जयंती विशेष
25 सितंबर 2021
एकात्म मानववाद और अंत्योदय के प्रणेता पंडित दीनदयालउपाध्याय (मनोजरत्न)
एकात्म मानववाद और अंत्योदय के जिस दर्शन को बीजेपी अपनाए हुए है, उसके प्रणेता पंडित दीन दयाल उपाध्याय की आज जयंती है। जब आर एस एस प्रचारक उपाध्याय को श्यामा प्रसाद मुखर्जी भारतीय जनसंघ से जोड़कर राजनीति में उतरने के लिए कह रहे थे, तब उन्होंने कहा था कि मुझे क्यों कीचड़ में डाला जा रहा है? इस पर तत्कालीन सर संघ चालक गुरु जी गोलवरकर ने कहा था, “जो कीचड़ में रहकर भी कमल-पत्र जैसा अलिप्त रह सकता हो, वही राजनीति के क्षेत्र में कार्य करने के योग्य होता है, और इसलिए तुम्हारा चयन किया गया है।”
उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के नगला चंद्र भान गांव में 25 सितंबर 1916 को ज्योतिष पं. हरीराम उपाध्याय के पौत्र भगवती प्रसाद और राम प्यारी के घर दीन दयाल उपाध्याय का जन्म हुआ। दीन दयाल उपाध्याय का बचपन संघर्षों में बीता। बचपन में ही माता-पिता की छत्र-छाया से वंचित हो गए। तीन साल में पिता और सात साल की उम्र में माता का निधन हो गया था लिहाजा, गंगापुर और कोटा (राजस्थान) में नाना चुन्नी लाल और मामा राधा रमण के यहां उनका पालन-पोषण हुआ।
दीन दयाल की शुरुआती शिक्षा गंगापुर में हुई। कोटा से उन्होंने पांचवीं कक्षा पास करने के बाद राजगढ़ (अलवर) से आठवीं और नौवीं की पढ़ाई की। राजगढ़ से सीकर जाकर उन्होंने हाई स्कूल में दाखिला लिया। बीमारी में परीक्षा देने पर भी फर्स्ट क्लास में पास हुए। मेधा से खुश होकर सीकर के महाराजा ने उन्हें न केवल स्वर्ण पदक से नवाजा बल्कि, किताबों के लिए ढाई सौ रुपये भी दिए। सीकर के राजा ने दस रुपये महीने की छात्रवृत्ति भी मंजूर की। जिससे दीन दयाल उपाध्याय पढ़ाई जारी रख सके। 1937 में पिलानी से वह इंटरमीडिएट की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास किए। सभी विषयों में विशेष योग्यता के साथ सफल रहे।
इसके बाद कानपुर में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के दौरान वह आरएसएस से प्रेरित हुए। कानपुर की शाखा मंट संघ की जो प्रतिज्ञा हुई उसमें पहले स्वयं सेवक दीन दयाल ही थे। पढ़ाई पूरी करने के बाद वह संघ पदाधिकारी भाऊराव देवरस के पास गए और संघ से जुड़ने की इच्छा जताई। इस प्रकार वह उत्तर प्रदेश के प्रथम प्रचारक हुए। वह 1943 से करीब पांच वर्षों तक हरदोई के संडीला में आरएसएस के सीतापुर प्रचारक रहे। शाहजहांपुर, लखीमपुर खीरी में शाखाएँ खुलवाईं। लखनऊ आने पर दीन दयाल उपाध्याय ने राष्ट्रधर्म पासिक और पांच जन्य का साप्ताहिक प्रकाशन कराया। दीन दयाल उपाध्याय का मानना था कि राजनीतिक क्रांति के साथ वैचारिक क्रांति भी जरूरी है। इस लिहाज से 1947 में राष्ट्रधर्म मासिक पत्रिका का प्रकाशन किया।
21 अक्टूबर 1951 में दिल्ली में भारतीय जनसंघ की स्थापना के वक्त इसकी कमान डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने संभाली। उन्हें तब एक ऊर्जावान सहयोगी की तलाश थी। उनकी तलाश दीन दयाल उपाध्याय पर जाकर खत्म हुई। तब दीन दयाल उपाध्याय ने कहा था कि मुझे क्यों कीचड़ में डाला जा रहा है? इस पर तत्कालीन सर-संघ चालक गुरु जी गोलवरकर ने कहा था, “जो कीचड़ में रहकर भी कमल-पत्र जैसा अलिप्त रह सकता हो, वही राजनीति के क्षेत्र में कार्य करने के योग्य होता है और इसलिए तुम्हारा चयन किया गया है।”
जनवरी, 1953 में पंडित दीन दयाल को भारतीय जनसंघ का महा मंत्री बनाया गया। तब श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कहा था,” यदि मुझे दो और दीन दयाल मिल जाएं तो मैं भारतीय रंगमंच का नक्शा ही बदल दूं। श्यामा प्रसाद मुखर्जी के निधन के बाद पार्टी की जिम्मेदारी पूरी तरह दीन दयाल उपाध्याय पर आ गई। 1953 से 1967 तक संगठन महामंत्री रहने के बाद वह 1968 में भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष बने। कालीकट अधिवेशन में वह अध्यक्ष चुने गए थे। इससे पूर्व 1952 के आम चुनाव में दीन दयाल ने नानाजी देशमुख के साथ उत्तर प्रदेश में चुनाव का संचालन किया था। तब जनसंघ को केंद्र में तीन सीटें मिलीं थीं। जिसमें एक सीट मुखर्जी की थी।
दीन दयाल उपाध्याय अद्भुत प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने राष्ट्रधर्म (मासिक), पांचजन्य (साप्ताहिक), स्वदेश (दैनिक) के साथ साहित्य सृजन भी किया। उनकी प्रमुख रचनाओं में सम्राट चंद्रगुप्त, जगत गुरुशंकराचार्य, भारतीय अर्थनीति-विकास की एक दिशा, राष्ट्र चिंतन राष्ट्र-जीवन की दिशा, इनटिगरल ह्यूमनिज्म प्रमुख हैं। वह ऑर्गनाइजर के जरिए भी विचार व्यक्त करते थे। 17 मई 1968 को दीन दयाल उपाध्याय के लेखों का संग्रह पॉलिटिकल डायरी के नाम से प्रकाशित हुआ। जिसकी प्रस्तावना डॉ. संपूर्णानंद ने लिखी।
फरवरी 1868 में बिहार में भारतीय जनसंघ की प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक थी। बिहार के संगठन मंत्री अश्ननी कुमार ने उन्हें बुलावा भेजा था। तब पटना जाने के लिए वह पठानकोट-सियालदह एक्सप्रेस में सवार हुए थे। पंडित जी 04348 नंबर का टिकट लेकर ट्रेन की प्रथम श्रेणी की बोगी में सवार हुए थे। उपाध्याय को छह बजे पटना पहुंचना था। 2 बजकर 15 मिनट पर मुग़लसराय जंक्शन के प्लेटफॉर्म नंबर 1 पर गाड़ी पहुंची थी।
चूंकि यह गाड़ी सीधे पटना नहीं जाती थी। इसलिए मुगलसराय जंक्शन पहुंचने पर इसके डिब्बों को दिल्ली-हावड़ा एक्सप्रेस से आधे घंटे में जोड़ा जाता था। 11 फरवरी को प्रातः पौने चार बजे सहायक स्टेशन मास्टर को खंभा नं० 1276 के पास कंकड़ पर पड़ी हुई लाश की सूचना मिली। इस शव की पहचान जब जनसंघ के संस्थापक दीन दयाल उपाध्याय के रूप में हुई तो लोग चौंक पड़े। इस मामले की सीबीआई जांच हुई थी। तब सीबीआई ने दो आरोपियों के हवाले से दावा किया था कि चोरी का विरोध कर रहे दीन दयाल उपाध्याय को चलती ट्रेन से नीचे फेंक दिया था। हालांकि तमाम लोगों के गले में यह बात नहीं उतरी थी। 23 अक्टूबर 1969 को 70 सांसदों की मांग पर जस्टिस वाई.वी. चंद्रचूड़ आयोग गठित हुआ था।
आयोग ने भी सीबीआई की जांच को सही ठहराया था। हालांकि इस जांच को लेकर जनसंघ के तत्कालीन कुछ नेता भी मानने को तैयार नहीं थे। उस वक्त दीन दयाल उपाध्याय की मौत को राजनीतिक हत्या भी कहा जा रहा था। हालांकि अब भी उन की मौत की ऐसी कोई थ्योरी सामने नहीं आई है, जिस पर किसी को शंका न हो।
दीन दयाल उपाध्याय के बारे में कहा जाता है कि वह कार्यकर्ताओं को सादा जीवन और उच्च विचार के लिए प्रेरित करते थे। खुद को लेकर अक्सर कहते थे कि दो धोती, दो कुरते और दो वक्त का भोजन ही मेरी संपूर्ण आवश्यकता है। इससे अधिक मुझे और क्या चाहिए। आज भी उनके विचार तर्क संगत हैं। वर्तमान केंद्र सरकार की अनेक योजनाएं पंडित दीन दयाल उपाध्याय के दर्शन पर आधारित हैं। दीन दयाल उपाध्याय एक ऐसे युगद्रष्टा थे जिनके बोए गए विचारों और सिद्धांतों के बीज ने देश को एक वैकल्पिक विचारधारा देने का काम किया। उनकी विचारधारा सत्ता प्राप्ति के लिए नहीं बल्कि राष्ट्र के पुनर्निर्माण के लिए थी यह आज सिद्ध हो रहा है।