सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट भी आरटीआई कानून के दायरे में: डॉ. संघाईक
शिमला। सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट, राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री कार्यालय तक सूचना के अधिकार के दायरे से बाहर नहीं हैं। कुछ अपवादों को छोड़कर आम नागरिक के आवेदन पर वे सूचनाएं उपलब्ध कराने के लिए बाध्य हैं। सूचना का अधिकार एक मौलिक अधिकार है।
यह जानकारी प्रदेश के वरिष्ठ आरटीआई विशेषज्ञ और शिमला के राजकीय महाविद्यालय कोटशेरा में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. गोपाल कृष्ण संघाईक ने उमंग फाउंडेशन के वेबिनार ‘आरटीआई कानून और उसका उपयोग’ में दी। इसमें हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, विभिन्न महाविद्यालयों के विद्यार्थियों और एपीजी शिमला यूनिवर्सिटी के एनसीसी के कैडेटों के अलावा अनेक शिक्षकों ने भी हिस्सा लिया।
उमंग फाउंडेशन के ट्रस्टी और कार्यक्रम के संयोजक संजीव शर्मा ने बताया कि फाउंडेशन आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष में मानवाधिकारों पर जागरूकता के लिए हर रविवार को एक वेबीनार आयोजित करता है। इस कड़ी में यह पांचवा कार्यक्रम था।
डॉक्टर गोपाल कृष्ण संघाईक ने बताया आरटीआई कानून के तहत भारत का कोई भी नागरिक साधारण कागज पर संबंधित विभाग के जन सूचना अधिकारी को पत्र लिखकर ₹10 का पोस्टल आर्डर लगा कर सूचनाएं मांग सकता है। इसमें किसी विशेष फॉर्म या वकील की सहायता नहीं चाहिए होती है। हिमाचल में बीपीएल परिवारों के लिए सूचना बिल्कुल मुफ्त उपलब्ध कराई जाती है। अन्य लोगों से प्रति पेज 2 रुपए की दर से शुल्क लिया जाता है।
कानून के तहत 30 दिन के भीतर सूचनाएं उपलब्ध कराना जनसूचना अधिकारी का दायित्व है। यदि देरी से सूचना उपलब्ध कराई जाती है तो वह निशुल्क होगी। सूचना न देने या अधूरी अथवा गलत सूचना देने पर प्रथम अपीलीय प्राधिकरण में अपील की जा सकती है।
राज्य के मुख्य सूचना आयुक्त को इसकी शिकायत भी की जा सकती है। दोषी पाए जाने पर जन सूचना अधिकारी पर जुर्माना लगाया जाता है जो उसे स्वयं भरना पड़ता है। केंद्र सरकार के कार्यालयों संबंधी शिकायतें केंद्रीय सूचना आयोग के पास भेजी जानी चाहिए।
उन्होंने बताया की सूचना के दायरे में सिर्फ वही दस्तावेज आते हैं जो रिकॉर्ड में होते हैं। दस्तावेजों का मुआयना भी करने का प्रावधान है। इसके अलावा किसी भी सरकारी निर्माण कार्य में उपयोग की जाने वाली सामग्री के सैंपल भी देखे और लिए जा सकते हैं।
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट, राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री कार्यालय समेत कोई भी सरकारी विभाग अथवा सरकार से सहायता लेने वाली निजी संस्थान एवं स्वयंसेवी संगठन भी पब्लिक अथॉरिटी के तौर पर आरटीआई के दायरे में आते हैं।
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ द्वारा एक दशक पूर्व दिए गए एक महत्वपूर्ण फैसले के संदर्भ में बताया कि सुप्रीम कोर्ट के जजों की संपत्तियों और उनकी नियुक्ति से संबंधित जानकारियां भी सूचना के अधिकार के दायरे में आती हैं।
उन्होंने बताया कि अदालतों से उनके न्यायिक कार्यो और भविष्य में दिए जाने वाले फैसलों आदि से संबंधित जानकारियां इस कानून के दायरे में नहीं आती हैं। उन्होंने कई विभागों के कुछ चुनिंदा मामलों के बारे में सूचनाएं न देने के प्रावधान के बारे में भी बताया।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री कार्यालय से भी सूचनाएं प्राप्त करने का अधिकार इस कानून में दिया गया है।
फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रो. अजय श्रीवास्तव ने कहा कि इन कार्यक्रमों का उददेश्य युवाओं को जागरूक करके समाज के सबसे कमजोर वर्गों के लिए काम करने को प्रेरित करना है। कार्यक्रम के संचालन में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के पीएचडी स्कॉलर श्वेता शर्मा, अभिषेक भागड़ा, सवीना जहाँ, मुकेश कुमार और बबीता ठाकुर ने सहयोग किया।
(आरटीआई विशेषज्ञ डॉ. गोपाल कृष्ण संघाईक उमंग फाउंडेशन के वेबीनार में)