पहाड़ी क्षेत्र में पानी के बेग से चलने वाले “घराट” खो रहें अपना अस्तित्व

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24/05/2022

आधुनिकता की दौड़ और जिंदगी को आसान बनाने के साथ ही मनुष्य ने अपने स्वार्थ के चलते समय के साथ अपनी लोक सांस्कृतिक और विरासत को काफी पीछे छोड़ दिया है। हमारे परंपरागत साधन धीरे-धीरे अपना अस्तित्व खो रहे हैं और इन्हीं परंपरागत साधनों में से “घराट” यानी “घट्ट” एक है। जो आज अपना अस्तित्व खो चुका है। आज से करीब 50 साल पहले हर गांव में “घराटों” की काफी संख्या हुआ करती थी।

छोटी-बड़ी खड्डों व नालों के किनारे पानी के साथ “घराट” यानी “घट्ट”को चलाया जाता था। “घराट” में लोगों की भीड़ सी लगी रहती थी । पहाड़ों के ये “घट्ट” पहाड़ की सामाजिक आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन का प्रतीक हुआ करते थे। दशकों पहले पहाड़ी क्षेत्रों में गेहूं, मक्की और मसाले आदि पीसने का कार्य घराट एकमात्र साधन हुआ करते थे। “घराट” संचालक को अनाज पीसने के बदले थोड़ा बहुत अनाज पिसाई के रूप में मिलता था। जिससे वह अपनी रोजी रोटी चलाता था।

 

जाने कैसे करते थे “घराट” कार्य 

“घराट” को खड्ड के एक छोर पर स्थापित किया जाता था। जिसमें नदी के किनारे से लगभग 100 से 150 मीटर लंबी कूहल (नहरनुमा) द्वारा पानी को एक नालीदार लकड़ी (पनाले) के जरिए, जिसकी ऊंचाई से 49 अंश के कोण पर स्थापित करके पानी को उससे प्रवाहित किया जाता था। घराट के नीचे एक गोल चक्का होता है, जो पानी के तीव्र गति से घूमने लगता है। वी आकार की एक सिरा बनाया जाता है जिसमें अनाज डाला जाता है ओर उसके नीचे की ओर अनाज निकाल कर पत्थर के गोल चक्के में प्रवाहित होकर अनाज पीसने लगता है ।

पौष्टिकता से भरपूर आटा 

आज की आधुनिक चक्की के मुकाबले “घराट” का पिसा हुआ आटा न सिर्फ पौष्टिक हुआ करता था बल्कि पहाड़ की सामाजिक संस्कृति को भी दर्शाता था। किसी समय आटा पीसने का एकमात्र साधन केवल एक साधन घराट ही हुआ करते थे परन्तु आज वर्तमान मेंं यह विलुप्त होने के कगार पर है। अब इक्का-दुक्का लोग ही घराट में आते हैं । इन्हें चलाने में भी संचालकों को आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

समय के अभाव में इस परंपरा को लोग भूलते जा रहे हैं। खड्डों व कूहलों के पानी से चलने वाले घराट पौष्टिक आटा तैयार कर मुहैया करवाते थे। लोगों की कतारें भी घराटों के बाहर देखने को मिलती थी। घराट बिना बिजली से चलते हैं और इनमें तैयार होने वाला आटा स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक होता है। आधुनिकता के दौर में लोग घराटों से मुंह फेरने लगे हैं और बिजली से चलने वाली आटा चक्की की ओर रुख कर गए।

नहीं बन पा रही दिहाड़ी 

आज जगह-जगह पानी को इकठ्ठा करने के लिए डेम बनाए गए हैं जिसके कारण खड्डों-नालों में पानी की कमी हो गयी हैं जिसके चलते भी घराट चल नहीं पा रहें हैं। घराट संचालकों का कहना हैं की घराट में एक-दो ग्राहक ही आते हैं जिससे हमें दिहाड़ी भी नहीं बन पाती ,जिस कारण उन्होंने यह काम छोड़ दिया हैं।

 

पूजा हरयाणवी 

 

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