आज आदिवासियों के भगवान बिरसा की पुण्यतिथि, जानें कौन थे बिरसा मुंडा

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9 जून 2023

देश/विदेश : जल, जंगल और जमीन को लेकर आदिवासियों का संघर्ष सदियों पुराना है और आज भी चला आ रहा है। ऐसे ही एक विद्रोह के जनक की आज पुण्यतिथि है वो हैं बिरसा मुंडा । बिरसा मुण्डा का जन्म  15 नवंबर 1875 को बंगाल प्रेसिडेंसी के रांची जिले के उलीहातू गांव में हुआ था । उनके पिता का नाम सुगना मुण्डा और माता का नाम कर्मी हातू था ।

 

‘उलगुलान’ नाम से चला विद्रोह

बिरसा मुंडा छोटी उम्र के थे लेकिन कम उम्र में ही वह आदिवासियों के भगवान बन गए थे।उन्होंने 19वीं शताब्दी के अंत में अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन किया था । 1895 में बिरसा ने अंग्रेजों द्वारा लागू की गई जमींदारी और राजस्व-व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई छेड़ी। बिरसा ने सूदखोर महाजनों के खिलाफ भी बगावत की। ये महाजन कर्ज के बदले आदिवासियों की जमीन पर कब्जा कर लेते थे। बिरसा मुंडा के निधन तक चला ये विद्रोह ‘उलगुलान’ नाम से जाना जाता है।

 

आदिवासी कर्ज के जाल में लगे फंसने

औपनिवेशिक शक्तियों की संसाधनों से भरपूर जंगलों पर हमेशा से नजर थी और आदिवासी जंगलों को अपनी जननी मानते हैं। इसी वजह से जब ब्रिटिशर्स ने इन जंगलों को हथियाने की कोशिशें शुरू कीं तो आदिवासियों में असंतोष पनपने लगा। ब्रिटिश लोगों ने आदिवासी कबीलों के सरदारों को महाजन का दर्जा दिया और लगान के नए नियम लागू किए। नतीजा ये हुआ कि धीरे-धीरे आदिवासी कर्ज के जाल में फंसने लगे। उनकी जमीन भी उनके हाथों से जाने लगी। दूसरी ओर, अंग्रेजों ने इंडियन फॉरेस्ट एक्ट पास कर जंगलों पर कब्जा कर लिया। खेती करने के तरीकों पर बंदिशें लगाई जाने लगीं।

 

बिरसा को पुकारते थे ‘धरती आबा’

आदिवासियों का धैर्य जवाब देने लगा था। तभी उन्हें बिरसा मुंडा के रूप में अपना नायक मिला। 1895 तक बिरसा मुंडा आदिवासियों के बीच बड़ा नाम बन गए थे। लोग उन्हें ‘धरती आबा’ नाम से पुकारने लगे। बिरसा मुंडा ने आदिवासियों को दमनकारी शक्तियों के खिलाफ संगठित किया।

 

1900 में मुंडा और अंग्रेजों के बीच हुई आखिरी लड़ाई

अंग्रेजों और आदिवासियों में हिंसक झड़पें होने लगीं। अगस्त 1897 में बिरसा ने अपने साथ करीब 400 आदिवासियों को लेकर एक थाने पर हमला बोल दिया। जनवरी 1900 में मुंडा और अंग्रेजों के बीच आखिरी लड़ाई हुई। रांची के पास दूम्बरी पहाड़ी पर हुई इस लड़ाई में हजारों आदिवासियों ने अंग्रेजों का सामना किया, लेकिन तोप और बंदूकों के सामने तीर-कमान जवाब देने लगे। बहुत से लोग मारे गए और कई लोगों को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया।

 

अंग्रेजों ने बिरसा को जेल में दिया धीमा जहर

बिरसा का पता बताने के लिए अंग्रेजों ने 500 रुपए का इनाम रखा था। उस समय के हिसाब से ये रकम बहुत अधिक थी ।  कहा जाता है कि बिरसा की ही पहचान के लोगों ने 500 रुपए के लालच में उनके छिपे होने की सूचना पुलिस को दे दी। आखिरकार बिरसा चक्रधरपुर से गिरफ्तार कर लिए गए। अंग्रेजों ने उन्हें रांची की जेल में कैद कर दिया।  यहां उनको अंग्रेजों ने धीमा जहर दे दिया। इसके चलते 9 जून 1900 को वे शहीद हो गए।

 

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