The news warrior
13 जून 2023
हमीरपुर : हमीरपुर जिला के राष्ट्रीय शैक्षणिक संस्थान एनआईटी हमीरपुर में अव्यवस्थाएं कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। भर्ती विवादों को लेकर सुर्खियों में रहने वाले एनआईटी हमीरपुर में प्रबंधन की लापरवाही के कारण छात्रों को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है । दरअसल एनआईटी हमीरपुर के परिसर में मौजूद 23 दुकानों पर पिछले 13 दिन से ताले लटके हुए हैं।
परीक्षाओं का दौर होने से परेशानी दोगुना
उधर एनआईटी में पढ़ने वाले प्रथम वर्ष के छात्रों की परीक्षाएं भी चली हुई हैं ऐसे में छात्रों को इस दौरान स्टेस्नरी के सामान जैसे कॉपी, पेसिल आदि के लिए बाजार के चक्कर काटने पड़ रहे हैं । नाम न बताने की शर्त पर एनआईटी में पढ़ने वाले छात्रों व उनके अभिभावकों ने कहा कि परीक्षाओं के दौरान प्रशासन की यह बड़ी लापरवाही है । उन्होंने कहा कि इस दौरान विद्यार्थियों की परीक्षाएं चली हुई हैं और उन्हें पढ़ने के लिए अधिक समय की आवश्यकता होती है और परिसर में दुकानें बंद होने के कारण उन्हें जरूरी सामान के लिए बाजार की ओर रुख करना पड़ता है यही नहीं बाजार जाने के लिए संबंधित विभाग से अनुमति लेने के लिए लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है ,जिससे उनके समय की बर्बादी हो रही है । जबकि एनआईटी हमीरपुर प्रबंधन यह तर्क दे रहा है कि स्टूडेंट्स को हॉस्टल में यह सामान उपलब्ध करवाया जा रहा है।
15 जून के बाद जारी होंगे नए टेंडर
वहीं हमीरपुर प्रबंधन के द्वारा यह तर्क दिया जा रहा है कि दुकानों का संचालन टेंडर प्रक्रिया के जरिए किया जाता है। वर्तमान में 31 मई को दुकानों का टेंडर खत्म हो चुका है और पुराने ठेकेदार को 15 दिन के भीतर दुकानें खाली करने का समय दिया गया है जबकि नए टेंडर 15 जून के बाद लागू होंगे। यही नहीं प्रबंधन ने यह तर्क दिया कि संस्थान इन में दिनों प्रथम वर्ष के छात्र ही मौजूद हैं । उनका यह तर्क प्रबंधन की सजकता को दर्शाता है कि संस्थान का प्रबंधन छात्रों की सुविधाओं के लिए कितना जागरूक है ।
रजिस्ट्रार ने दिया यह तर्क
एनआईटी हमीरपुर के रजिस्ट्रार राजेश्वर का कहना है कि 31 मई को दुकानों के पुराने टेंडर समाप्त हो गए थे अब नए सिरे से टेंडर प्रक्रिया पूरी की जा रही है पुराने ठेकेदार को 15 दिन के भीतर दुकानें खाली करने का समय दिया गया है। जल्दी टेंडर प्रक्रिया पूरी कर दुकानें खोल दी जाएंगी। ऐसे में सवाल उठता है कि इसे राष्ट्रीय स्तर के संस्थान की लापरवाही मानें या कुछ और ?