छायाचित्र : डलहौजी में डॉ धर्मवीर के साथ नेताजी सुभाष चंद्र बोस
नेताजी सुभाष चंद्र बोस का डलहौजी से रहा है विशेष लगाव
The News Warrior
कांगड़ा 23 जनवरी
भारत की आजादी के आंदोलन में ऐसे अनेक क्रांतिकारी उभरे जिन्होंने मुल्क को पराधीनता की बेड़ियों से मुक्त कराने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया और हमेशा के लिए अपने देशवासियों के दिलों पर छा गए। ऐसे ही एक क्रांतिकारी हैं, अपना सबकुछ देश की आजादी के लिए दांव पर लगाने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस। 23 जनवरी, सन 1897 ई. में उड़ीसा के कटक नामक स्थान पर पैदा हुए नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आज देश 125 वीं जयंती मना रहा है।
“तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूंगा”, “दिल्ली चलो” और “जय हिन्द“ जैसे नारों से सुभाष चंद्र बोस ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में नई जान फूंकी थी। उनके जोशीले नारे ने सारे भारत को एकता के सूत्र में बांधने का काम किया। लेकिन यह बहुत कम लोगों को पता होगा कि देश की आजादी के लिए आजाद हिन्द फ़ौज का गठन करने वाले सुभाष बाबू का हिमाचल से भी गहरा नाता रहा है। ऐतिसासिक तथ्यों के अनुसार 1937 में वे मई के प्रथम सप्ताह में लाहौर से पठानकोट होते हुए डलहौजी पंहुचे जहां करीब 6 महीने स्वास्थ्य लाभ लेने के बाद वापिस कलकत्ता लौट गए थे।
भारत के स्वर्णिम भविष्य का सपना लिए सुभाष के डलहौजी पंहुचते ही उनके स्वदेश-प्रेम और स्वाभिमान का परिचय एक घटना के माध्यम से मिलता है। क्षय-रोग से ग्रसित स्वास्थ्य सुधार के लिए किसी हिल-स्टेशन पर जाने के डाक्टरों के परामर्श का पालन करते हुए सुभाष एक दिन शाम के समय सूरज ढलते ही डलहौजी बस अड्डे पर पहुंचे। यहां उनके मित्र डॉ धर्मवीर रहते थे। शाम को अपने मित्र को तकलीफ न हो इसलिए उन्होंने रात किसी होटल में गुजारने का निर्णय किया। बस अड्डे पर एक कुली से स्थानीय होटलों के नाम पूछे। कुली ने दो-तीन होटलों जैसे प्रिंस, कैपिटल, एरोमा के नाम लिए तो सुभाष झल्लाकर बोले “कोई ऐसा होटल बताओ जिसका नाम हिंदुस्तानी हो।“ फिर भगत राम नाम के उस कुली ने उन्हें ‘होटल मेहर’ का नाम सुझाया और नेताजी की सहमति से वह कुली उन्हें ‘होटल मेहर’ लेकर आया जहां पंहुचकर सुभाष ने प्रसन्न होकर कुली भगत राम को एक रूपया मेहनतनामा दिया। उस समय के हिसाब से बस अड्डे से होटल मेहर तक कुली का भाड़ा मात्र 6 पैसे था। कहते हैं कि ज्यादा पैसे देने पर कुली भगत राम ने जब इंकार किया तो सुभाष ने कहा “रख लो भाई, रख लो। मैं यही सपना लेकर घर से निकला हूँ कि भारत का हर मजदूर कम से कम एक रूपये तो रोज कमाए। आज तो मेरी यह इच्छा पूरी हो जाने दो।”
नेताजी के इस वाक्य ने कुली के मन पर गहरा प्रभाव डाला और फिर यह बात सारे शहर में फ़ैल गयी। हालाँकि नेताजी अपने इस दौरे को गोपनीय रखना चाहते थे लेकिन अब उनके डलहौजी आने की खबर सार्वजनिक हो चुकी थी। डलहौजी में नेताजी अपने मित्र डॉ. धर्मवीर के घर रहे। वे डॉ. धर्मवीर के निवास स्थान कायनांस एस्टेट बंगले में करीब 6 महीनों तक रुके। इस दौरान उन्होंने अनेक पत्र अपने मित्रों और परिचितों को लिखे।
डलहौजी से नेता जी ने अपनी यूरोप की परिचित मिसेज वैटर को पत्र लिखा था जिसमें उन्होंने लिखा है, ” लाहौर के उत्तर में हिमालय की श्रृंखलाओं में बसी यह पहाड़ी नगरी सागर तट से लगभग 2000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। छोटी सी और एकदम शांत यह जगह कई सारी पहाड़ियों की गोद में बसी है। मेरे इस मकान की छत से दूर-दूर तक फैले हुए मैदान और मचलती हुई नदियां भी देखि जा सकती हैं। बगरी की दूसरी ओर दिखाई देती है, हिमालय की पर्वतमाला जो कहीं-कहीं बर्फ से ढकी हैं।”
क्षय रोग से जूझ रहे नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने डलहौजी में रह कर स्वास्थ्य लाभ लिया। इस दौरान नेताजी डॉ धर्मवीर के निवास से 3 किलोमीटर दूर एक बावड़ी पर रोजाना जाया करते थे। नेता जी बावड़ी का पानी ही पिया करते थे। देवदार की आबो-हवा के बीच नेताजी पूरी तरह स्वस्थ हो गए। इसके बाद से ही इस बावड़ी का नाम नेताजी के नाम पर ‘सुभाष बावड़ी’ रखा गया जिसके रख-रखाब का कार्य आज भी स्थानीय लोग और समाजसेवी संस्था भारत विकास परिषद की डलहौजी शाखा के सदस्य करते हैं।
नेताजी के डलहौजी में समय बिताने के कारण ही कई संस्थाएं पर्यटन नगरी डलहौज़ी का नाम नेताजी के नाम पर ‘सुभाष नगर’ करने की मांग भी करती आयी हैं। ऐसा ही इसलिए भी है क्योंकि लार्ड डलहौज़ी के नाम पर इस शहर का नामकरण आज भी हमें दासता का अहसास करवाता है। जहां भारत सरकार ने इस वर्ष से गणतंत्र दिवस के आयोजन नेताजी की जयंती 23 जनवरी से मनाये जाने का ऐतिहासिक निर्णय लिया है वहीं प्रदेश सरकार को भी -भावनाओं का आदर करते हुए इस मुद्दे पर संवेदनशीलता दिखानी होगी।
नोट -: यह लेखक के स्वतंत्र विचार हैं
लेखक
मनोज रत्न
सह-संयोजक आईटी विभाग
भारतीय जनता पार्टी हिमाचल प्रदेश