वेद-पुराणों में ब्रज की 84 कोस की परिक्रमा का क्यों दिया है महत्व पढ़ें इस खबर में

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वेद-पुराणों में ब्रज की 84 कोस की परिक्रमा का क्यों दिया है महत्व पढ़ें इस खबर में

The News Warrior 

डेस्क 04 फ़रवरी 

वृंदावन, मथुरा, गौकुल, नँदगांव, बरसाना, गोवर्धन सहित वें सभी जगह जहाँ श्री कृष्ण भगवान का बचपन व्यतीत  और आज भी जहाँ उनको महसूस किया जा सकता है जैसे कि सांकोर आदि में वह सब बृज 84 कोस का हिस्सा है।

वेद-पुराणों में ब्रज की 84 कोस की परिक्रमा का बहुत महत्व है, ब्रज भूमि भगवान श्रीकृष्ण एवं उनकी शक्ति राधा रानी की लीला भूमि है। इस परिक्रमा के बारे में वारह पुराण में बताया गया है कि पृथ्वी पर 66 अरब तीर्थ हैं और वे सभी चातुर्मास में ब्रज में आकर निवास करते हैं।

 

कृष्ण की लीलाओं से जुड़े हैं 1100 सरोवरें

 

ब्रज चौरासी कोस की परिक्रमा मथुरा के अलावा राजस्थान और हरियाणा के होडल जिले के गांवों से होकर गुजरती है। करीब 268 किलोमीटर परिक्रमा मार्ग में परिक्रमार्थियों के विश्राम के लिए 25 पड़ावस्थल हैं। इस पूरी परिक्रमा में करीब 1300 के आसपास गांव पड़ते हैं। कृष्ण की लीलाओं से जुड़ी 1100 सरोवरें, 36 वन-उपवन, पहाड़-पर्वत पड़ते हैं। बालकृष्ण की लीलाओं के साक्षी उन स्थल और देवालयों के दर्शन भी परिक्रमार्थी करते हैं, जिनके दर्शन शायद पहले ही कभी किए हों। परिक्रमा के दौरान श्रद्धालुओं को यमुना नदी को भी पार करना होता है।

 

इस समय निकलती है परिक्रमा

 

ज्यादातर यात्राएं चैत्र, बैसाख मास में ही होती है चतुर्मास या पुरुषोत्तम मास में नहीं। परिक्रमा यात्रा साल में एक बार चैत्र पूर्णिमा से बैसाख पूर्णिमा तक ही निकाली जाती है। कुछ लोग आश्विन माह में विजया दशमी के पश्चात शरद् काल में परिक्रमा आरम्भ करते हैं। शैव और वैष्णवों में परिक्रमा के अलग-अलग समय है।

 

क्या है महत्व?

मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने मैया यशोदा और नंदबाबा के दर्शनों के लिए सभी तीर्थों को ब्रज में ही बुला लिया था। 84 कोस की परिक्रमा लगाने से 84 लाख योनियों से छुटकारा पाने के लिए है। परिक्रमा लगाने से एक-एक कदम पर जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं। शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि इस परिक्रमा के करने वालों को एक-एक कदम पर अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। साथ ही जो व्यक्ति इस परिक्रमा को लगाता है, उस व्यक्ति को निश्चित ही मोक्ष की प्राप्ति होती है।

गर्ग संहिता में कहा गया है कि यशोदा मैया और नंद बाबा ने भगवान श्री कृष्ण से 4 धाम की यात्रा की इच्छा जाहिर की तो भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि आप बुजुर्ग हो गए हैं, इसलिए मैं आप के लिए यहीं सभी तीर्थों और चारों धामों को आह्वान कर बुला देता हूं। उसी समय से केदरनाथ और बद्रीनाथ भी यहां मौजूद हो गए।

84 कोस के अंदर राजस्थान की सीमा पर मौजूद पहाड़ पर केदारनाथ का मंदिर है। इसके अलावा गुप्त काशी, यमुनोत्री और गंगोत्री के भी दर्शन यहां श्रद्धालुओं को होते हैं। तत्पश्चात यशोदा मैया व नन्दबाबाने उनकी परिक्रमा की। तभी से ब्रज में चौरासी कोस की परिक्रमा की शुरुआत मानी जाती है।यह यात्रा 7 दिनों में पूरी होती है,

 

ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा में आने वाले स्थान इस प्रकार है।

मथुरा से चलकर
1. मधुवन 2. तालवन 3. कुमुदवन 4. शांतनु कुण्ड 5. सतोहा 6. बहुलावन 7. राधा-कृष्ण कुण्ड 8. गोवर्धन 9. काम्यक वन 10. संच्दर सरोवर
11. जतीपुरा 12. डीग का लक्ष्मण मंदिर 13. साक्षी गोपाल मंदिर 14. जल महल 15. कमोद वन 16.चरन पहाड़ी कुण्ड 17. काम्यवन

18. बरसाना 19. नंदगांव  20. जावट 21. कोकिलावन 22. कोसी 23. शेरगढ 24. चीर घाट 25. नौहझील 26. श्री भद्रवन 27. भांडीरवन

28. बेलवन 29. राया वन 30. गोपाल कुण्ड 31. कबीर कुण्ड 32. भोयी कुण्ड 33. ग्राम पडरारी के वनखंडी में शिव मंदिर 34. दाऊजी

35. महावन 36. ब्रह्मांड घाट 37. चिंताहरण महादेव 38. गोकुल 39. लोहवन

वृन्दावन के मार्ग में आने वाले तमाम पौराणिक स्थल हैं।

 

कविता 

ब्रज चौरासी कोस की,
परिक्रमा एक देत।
लख चौरासी योनि के,
संकट हरि हर लेत।।

वृंदावन के वृक्ष कों,
मरम ना जाने कोय।
डाल-डाल और पात पे,
श्री राधे-राधे होय।।

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