भारत में हजारों वर्ष से है मानवाधिकार की परम्परा: प्रो. अजय श्रीवास्तव 

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28/05/2022

मानवाधिकार पश्चिमी नहीं बल्कि है भारतीय अवधारणा

हजारों वर्ष पूर्व रचे गए वेदों, उपनिषदों पुराणों में प्राणियों, वनस्पतियों और प्रकृति के अधिकारों का विस्तृत विवरण

शिमला:-

मानवाधिकार पश्चिमी नहीं बल्कि भारतीय अवधारणा है। हजारों वर्ष पूर्व रचे गए वेदों, उपनिषदों पुराणों के अलावा जैन और बौद्ध ग्रंथों में न सिर्फ मानव बल्कि सभी प्राणियों वनस्पतियों और प्रकृति के अधिकारों का विस्तृत विवरण मिलता है। निकट अतीत में गुरु नानक देव से लेकर गुरु गोविंद सिंह तक के जीवन और रचनाओं में मानवाधिकारों के संरक्षण का संदेश है बल्कि गुरुओं ने उसे व्यवहार में भी उतारा।

वरिष्ठ मानवाधिकार कार्यकर्ता और उमंग फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रो. अजय श्रीवास्तव  पंचनद शोध संस्थान अध्ययन केन्द्र, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय इकाई के तत्वावधान में प्रारंभ की गई मासिक व्याख्यानमाला में बोल रहे थे। यह जानकारी इकाई अध्यक्ष प्रो. मनु सूद ने दी।

मानव समेत समस्त प्रकृति के अधिकारों का संरक्षण

प्रो. अजय श्रीवास्तव ने प्राचीन ग्रंथों के उदाहरणों से बताया कि जब समस्त पश्चिमी देश लिखना पढ़ना भी नहीं जानते थे, ऋग्वेद की ऋचाओं में मानव मात्र के साथ ही समूची प्रकृति के अधिकार की चर्चा की गई। व्याख्यान का विषय था “प्राचीन भारतीय परंपरा में मानवाधिकार और आधुनिक संदर्भ”।

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उन्होंने कहा कि एक वैदिक सूत्र “बहुजन हिताय बहुजन सुखाय” का सार लेकर भगवान बुद्ध ने अपने शिष्यों को समाज में सभी के लिए समान दृष्टि से कार्य करने की प्रेरणा दी। इसी प्रकार रामायण और गीता में भी मानवाधिकारों की न सिर्फ विस्तृत चर्चा है बल्कि उसके पालन के भी उदाहरण मिलते हैं। बौद्ध और जैन धर्म के ग्रंथों में भी हिंदू वांग्मय की भांति मानव समेत समस्त प्रकृति के अधिकारों के संरक्षण का संदेश है।

उनका कहना था कि मानवाधिकार शब्द का उपयोग न करने के बावजूद भारतीय मनीषियों ने मनुष्य और प्रकृति के अधिकारों को समझा और संरक्षित किया। निकट अतीत में मानवाधिकार संरक्षण के लिए पंचम गुरु श्री अर्जुन देव जी, नवम गुरु श्री तेग बहादुर जी और दशम गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी के दो छोटे साहिब जादों का बलिदान भी मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए हुआ।

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मानवाधिकारों की गौरवशाली परंपरा

मुस्लिम, मुगल और अंग्रेजों की गुलामी के दौरान हमें प्राचीन भारतीय ज्ञान और चेतना से अलग-थलग कर दिया गया। स्वतंत्रता के बाद की सरकारों ने कम्युनिस्ट विचारों से प्रेरित होकर हमें यही पढ़ाया की प्राचीन भारतीय ज्ञान और परंपराएं व्यर्थ हैं। इसलिए हम मानवाधिकारों की गौरवशाली परंपरा से भी अनभिज्ञ हो गए।

प्रो.अजय श्रीवास्तव ने कहा कि 1948 में मानवाधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र का सार्वभौमिक घोषणा पत्र, भारतीय संविधान में वर्णित मौलिक अधिकार और 1993 का मानव अधिकार संरक्षण कानून आधुनिक भारत में मानवाधिकारों पर जागरूकता और उनके संरक्षण के लिए भूमिका निभा रहे हैं।

अधिकारों के साथ  कर्तव्यों के बारे में जागरूक 

कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ जयदेव ने मानवाधिकार के आयामों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मौलिक अधिकारों के साथ-साथ यदि हम अपने कर्तव्यों के बारे में भी सचेत रहें तो मानवाधिकार संरक्षण में बहुत बड़ा योगदान दिया जा सकता है।

प्रो0 मनु सूद ने बताया कि वेबिनार में करीब 50 बुद्धिजीवियों ने भाग लिया और विषय पर आयोजित चर्चा में भी हिस्सा लिया। प्रो0 मनु सूद ने वेबिनार में एक सूत्रधार का काम किया और विषय की प्रासंगिकता पर प्रकाश डालते हुए सभी का अभिनन्दन किया। अध्ययन केन्द्र के सचिव प्रो0 अरूण कुमार ने अतिथियों का परिचय करवाया जबकि उपाध्यक्ष प्रो0 संजय सिंधु ने धन्यवाद प्रस्ताव रखा। अध्ययन केन्द्र के अन्य सदस्यों डॉ0 सपना चंदेल, डॉ0 सुनील मनकोटिया, डॉ0 विजय चौधरी, डॉ0 निशा, डॉ0 संजीत शर्मा और डॉ0 दलेल सिंह ठाकुर ने भी भाग लिया। अध्ययन केन्द्र की सदस्या डॉ गीतिका सूद ने वेबिनार में जुड़े बुद्धिजीवीयों के प्रश्नों के निदान हेतु संचालन किया और मुख्या वक्ता ने प्रश्नों का उत्तर देकर सभी का समाधान किया।

 

 

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