THE NEWS WARRIOR
03/06/2022
पशुपालन को भी दिया जाए और अधिक प्रोत्साहन
जनसंख्य बढ़ जाने के साथ ही हमारे देश-प्रदेश में बेरोजगारी की समस्या दिन-प्रतदिन विकराल रूप धारण कर रही है । ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि, पशुपालन एवं बागवानी आदि का कार्य कम होने तथा पारम्परिक व्यवसाय बंद होने से रोजगार कम हुए हैं । ग्रामीणों ने अब पहले की तरह कड़ी मशक्कत करनी भी छोड़ दी है । इससे उन में गर्मी व सर्दी सहन करने की भी क्षमता कम हुई है । नतीजन उन्हें कई बीमारियां भी घेरने लगी है । कृषि से सम्बन्धित ट्रैक्टर व अन्य आधुनिक मशीनों के उपयोग में आने से भी पारम्परिक व्यावसाय न के बराबर हुए हैं । पहले जिस काम को चार लोग करते थे । अब मशीनों से उस काम को कुछ ही समय में पूरा किया जाता है । इसके साथ ही मशीनों से होने वाला काम या उत्पाद सस्ता भी पड़ जाता है । इसलिए हाथ से बनाए उत्पाद को बड़ी मुश्किल से औने-पौने दाम पर बेचना पड़ता है । कई बार तो ऐसे कारीगरों को काफी घाटा भी उठाना पड़ता है ।
ग्रामीण स्तर पर लघु एवं कुटीर उद्योगों में भी भारी कमी आई है । इससे भी लोगों के पास काम धंधा न होने से भी बेरोजगारी बढ़ी है । हालांकि सरकार ऐसे उद्योगों के पुनरोत्थान के लिए सम्बन्धित लोगों को वितीय मदद भी दे रही है लेकिन लोगों को ऐसा रोजगार चाहिए जिसमें प्रति माह निर्धारित धनराशि मिले ताकि आसानी से अपना व अपने परिवार का गुजारा हो सकें । ग्रामीण क्षेत्र में बड़े उद्योग स्थापित न होने से युवा वर्ग रोजगार की तलाश में का गांव से शहरों की ओर पलायन कर रहा है । सारा सामाजिक ढांचा नगरों-महानगरों के आसपास विखर गया । ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकतर उपजाऊ भूमि बंजर होने के कगार पर पहुंच गई है । उस भूमि में बड़ी मात्रा में जहरीली घास फैल गई है । इस कारण पशु चारे की भी कमी हो गई है । इसके चलते पशुपालकों ने अपने पशु भी नगर-कस्बों की ओर धकेल दिए हैं । पहले गांव में जब व्यापक स्तर पर कृषि का काम होता था तो उसके साथ और भी कई पारम्परिक व्यवसाय थे । किसान अपनी उपज से ही उनका मेहनताना चुकाते थे ।
यह भी पढ़े:-
साहस और पराक्रम के विख्यात राजा महाराणा प्रताप को रण में देख कांप उठता था शत्रु
नकद पैसे का लेनदेन बहुत ही कम था। ऐसा भी कहा जाता है कि सरकार की कुछ कल्याणकारी योजनाएं धरातल पर कम ही दिखाई दे रही है । यह भी सच्चाई है कि कुछ लोगों के ढुलमुल रवैए के चलते कृषि एवं पशुपालन के व्यवसाय में बेहद कमी आई है । एक समय था जब किसान अपनी उपज से अपने परिवार के साथ ही अन्य पारम्परिक व्यवसाय करने वालों के परिवार का भी पेट भरता था । लोहे या लकड़ी का काम करने वाले किसानों के औजार व अन्य उपकरण बनाते थे । बांस से टोकरियां, अनाज रखने वाली बड़ी बड़ी पेडियां व अन्य छोटी मोटी वस्तुएं बनाते थे । खड्डों नालों के किनारे घराट चलाने वाले, मिट्टी के बर्तन बनाने वाले, जूते बनाने या उनकी मरम्मत करने वाले, बाल काटने वाले तथा ऊनी कपड़े बुनने वाले आदि व्यवसाय से जुड़े लोग अब गांव में कहीं ढूंढे नहीं मिल रहे हैं । लोगों को रोजी रोटी की तलाश में कहीं दूर जाना पड़ता है । अपने घर का खर्च चलाने के लिए उन्हें नकद पैसे की भी जरूरत होती है । पहले ऐसे व्यवसाय करने वालों की काफी कदर होती थी ।
किसान हर फसल आने पर उन्हें काम के मुताबिक अनाज देते थे । इससे उनका गुजारा चला रहता था । ये सब किसानों की जरूरतों को पूरा किया करते थे । लोग अनाज बेच कर रोजमर्रा का समान खरीद लिया करते थे । लेकिन अब लोगों की दौड़ पैसे के लिए हो गई है । हम जो खा-पी रहे हैं । उसकी गुणवत्ता की ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है । इसलिए तरह तरह की बिमारियां बढ़ना भी स्वभाविक ही है । हालांकि सरकार ने परम्परागत व्यवसायों के पुनरुत्थान के लिए विभिन्न योजनाएं चलाई है लेकिन उनका सही ढंग से कार्यन्वयन नहीं हो रहा है । इस बजह से ऐसे व्यवसाय फिर से नहीं पनप रहे हैं । यह तभी सम्भव हो पाएगा यदि कृषि के क्षेत्र उत्थान होगा । क्योंकि यह सब व्यवसाय कृषि से ही जुड़े हैं ।
यह भी पढ़े:-
सेहत और पर्यावरण संरक्षण के लिए उपयोगी हैं साइकिल की सवारी- मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर
कृषि के साथ ही पशुपालन का व्यवसाय भी नाम मात्र का ही रह गया है । हलांकि अब कृषि कार्य ट्रैक्टर अन्य मशीनों से हो रहा है । फिर भी कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहां अभी भी बैलों से ही खेती की जाती है । ऐसे किसानों का बैल पालने के लिए प्रोत्साहन दिए जाने की जरूरत है । जबकि दुग्ध उत्पादकों को दूध का घर द्वार उचित मुल्य मिलना चाहिए । यदि पशुपालकों को उचित व नकद प्रोत्साहन मिले तो कोई भी अपने पशु कस्बों या शहरों में नहीं छोड़ेंगे । इससे बेसहारा पशुओं की समस्या से भी छुटकारा मिलेगा । हालांकि सरकार की विभिन्न योजनाओं के कार्यन्वयन के लिए सरकार सब्सिडी देती है । ऐसी योजनाएं कितनी कामयाब होती है । यह तो सर्वविदित ही है । बाद में यह कहकर मामला खत्म कर दिया जाता है कि जिस कार्य के लिए ऋण लिया था । वह काम ही नहीं चल पाया । इसलिए उसे बंद कर दिया है ।
ग्रामीण स्तर तैनात कर्मचारियों की कमी से भी कृषि की विभिन्न योजनाओं का कार्यन्वयन समय पर नहीं हो पाता । इसकी औपचारिकताऐं भी काफी जटिल होती है । काफी भागदौड़ करनी पड़ती है । इसलिए वे ऐसी योजनाओं के बारे में सोच भी नहीं सकते हैं । यदि सरकार कृषि व्यवसाय के उत्थान का प्राथमिकता के आधार हल निकालें तभी बेरोजगारी भी कम होगी तथा दिनोंदिन बढ़ती महंगाई पर भी अंकुश लगेगा । इसके लिए नईं योजनाएं बनाएं तथा उन्हें ईमानदारी से लागू कराएं।
यह भी पढ़े:-