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28/03/2022
चम्बा के भट्टियात में कुंजरोटी स्थान पर है विराजमान जिसे कहा जाता है कुंजर महादेव
छोटा मणि महेश के नाम से हैं विख्यात
चुवाड़ी मुख्यालय से लगभग 20 km दूर चुवाड़ी-सिहुंता-द्रमन मार्ग पर पातका गांव से लगभग डेढ़ किलोमीटर पर है यह स्थान
हिमाचल प्रदेश:-
हिमाचल शिवभूमि के नाम से जानी जाती है यंहा के लोगों में शिव के प्रति गहन आस्था का परिणाम है कि यंहा का हर स्थान शिव की किसी न किसी कथा से जुड़ा हुआ है। आज आपको ले चलते हैं शिव के एक ऐसे ही धाम जो कि जिला चम्बा के भट्टियात में कुंजरोटी स्थान पर है जिसे कुंजर महादेव कहा जाता है। इस स्थान के बारे में बहुत सी दंत कथाएं प्रचलित है कहते हैं कि यदि कुदरत चाहती तो मणि महेश यंही पर स्थापित होता। आइये आज जानते हैं कुंजर महादेव की कथाएँ
छोटा मणि महेश:-
मणि महेश में शाही स्नान के दिन यंहा भी बहुत से भक्त आस्था की डुबकी लगाते हैं और भगवान शिव की आराधना करते हैं जो लोग मणि महेश नही जा सकते वह इसी स्थान में मणि महेश का पुण्य प्राप्त करते हैं। ऐसा आशीर्वाद भगवान शिव ने इस जगह को दिया है।
कैसे पँहुचे
यंहा पँहुचने का मार्ग सरल है अब इस जगह तक जीप रोड बन चुका है। चुवाड़ी मुख्यालय से लगभग 20 km दूर चुवाड़ी-सिहुंता- द्रमन मार्ग पर पातका गांव से लगभग डेढ़ किलोमीटर पर ये स्थान है।पठानकोट से 70 km दूर ओर गगल एयरपोर्ट से लगभग 50 km पर ये जगह चम्बा और कांगड़ा को बांटने वाली हाथी धार पर है। इस धार के एक तरफ जिला चम्बा ओर एक तरफ जिला कांगड़ा है।
हाथी धार का नामकरण
हाथी धार बनने की कथा भी बड़ी दिलचस्प है कहते हैं। जब भगवान शिव ने जब गलती से गणेश भगवान का सिर काट दिया था तो माँ पार्वती के विलाप को न देख पाने के कारण अपने गणों को किसी पशु का सिर काट कर लाने को कहा तो उत्तर दिशा की तरफ बढ़ते हुए गण एक हाथी का सिर काट कर ले आये और गणेश भगवान को लगा दिया और इसी कारण गणेश को गणों का ईश कहा जाता है।
जब एक बार शिव और पार्वती हिमालय की ओर बढ़े तो माता पार्वती को एहसास हुआ कि उस माँ को भी कितना कष्ट हुआ होगा। जिसके पुत्र का सिर काट कर गणेश को लगाया गया है तो माता पार्वती ने शिव से आग्रह किया कि उस सिर कटे हाथी का उद्धार करें और उस समय शिव ने उस हाथी को इसी जगह लाकर स्थापित किया और उसको मोक्ष प्रदान किया उस जगह पर “हाथी का उद्धार” हुआ इसलिए उसे “हाथी धार” के नाम से जाना गया। आज भी उस पहाड़ की शक्ल हु बु हु किसी हाथी की तरह नज़र आती है।
कुंजर महादेव नाम का रहस्य
कुंजर महादेव का नाम शिव को हाथियों ने दिया है। “कुंजर” का अर्थ होता है “हाथी”।
कहते हैं जब हाथी का सिर काट कर गण ले गए तो हाथियों ने भगवान शिव की घोर तपस्या की तब देव ऋषि नारद ने हाथियों को बताया कि आपका सिर स्वयं देवों के देव के भगवान शिव के पुत्र गणेश को लगाया गया है जो आप लोगो के लिए सम्मान का विषय है। और उस हाथी का उद्धार भी हाथी धार के नाम से हुआ है। ये जान कर हाथी खुश हो गए और इसी जगह पर आ कर उन्होंने भगवान शिव की जय जयकार की। और भगवान शिव को हाथियों के देव यानी “कुंजर महादेव” के नाम से सम्बोधित किया इसलिए इस स्थान को कुंजर महादेव कहा जाने लगा और इस स्थान का नाम कुंजरोटी हो गया।
कुछ अन्य कथाएँ भी इस स्थान के बारे में प्रचलित हैं
शिव के चरण है यंहा
कहते हैं कि राक्षसों और देवताओं का युद्ध हो रहा था और एक मायावी राक्षस जितनी बार मारा जाता उतनी बार जीवित हो जाता था। भगवान शिव ने जब इस राक्षस का संहार करने करने लगे तो वो भट्टियात के इस इलाके में आ गया और लोगो को परेशान करने लगा भगवान शिव ने जब राक्षस को देखा तो अपने त्रिशूल से उसका वध कर दिया जब भगवान शिव ने उस राक्षस का वध कर दिया तो एक ऋषि पत्नी ने भगवान से आग्रह किया कि आपने हमारे मन के डर को दूर किया है आप हमारे “मणि महेश” हैं कृपया यंही पर आप एक डल का निर्माण करें और इस स्थान को एक तीर्थ स्थल बना दीजिये यंही पर वास करिये क्योंकि इसी जगह आपने हाथी का भी उद्धार किया था और राक्षसों का अंत भी। भोले बाबा ने ऋषि पत्नी की बात को कबूल किया और कहा कि मैं आज रात इस डल का निर्माण करके यंहा अमृत डालूंगा इसलिए सुबह तक किसी प्रकार की बाधा न डाले कोई इस बात का ध्यान रखना। भगवान शिव अंतर्ध्यान हो गए परन्तु ऋषि पत्नी माया के वशीभूत होकर भूल गयी और सुबह होने से पहले ही उसने दूध मंथन आरम्भ कर दिया इससे शिव की आराधना बाधित हुई और उन्होंने कहा कि मैं अब यंहा नही रहूंगा ओर कैलाश पर्वत की तरफ चला जाऊंगा वंही पर डल का निर्माण करूँगा जंहा कोई भी पँहुच न सके ऐसे में उस ऋषि पत्नी ने भगवान की घोर तपस्या कर के माफी मांगी और कहा कि कृपया इस स्थान को भी पवित्र बना दीजिये तब भगवान शिव ने कहा कि ये स्थान कलयुग में बहुत प्रसिद्ध होगा जो भी यंहा आकर स्नान करेगा उसके सब पाप कट जाएंगे इस जगह पर मैंने त्रिशूल से डल का निर्माण किया है इसलिए यंहा मेरे चरण रहेंगे और मेरा वास कैलाश पर्वत पर होगा जिसे मणि महेश कहा जायेगा। तब से ये स्थान भी भगवान शिव के चरणों के कारण पवित्र हुआ और लाखों भक्तो की आस्था का केंद्र बना।
गड़रिये को हुए कलयुग में प्रथम दर्शन
एक अन्य कथा के अनुसार इस रास्ते एक गड़रिया चम्बा से कांगड़ा की तरफ भेड़ बकरियां लेकर जाता था इस कुंजरोटी जगह पर वो अपनी दराती को पैना यानी उसकी धार तेज करने के लिए पत्थर ढूंढने लगा तब उसने एक पत्थर पर दराती की धार बनाई और वो धार 6 महीने तक बनी रही गड़रिया अक्सर उस पत्थर को याद करता और सोचता काश वो पत्थर मिल जाये तो मेरा काम कितना आसान हो जाये अगली बार वापिस जाते हुए मैं उस पत्थर का टुकड़ा साथ ही ले जाऊंगा। जब वो वापिस उसी रास्ते आया तो उसने उसी पत्थर को फिर से ढूंढा ओर उस पर प्रहार किया जिससे उसमें एक दरार आ गयी( वो पत्थर आज भी वैसे ही स्थापित है) तभी आकाशवाणी हुई “हे मूर्ख तूने ये क्या किया तू कलयुग का पहला इंसान है जिसने मुझे छुआ ओर मुझ पर प्रहार किया इसका पूण्य ओर पाप तुझे दोनों भुगतने होंगे।” तब वो गड़रिया क्षमा मांगने लगा और अपने आराध्य शिव की देख कर प्रसन्न भी हुआ उसने कहा कि मुझे पाप से मुक्त कर के मोक्ष प्रदान करिये तब भगवान शिव ने उसे रहस्य बताया कि इस कुंड में स्नान करके तुम इस पाप से मुक्त हो सकते हो और मोक्ष की प्राप्त करोगे पर तुम्हे ओर तुम्हारी भेड़ बकरियों को यंही पर पत्थर बनना होगा। कलयुग में कोई भी प्राणी इस कुंड में स्नान कर के किसी भी पाप से मुक्ति पा सकता है। आज भी कुछ पत्थर उन भेड़ बकरियों के आकार के वँहा देखे जा सकते हैं।
पांडवो ने भी किया था स्नान
कहते हैं महाभारत के युद्ध के बाद जब पांडवो को कई हत्याओं के दोष लगा तो भगवान शिव के कहने पर पाण्डवो ने यंहा आकर स्नान किया ओर हत्या के दोष से मुक्त हो गए। उन्होंने यंहा तांबे की चादर भी बिछाई जो बाद में चोरी हो गयी।
गो हत्या का पाप भी कट जाता है
कहते हैं यदि कोई गो हत्या के पाप से ग्रसित हो तो 21 दिन के भीतर यंहा आकर स्नान करे तो वो इस दोष से मुक्ति पाता है।
सब पापों की मुक्ति
कलयुग में ये मात्र ऐसा धाम माना जाता है जो किसी भी प्रकार के पाप से मुक्ति का मार्ग दिखाता है इसीलिए हर साल लाखों भक्त यंहा आकर कुंड में डुबकी लगाते हैं।
पर्यटन के रूप में विकसित नही
ये स्थान बहुत ही मनमोहक पर्वतों के बीच विराजमान है जिसके एक तरफ धौलाधार का विशाल पर्वत दिखाई देता है। चूंकि ये स्थान 12 महीने दर्शनों के लिए खुला रह सकता है वावजूद इसके पर्यटन की दृष्टि से
इसे अधिक प्रसिद्ध करने में पर्यटन विभाग कोई अधिक रुचि नही दिखाता क्योंकि आस्था का प्रतीक तो यह पहले से ही है यदि थोड़ा और अधिक ध्यान दिया जाए तो ये पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो सकता है।
बिक्रम कौशल ‘प्रयास’ केंद्रीय मुख्य शिक्षक कवि, साहित्यकार,गाँव समोट जिला चम्बा
जय भोले नाथ, जय कुंजर महादेव
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