्वारा रचित पंचतंत्र ( लगभग तृतीय कीजिए सदी)  कश्मीर के पंडित सोमदेव कृत कथा सरित सागर , श्री नारायण पंडित द्वारा रचित हितोपदेश , सिहासन बत्तीसी के नाम से तथा बेताल पच्चीसी आदि प्रमुख ग्रंथ है व्यवहार नीति का बोध कराने वाली कथाओं के प्रमुख पंचतंत्र के  अनुसार  की तरह बना लोकप्रिय ग्रंथ हितोपदेश है। इस ग्रंथ की रचना लगभग 11वीं सदी में  मांडलिक राजा धवल चंद्र के आश्रित नारायण पंडित द्वारा की गई । इस ग्रंथ के प्रारंभ में राजा सुदर्शन एवं उसके अल्प बुद्धि पुत्रों की एक बोध कथा दी गई है।  जो संक्षेप इस प्रकार है।

पाटलिपुत्र नगर में सुदर्शन नाम राम का राजा था उसके पुत्र युवा थे राजा के पुत्र होने के कारण धन संपत्ति से परिपूर्ण थे। इसके साथ प्रभुता के कारण अहंकारी और अविवेकी भी थे अर्थात  महामूर्ख थे। राजा अपने पुत्रों को विद्वान और समझदार बनाना चाहता था। राजा ने बहुत प्रयास किए मगर सफलता नहीं मिली राजा को बड़ी चिंता हुई उसने किसी से सुन रखा था कि  युवावस्था धन-संपत्ति प्रभुता अर्थात अहंकार और मूर्खता इन चार दोस्तों में से चार दोषों में से  यदि एक भी किसी में आ जाए तो का कारण होता है यदि चारों बातें एक साथ हो तो मनुष्य की दशा दयनीय होगी। राजा बहुत चिंतित हो उठा क्योंकि उसके पुतपुत्रों में सभी बुराइयां थी। राजा ने विद्वानों की सभा बुलाई और उचित उपाय बताने को कहा सभा में विष्णु शर्मा नाम के एक पंडित ने राजा को  आश्वस्त किया या उसने राजा के मूर्ख पुत्रों को पशु पक्षी आदि की कथा से सुबोध बनाने का प्रयास किया हितोपदेश में इनी कथाओं का  संग्रह है जिनसे या शहज ही समझा जा सकता है की बोध कथाओं द्वारा अल्प बुद्धि बालक भी सहज ही नीति विशारद बन सकते हैं इसलिए राजकुमारों को राजकुमारों को कोई भी शिक्षक शिक्षक व्यवहार व्यवहार – नीति का का बोध ना कर सका , उनको श्री विष्णु शर्मा ने बोध कथाओं के माध्यम से मात्र छे  महा मे सहज ही सु मार्ग पर लाकर नीति- विशारद बना दिया, से राजा बहुत  प्रसन्न हुआ। वर्तमान में  ऐसी बोध कथाओं के तात्पर्य को अपने जीवन में आचरण करने से समाज में प्रेम और अहिंसा का परिवेश बन सकता है। विश्व के परस्पर विरोधी राष्ट्रों में भी एक दूसरे के प्रति मैत्री भाव हो सकता है  इस प्रकार अनेक दृष्टि से इन बोध कथाओं का बड़ा ही महत्व है।

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