THE NEWS WARRIOR
14 /04 /2022
बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर का जीवन संघर्ष और सफलता की ऐसी अद्भुत मिसाल
जाति व्यवस्था की बुराइयों के बीच जन्मे बाबासाहेब ने बचपन से ही उपेक्षा और असमानता का आघात झेला
अपनी असीम इच्छाशक्ति और मेहनत के बल पर उन्होंने एक आधुनिक भारत के निर्माण में बहुत बड़ा योगदान दिया
बाबा साहेब जयंती विशेष :-
हम किस जाति में पैदा हुए है, ये बात मायने नहीं रखती है, इस बात को डाॅ. बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर ने साबित किया है, डाॅ. बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर एक ऐसे इन्सान थे जिनका जन्म एक अछूत जाति में हुआ था, इन्होने अपनी पूरी जिंदगी अनसूचित जातियों को उनका हक़ दिलाने में बिता दिया, लेकिनडाॅ. बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर पूरी तरह से सफल नहीं हुए, लेकिन इनके मेहनत, सफलता की आज भी मिशाल दी जाती है, डाॅ. बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर की लाइफ हिस्ट्री बहुत ही मजेदार है,
अम्बेडकर का जीवन संघर्ष
बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर का जीवन संघर्ष और सफलता की ऐसी अद्भुत मिसाल है जो शायद ही कहीं और देखने को मिले.भारत में जाति व्यवस्था की बुराइयों के बीच जन्मे बाबासाहेब ने बचपन से ही उपेक्षा और असमानता का आघात झेला। कोई आम आदमी इन आघातों से कमजोर पड़ जाता पर बाबासाहेब तो कुछ अलग ही मिटटी के बने थे; इन आघातों ने उन्हें वज्र सा मजबूत बना दिया और अपनी असीम इच्छाशक्ति और मेहनत के बल पर उन्होंने एक आधुनिक भारत के निर्माण में बहुत बड़ा योगदान दिया।
देश के विकास का सपना
अपनी असीम इच्छाशक्ति और मेहनत के बल पर उन्होंने एक आधुनिक भारत के निर्माण में बहुत बड़ा योगदान दिया। उन्होंने विज्ञान और तकनीक के जरिये देश के विकास का सपना देखा था। हम सम्मान से उन्हें बाबा साहब कहते हैं। उनकी जिंदगी से जुड़े अनेक किस्से हैं। उन्हीं में से एक किस्सा है उनके नाम में ‘अंबेडकर’ जुड़ने का। बहुत कम लोगों को पता होगा कि डॉ. भीमराव का सरनेम पहले ‘सकपाल’ था। बाद में उनका सरनेम आंबेडकर हुआ, जिसके बाद उनका पूरा नाम डॉ. भीमराव अंबेडकर लिखा जाने लगा। आइये आपको बताते हैं डॉ. भीमराव के अंबेडकर बनने का किस्सा।
पहले सरनेम था ‘सकपाल’
डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्यप्रदेश के छोटे से गांव महू में हुआ था। 6 दिसंबर 1956 को 65 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया। बाबा साहब के पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और माता का नाम भीमाबाई था। इस वजह से शुरू में उनका सरनेम सकपाल था। अब सवाल उठता है कि फिर उनका सरनेम अंबेडकर कैसे हुआ
कैसे मिला आंबेडकर’ सरनेम
अब बाबा साहब का उपनाम आंबडवेकर था। बाबासाहब से कृष्णा महादेव आंबेडकर नामक एक ब्राह्मण शिक्षक को विशेष स्नेह था। इस स्नेह के चलते ही उन्होंने बाबा साहब के नाम से ‘अंबाडवेकर’ हटाकर उसमें अपना उपनाम ‘आंबेडकर’ जोड़ दिया। इस तरह उनका नाम भीमराव आंबेडकर हो गया, जिसके बाद उन्हें अंबेडकर बोला जाना लगा। बताया जाता है कि 1898 में पुनर्विवाह के बाद वे परिवार के साथ बंबई यानी मुंबई चले गए। वहां एल्फिंस्टन रोड स्थित गवर्नमेंट हाईस्कूल के पहले ऐसे छात्र थे, जिसे उस समय अछूत माना जाता था।
नई तकनीक के इस्तेमाल के थे पक्षधर
बताया जाता है कि बाबासाहब नई तकनीक के इस्तेमाल के पक्षधर थे। डॉ. अंबेडकर देश के तकनीकी विकास के लिए संकल्पित थे। उन्होंने पहले संसदीय चुनाव (1951-52) के पहले घोषणापत्र में कहा था कि खेती में मशीनों का प्रयोग होना चाहिए। भारत में अगर खेती के तरीके आदिम बने रहेंगे, तो कृषि कभी भी समृद्ध नहीं हो पाएगी। मशीनों का प्रयोग संभव बनाने के लिए छोटी जोत की बजाय बड़े खेतों पर खेती की जानी चाहिए
डॉ भीमराव अम्बेडकर के अनमोल विचार
भारत के संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अम्बेडकर (बाबा साहेब) के अनमोल विचार उनके आदर्शों को दर्शाते हैं, जिसकी वजह से लोग आज भी उन्हें याद करते है | भीम राव अम्बेडकर (बाबा साहेब) अपने वचनो में कहते थे ‘शिक्षित बनो !, संगठित रहो!, संघर्ष करो!’ भीमराव अम्बेडकर के अनमोल वचन इस प्रकार से है-
“आदि से अंत तक हम सिर्फ एक भारतीय है।”“हम जो स्वतंत्रता मिली हैं उसके लिए क्या कर रहे हैं? यह स्वतंत्रता हमें अपनी सामाजिक व्यवस्था को सुधारने के लिए मिली हैं। जो असमानता, भेदभाव और अन्य चीजों से भरी हुई है, जो हमारे मौलिक अधिकारों के साथ संघर्ष करती है।”
“स्वतंत्रता का अर्थ साहस है, और साहस एक पार्टी में व्यक्तियों के संयोजन से पैदा होता है।”
” शिक्षा महिलाओं के लिए भी उतनी ही जरूरी है जितनी पुरषों के लिए।”
यह भी पढ़े :-
चम्बा में नहीं थम रहा सड़क हादसों का दौर