प्रत्यूष शर्मा
प्रत्यूष शर्मा एक स्वतंत्र लेखक हूँ
जिनके लेख विभिन्न समाचार पत्रों
और पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं।
आजकल समाज में एक ट्रेंड चल रहा है कि पड़ोसी का बच्चा इंजीनियरिंग कर रहा है तो हमारा बच्चा भी इंजीनियरिंग ही करेगा , इसी को भेड़ चाल कहा जाता है। बच्चे अपने क्षेत्र में या अपने लक्ष्य में क्यों सफल नहीं हो पाते, इसका एक कारण यह भी है कि प्रदेश में या देश में अभिभावक अपनी मर्जी बच्चों पर थोपना चाहते हैं।
चाहे बच्चे का रुझान खेलों की तरफ हो, या फिर बच्चा औसत स्तर का हो, फिर भी अभिभावक चाहेंगे कि अगर पड़ोसी का बच्चा विज्ञान संकाय ले रहा है, तो हमारा बच्चा भी विज्ञान संकाय ही लेगा। फिर चाहे बच्चे को उस विषय के बारे में कुछ समझ नहीं आए। इसका परिणाम, बच्चे को पढ़ाई बोझ लगने लगती है और वह अवसाद से भी ग्रसित हो जाता है। जिससे बच्चे आत्महत्या जैसा कदम उठाते हैं।
हर वर्ष कोटा, राजस्थान जो मेडिकल और इंजीनियरिंग कोचिंग का हब माना जाता है, अकसर बच्चों की आत्महत्या का समाचार सुनने या पढ़ने को मिलता है। इससे बचने के लिए हमें यह देखना चाहिए कि हमारे बच्चों का रुझान किस क्षेत्र में है और कोशिश करनी चाहिए कि उसी क्षेत्र में बच्चे को आगे उच्च शिक्षा दी जाए, जो बच्चे को पसंद हो। जबरदस्ती अपनी मर्जी न थोपें क्योंकि बच्चों के साथ जबरदस्ती करके, बच्चा अरुचि से पढ़ेगा, तो उसे सफलता कहां मिलेगी। हर क्षेत्र में जोखिम है।आपको बस ये देखना है कि आपको कौन सा क्षेत्र रोचक और काम करने योग्य लगता है।
हर व्यक्ति में एक खूबी होती है, अभिभावकों को चाहिए कि वह उस खूबी को पहचानें और बच्चे को उसी क्षेत्र में आगे बढ़ाएं। बच्चों के माता पिता के प्रति कुछ कर्तव्य हैं। बच्चों को यह समझना चाहिए कि कैसे माता-पिता इस गला काट महंगाई के दौर में हमें पढ़ा रहे हैं। माता-पिता मेहनत और खून पसीने की कमाई को बच्चों की शिक्षा पर लगा रहे हैं तो बच्चों का भी यह फर्ज बनता है कि वह मन लगाकर पढ़ाई करें और कुछ बड़ा और अच्छा बनकर माता-पिता का नाम रोशन करें । कुछ बच्चे स्कूल कॉलेज में गलत आदतों में फंस जाते हैं और खुद को बर्बाद कर लेते हैं । ऐसे बच्चे घर में झूठ बोलकर माता-पिता के खून पसीने की कमाई अय्याशी में उड़ाते हैं । आज कल 11- 12 साल के बच्चे भी नशा कर रहे हैं इसीलिए माता-पिता को चाहिए कि बचपन से ही बच्चों को अच्छे संस्कार दें ताकि बच्चे गलती से भी गलत आदत में ना पड़ें। बच्चों पर पैनी नजर रखें
यदि कोई संदिग्ध गतिविधि लगे तो तुरंत बच्चों से पूछताछ करें । बच्चों में अभिभावकों का डर होना बहुत जरूरी है ताकि कोई भी गलत काम करने से पहले सौ बार सोचें।
अपने बच्चे सभी को प्यारे और अच्छे लगते हैं, लाड़- प्यार करें पर एक सीमा में रहकर ज्यादा लाड प्यार से बच्चे अक्सर बिगड़ जाते हैं । अभिभावकों को चाहिए कि वो अपने बच्चों की मित्र मंडली पर भी पूरा ध्यान रखें और कुसंगति से दूर रखें । 15 से 25 वर्ष तक की आयु एक ऐसी समय अवधि है जब बच्चे के बिगड़ जाने की संभावना ज्यादा रहती है। अगर इस आयु में बच्चा संभल गया तो समझ लो कि वह भविष्य में अच्छा नागरिक बनेगा और देश और प्रदेश के विकास में अपनी भूमिका अच्छे से निभाएगा ।
मैट्रिक से लेकर 25 वर्ष तक का समय वह स्वर्णयुग होता है जिसमें आप अपने हाथों अपना भविष्य लिखते हैं ये एक ऐसी समय अवधि होता है जहाँ आप कड़ी से कड़ी मेहनत और बुद्धि के दम पर एक अच्छा मुकाम हासिल कर सकते हैं वहीँ दूसरी तरफ हम इस उम्र में मौज मस्ती में भी काफी समय व्यतीत करते हैं, वक्त गुजर जाता और समझ तब आता है जब जिम्मेवारी और दायित्व का बोझ सिर पर होता है ।
25 वर्ष की आयु के बाद बच्चे में परिपक्वता आ जाती है और वह बच्चा या युवा समाज राष्ट्र और अभिभावकों के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझता है । आजकल सोशल मीडिया जैसे फेसबुक , इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप इत्यादि में बच्चे बहुत समय व्यर्थ गंवा देते हैं और पब जी की लत से तो रब जी ही बचाएं। यह आपको निर्णय लेना है कि आप 30 वर्ष के बाद की जिंदगी कष्ट में बिताना चाहते हैं या खुशी से , या तो विद्यार्थी जीवन में कष्ट झेल लो, मेहनत कर लो, अच्छी पढ़ाई कर लो ताकि पढ़ाई के तुरंत बाद ही अच्छी सी नौकरी मिल जाए और आप अपनी जिंदगी खुशी-खुशी जिएं। आपको क्या चुनना है, फैसला आपके हाथ में है। पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम जी ने सही कहा है कि सपने वो नहीं होते जो आप सोने के बाद देखते हैं, सपने वो होते हैं जो आपको सोने नहीं देते हैं। कलाम जी के विचारों को अपनाकर हम भी अपने जीवन को बदल सकते हैं ।
हमारे जीवन में उत्साह का बड़ा ही महत्व होता है। हमें खुद को उत्साहित रखना चाहिए और अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित रहना चाहिए। हमें स्कूल, कॉलेज की समय अवधि में समय का सदुपयोग करना चाहिए और खूब मेहनत करके माता पिता, गांव, जिला, प्रदेश और देश का नाम रोशन करना चाहिए। देश प्रदेश के उज्जवल भविष्य लिए ये आवश्यक है कि देश के बच्चे और युवा पीढ़ी अच्छे संस्कारों को अपने जीवन में अपनाएं और देश की उन्नति में अपना योगदान दें।
किसी शायर ने क्या खूब कहा है-
“कोई भी लक्ष्य बड़ा नहीं ,
जीता वही जो डरा नहीं |
मंजिल उन्हीं को मिलती हैं,
जिनके सपनों में जान होती हैं,
पंख से कुछ नही होता,
हौसलों से उड़ान होती है।”
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