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22 अप्रैल 2023
बिलासपुर : हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर भगवान परशुराम का जन्मोत्सव बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। भगवान परशुराम भगवान विष्णु के दस अवतारों में से छठे अवतार माने गए हैं । भगवान परशुराम महर्षि जमदग्नि और रेणुका की पुत्र हैं। हिंदू मान्यताओं के अनुसार भगवान परशुराम का प्राकट्य काल प्रदोष काल में हुआ था । ऐसी मान्यता है कि भगवान परशुराम आज भी इस धरती पर मौजूद हैं। अक्षय तृतीया के दिन जन्म लेने के कारण ही भगवान परशुराम की शक्ति भी अक्षय थी।
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राम से इस तरह बने परशुराम
भगवान परशुराम को ऋषि जमगग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य भी कहा जाता है। लेकिन यह परशुराम के नाम से अधिक जाने जाते हैं। जन्म के बाद इनके माता-पिता ने इनका नाम राम रखा था। बालक राम बचपन से ही भगवान शिव के परम भक्त थे और शिष्य भी थे । इनकी भक्ति, योग्यता को देखते हुए भगवान शिव ने इन्हें विद्युदभि नामक अपना परशु प्रदान किया था। सदैव परशु धारण करने के कारण यह जगत में परशुराम नाम से विख्यात हो गए ।
शिव धनुष टूटने पर भग्वान राम को युद्ध के लिए ललकारा
सीता स्वयंवर के समय जब श्री राम ने शिव का धनुष तोड़ा तो पूरी सृष्टि कांप उठी थी । इसका पता लगने पर परशुराम को गुस्सा आया तुरंत राजा जनक के दरबार पहुँच गए और भगवान राम को युद्ध के लिए ललकारने लगे । जब भग्वान राम ने उन्हें अपने विष्णु अवतार होने का एहसास करवाया तो उनका क्रोध तुरंत शांत हो गया और भगवान राम ने परशुराम के अहंकार का नाश कर दिया । इसके बाद भगवान राम ने परशुराम को अमर रहने का वरदान दिया और साथ ही एक जिम्मेदारी सौंपी । उन्होंने परशुराम को अपना सुदर्शन चक्र संभाल कर रखने दिया और कहा कि अगले अवतार में जब मुझे इसकी आवश्यकता होगी तो आप मुझे वापिस लौटा देंगे ।
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भगवान परशुराम ने श्रीकृष्ण को दिया था सुदर्शन चक्र
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान परशुराम ने श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र दिया था। दरअसर गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण के दौरान भगवान कृष्ण की मुलाकात परशुराम से हुई तब उन्होंने भगवान कृष्ण को सुदर्शन चक्र दिया और कहा कि अब आप इस चक्र को संभालिए इस धरती पर पाप का भार बहुत बढ़ गया है उस भार को कम कीजिए ।
पृथ्वी को 21 बार किया था क्षत्रिय विहीन
भगवान परशुराम का जन्म ब्राह्राण कुल में हुआ था लेकिन उनका ये अवतार बहुत ही तीव्र, प्रचंड और क्रोधी स्वाभाव का था। भगवान परशुराम ने अपने माता-पिता के अपमान का बदला लेने के लिए इस पृथ्वी को 21 बार क्षत्रियों का संहार करके विहीन किया था। इसके अलावा अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए उन्होंने अपनी माता का भी वध कर दिया था। लेकिन वध करने के बाद पिता से वरदान प्राप्त करके फिर से माता को जीवित कर दिया था।