साहस और पराक्रम के विख्यात राजा महाराणा प्रताप को रण में देख कांप उठता था शत्रु

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02/06/2022

साहस और पराक्रम के लिए विख्यात राजा थे महाराणा प्रताप

मुगल सम्राट अकबर का मेवाड़ पर जीत का सपना किया चकनाचूर

महाराणा प्रताप जयंती:-

महाराणा प्रताप मेवाड़ के साहस और पराक्रम के लिए विख्यात 13वें राजा थे। महाराणा प्रताप  को भारत में मुगल साम्राज्य को फैलने से रोकने के लिए किए गए प्रयासों के लिए जाना जाता है। उनका जन्म 9 मई, 1540 को एक राजपूत परिवार में हुआ और उनके पिता उदय सिंह उदयपुर नगर के संस्थापक थे। महाराणा उदय सिंह जो मेवाड़ राज्य के शासक थे, जिसकी राजधानी चित्तौड़ थी। महाराणा प्रताप 25 पुत्रों में सबसे बड़े होने के कारण युवराज थे।

1567 में, चित्तौड़ सम्राट अकबर के मुगल साम्राज्य की दुर्जेय ताकतों से घिरा हुआ था। महाराणा उदय सिंह द्वितीय ने चित्तौड़ छोड़ने का फैसला किया, और मुगलों के सामने आत्मसमर्पण करने के बजाय पश्चिम को गोगुंडा में स्थानांतरित कर दिया। 1572 में महाराणा उदय सिंह द्वितीय की मृत्यु हो गई, और अपने एक भाई के साथ सत्ता संघर्ष के बाद, प्रताप सिंह मेवाड़ के महाराणा बन गए। चित्तौड़ को पुनः प्राप्त करने की उनकी इच्छा उनके शेष जीवन को परिभाषित करती है।

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अकबर के बिना युद्ध के मेवाड़ को अपने अधीन करने का प्रयास

पिता उदय सिंह के मौत के बाद 1572 में महाराणा प्रताप मेवाड़ के सिसौदिया राजपूत वंश के 54वें शासक बने थे, लेकिन उनके सौतेले भाई जयमल ही उनके खिलाफ मुगलों से जा मिले। अकबर बिना युद्ध के ही मेवाड़ को अपने अधीन करने का प्रयास कर रहा था। इसके लिए अकबर ने चार बार महाराणा प्रताप के पास संदेश भेजे 1572 में जलाल खां, 1573 में मानसिंह, भगवानदास और टोडरमल के जरिए समझौते की पेशकश की जिससे युद्ध की जरूरत ना पड़े।

महाराणा प्रताप ने इस सभी प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया और मुगलों की अधीनता को स्वीकार करने से साफ तौर पर इंकार कर दिया। इसी वजह से युद्ध होना निश्चित हो गया था, और इसी कारण महाराणा प्रताप को मुगलों से कई बार अलग-अलग जगहों पर युद्ध करना पड़ा और इसकी शुरुआत हल्दी घाटी के ऐतिहासिक युद्ध से हुई थी।

हल्दी घाटी युद्ध

युद्ध निश्चित होने पर 18 जून 1576 में दोनों पक्षों की सेनाएं राजस्था के गोगुन्दा के पास हल्दी घाटी में टकराईं।  महाराणा प्रताप की ओर से तीन हजार घड़सावर, 400 भील धुनर्धारी, मैदान में उतरे तो वहीं मगुलों की पांच से दस हजार सैनिकों की कमान मुगलों की ओर से आमेर के राजा मानसिंह ने संभाली। तीन घंटे के इस युद्ध में ही भारी रक्तपात हुआ और दोनों ही सेनाओं को भारी नुकसान हुआ।

हल्दी घाटी के युद्ध कोइतिहास में बहुत महत्व दिया जाता है। इस युद्ध में वीरता की ऐसी कहानी है जिससे में मजबूत कहे जाने वाले मुगलों  की ताकत पर सवाल उठा दिए और राजस्थान के इतिहास में शौर्य की बड़ी गाथा लिख दी।  इस युद्ध में मेवाड़ 1600 सैनिक शहीद हुए तो मुगल सेना ने भी अपने 3500 से 7800 सैनिक गंवा दिए।  मुगल महाराणा और उनके परिवार के किसी भी सदस्य को पकड़ नहीं सके। हल्दी घाटी का नतीजा मुगलों के लिए भी बेकार ही रहा।  इसके बाद एक हफ्ते के अंदर मानसिंह ने गोगुंदा पर कब्जा कर लिया, तो वहीं घायल महाराणा प्रताप को कुछ सालों के लिए जंगलों में भटकना पड़ा।  इसके बाद अकबर ने खुद कमान अपने हाथ में लेकर सितंबर 1576 में  गोगुंडा, उदयपुर, और कुंभलगढ़ को मुगलों के अधीन तो कर लिया, लेकिन वह महाराणा प्रताप को छू भी नहीं सका।

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महाराणा की छापामार युद्धनीति

महाराणा ने मुगलों को चैन से नहीं रहने दिया और अपनी छापामार युद्धनीति से मुगलों को परेशान करते रहे।  1579 में मुगलों को अपने ताकत बंगाल और बिहार में होने वाले विद्रोह के कारण पूर्व  में लगानी पड़ी, जिसका महाराणा प्रताप ने भरपूर फायदा उठाया और एक के बाद एक अपने क्षेत्र हासिल करने शुरू कर दिए। 1582 में दिवेर में हुए युद्ध के बाद प्रताप का पलड़ा पूरी तरह से भारी हो गया और मुगलों की मेवाड़ पर पकड़ ढीली हो गई। 1584 में अकबर ने मेवाड़ पर फिर से कब्जा करने के लिए फिर सेना भेजी लेकिन इस बार उसे हार का सामाना करना पड़ा।  1585 में अकबर लाहौर चला गया जिसके बाद मेवाड़ को महाराणा के रहते मुगलों का सामना नहीं करना पड़ा।

महाराणा इतिहास के मजबूत योद्धा

भारतीय इतिहास के सबसे मजबूत योद्धाओं में से एक माने जाने वाले महाराणा प्रताप की लंबाई 2.26 मीटर (7 फीट 5 इंच) बताई जाती है।  वह 72 किलोग्राम (किलो) का बॉडी आर्मर पहनते थे और 81 किलो का भाला रखते थे।  महाराणा प्रताप की 11 पत्नियां और 17 बच्चे थे. उनके सबसे बड़े पुत्र, महाराणा अमर सिंह 1, उनके उत्तराधिकारी बने और मेवाड़ वंश के 14 वें राजा थे।

जनवरी 1597 में एक शिकार दुर्घटना में वह गंभीर रूप से घायल हो गया था। 29 जनवरी 1597 को 56 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।  वह अपने राष्ट्र के लिए, अपने लोगों के लिए और सबसे महत्वपूर्ण रूप से अपने सम्मान के लिए लड़ते हुए मर गए।

 

 

 

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