भारत और नेपाल के रिश्तों मे आई खटास खत्म की जानी चाहिए

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नेपाल हमारा पड़ोसी देश है। उसके साथ हमारे आज तक बड़े भाई और छोटे भाई जैसे रिश्ते रहे है। नेपाल भले एक छोटा देश है परन्तु उसे यह श्रेय प्राप्त है कि इसने कभी भी गुलामी का स्वाद नही चखा है। 2006 तक नेपाल विश्व का एक मात्र हिंदू राष्ट्र था। भारत की तरह वहां कि आबादी का बहुमत हिंदू धर्म मे विश्वास रखने वाला है। भले अब वहां का राज्य सेकुलर हो गया है परन्तु धर्म परिवर्तन पर पूर्ण प्रतिबंध है। जब वहां राजतंत्र था तो वहां का राज परिवार हिंदू धर्म मे पूरी तरह आस्था रखने वाला था। राजा वीरेन्द्र की परिवार सहित हत्या और उसके उतराधिकारी छोटे भाई ज्ञानेन्द्र के प्रति जनता मे रोष का लाभ उठाते हुए कम्युनिस्ट विचारधारा से प्रभावित लोगों ने हिंसक आन्दोलन के द्वारा राजा ज्ञानेन्द्र का तख्ता पलट दिया था । आज वहां कम्युनिस्ट पार्टी सत्ता मे है।

हमारे नेपाल से बहुत ही प्रगाढ सामाजिक रिश्ते रहे है। वहां के राज परिवार के भारतीय राज परिवारों मे शादी के कई उदाहरण है। हिमाचल की पहाड़ी रियासतों के राजपरिवारों की रिश्तेदारियां नेपाल राज परिवार से है। आम जन मे रोटी और बेटी नेपाल के साथ सांझी है।कुछ लोगों का तो यह भी विश्वास है कि नेपाल के साथ हमारे रिश्ते रामायण काल से है। ऐसा विश्वास करने वालो का कहना है कि माता सीता का ननिहाल नेपाल मे था। लाखों नेपाली भारत मे बसे हुए है। रोजगार के लिए भी लाखों नेपाली भारत आते है। लगभग 32000 नेपाली गोरखा रेजीमेंट मे सेना मे सेवारत है। उनका बड़ा ट्रेनिंग सेंटर हिमाचल प्रदेश के जिला सोलन स्पाटू मे स्थित है। भारत के लोग नेपाली मूल के लोगों का बड़ा आदर करते है। भारतीयों की नजर मे गोरखा ईमानदार और बहादुर होता है।

हिमाचल मे सेब और टमाटर की फसल मे नेपाली मूल के नागरिकों का भारी योगदान है। नेपाल के साथ आई खटास के चलते सेब उत्पादकों और टमाटर उत्पादकों को चिंता होनी स्वभाविक है। नेपाल मे कम्युनिस्ट पार्टी के सत्ता मे होने के कारण नेपाल की चीन के साथ नजदीकीयां बढ़ गई है। नेपाल को भारत से दूर करने के लिए चीन की भूमिका जगजाहिर है। वर्तमान मे नेपाली प्रधानमंत्री के पी ओली को चीन समर्थक समझा जाता है। हाल ही मे नेपाल ने अपने नये नक्शे जारी किए है और जिसमे भारतीय जमीन को नेपाली नक्शे मे दर्शाया गया है। उन नये नक्शों को संवैधांनिक संशोधन कर मान्यता भी प्रदान कर दी गई है। नेपाल की यह सारी कार्यवाई चीन से प्रेरित मानी जा रही है।

हालांकि नये नक्शों की मान्यता को सर्वसम्मति से पास करने का दावा किया जा रहा है, परन्तु जनता समाजवादी पार्टी की सदस्य और लाॅ मेकर सरिता गिरी ने अपनी पार्टी के विहिप का उल्लंघन करते हुए इस प्रस्ताव का जबरदस्त विरोध किया है। सरिता गिरी ने अलग से अपना संशोधन संसद के सचिवालय मे दे कर मांग की है कि पुराने नक्शों की मान्यता बनी रहनी चाहिए। उनका कहना है कि ऐसा कोई साक्ष्य उपलब्ध नही है जिससे यह सिद्ध होता हो कि लिमयाधुहरा, लिपु लेख और काला पानी नेपाली हिस्सा हो। सरिता गिरी अपने स्टैन्ड पर डटी रही। हालांकि इसके लिए उन्हें अपनी पार्टी की सदस्यता और संसद मे लाॅ मेकर की सीट से हाथ धोना पड़ा है।

दुसरी तरफ वहां के छात्र संगठन भी चीन के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे है। वह चीनी ऐम्बेसडर के नेपाल के आतंरिक मामलों मे दखल का विरोध कर रहे है। चीन एक विस्तार वादी देश है। आज कल वह भारत के साथ लगते छोटे देशों को खुले हाथ से ऋण दे रहा है। भारत मे पुराने साहूकार किसान को खूब ऋण दिया करते थे और नजर किसान की जमीन पर हुआ करती थी। चीन की नीति लगभग साहुकारों वाली नीति है और छोटे देशों को हड़पने की नियत है। आज नेपाल चीन के हाथों मे ही नही बल्कि आग के साथ खेल रहा है। चीन विस्तारवादी देश के साथ विश्वासघाती देश भी है। नेपाल को चीन पर विश्वास करने की बड़ी कीमत देनी पड़ सकती है।

नेपाल भारत का छोटा भाई है। भारत का कर्तव्य है कि हम अपने सम्बन्धों को बिना देर किए सुधारे। हमारा यह फर्ज है कि हम नेपाल को चीन के नापाक इरादों से सावधान करे। नेपाल को भी तिब्बत और हांगकांग के हालात से सीख लेनी चाहिये। भले आज नेपाल की सरकार और प्रधानमंत्री के पी ओली चीन के प्रति सहानुभूति रखते है, परन्तु सरकारें और प्रधानमंत्री तो आते जाते रहते है। नेपाली जनता भारत से प्रेम करती है। कितने ही नेपाली फौजी भारत की रक्षा करते हुए शहीद हो चुके है। इन सब बातों का ध्यान करते हुए हम और नेपाल को अपने मधुर रिश्तों को पुनर्स्थापित करना चाहिए।

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