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03 /05 /2022
मधुमेह मरीजों को मिलेगा इंसुलिन इंजेक्शन से छुटकारा
आईआईटी मंडी के विशेषज्ञों के शोध से बनेगी कारगर दवा
पीके2 मालीक्यूल पैंक्रियाज (अग्नाशय) में इंसुलिन का स्राव बढ़ाएगा
टाइप वन व टाइप टू के मधुमेह मरीजों को बड़ी राहत मिलेगी
मंडी:-
मधुमेह के मरीजों को अब इंसुलिन इंजेक्शन से छुटकारा मिलेगा। मरीजों को घर पर खुद इंजेक्शन लगाने या अस्पताल के चक्कर काटने के लिए विवश नहीं होगा पड़ेगा। अब दवा की गोली काम करेगी। मधुमेह के मरीजों की जिंदगी में पीके2 मालीक्यूल (अणु) मिठास भरेगा। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) मंडी के शोधार्थियों ने पीके2 मालीक्यूल को विकसित कर मधुमेह की कारगर दवा बनाने का रास्ता साफ किया है। पीके2 मालीक्यूल पैंक्रियाज (अग्नाशय) में इंसुलिन का स्राव बढ़ाएगा। यह बीटा कोशिकाओं के नुकसान को कम करेगा। इससे टाइप वन व टाइप टू के मधुमेह मरीजों को बड़ी राहत मिलेगी। मधुमेह के उपचार में एक्सेनाटाइड व लिराग्लूटाइड का इंजेक्शन मरीजों को लगाया जाता है जो महंगे हैं। इनसे उपचार भी अस्थिर है। पीके2 मालीक्यूल से सस्ती दवा बनेगी। इससे मरीजों पर आर्थिक बोझ नहीं पड़ेगा। दवा टाइप वन व टाइप टू दोनों तरह के मधुमेह के उपचार के लिए स्थिर व असरदार होगी।
इंसुलिन का स्राव कम होने से होता है मधुमेह
बीटा कोशिकाओं में इंसुलिन का स्राव कम होने से मधुमेह होता है। पैंक्रियाज की बीटा कोशिकाओं (सेल्स) से इंसुलिन का स्राव कम होने से कई रासायनिक प्रक्रियाएं प्रभावित होती हैं। इसमें ग्लूकागन लाइक पेप्टाइड (जीएलपी1आर) नामक प्रोटीन संरचनाएं शामिल होती हैं जो कोशिकाओं में मौजूद होती हैं। खाने के बाद स्रावित जीएलपी1 नामक हार्माेनल मालीक्यूल इंसुलिन का स्राव शुरू करता है। एक्सेनाटाइड व लिराग्लूटाइड जैसी दवाएं जीएलपी1 आर से जुड़कर इंसुलिन का स्राव करती हैं।
शोधकर्ताओं ने लैब में पीके2 का किया संश्लेषण
दवाओं का विकल्प तैयार करने के लिए शोधार्थियों ने पहले कंप्यूटर सिमुलेशन से विभिन्न छोटे मालीक्यूल की स्क्रीनिंग की जो जीएलपी1आर से जुड़ सकते थे। पीके2, पीके3 व पीके4 में जीएलपी1आर से जुडऩे की अच्छी क्षमता पाई गई। इसके बाद पीके2 को चुना गया। यह दूसरे पदार्थ के साथ बेहतर घुलता है। परीक्षण के लिए शोधकर्ताओं ने लैब में पीके2 संश्लेषण किया।
पीके2 आंतोंं में तेजी से हुआ अवशोषित
शोधार्थियों ने पहले मानव कोशिकाओं में मौजूद जीएलपी 1 आर प्रोटीन पर पीके 2 के जुडऩे का परीक्षण किया। इससे पता चला कि पीके2 में बीटा सेल्स से इंसुलिन के स्राव कराने की संभावना है। पीके2 आंतोंं में तेजी से अवशोषित हो गया। इससे तैयार दवा के इंजेक्शन के बदले खाने की गोली इस्तेमाल की जा सकती है। दवा देने के दो घंटे के बाद यह चूहों के लीवर, किडनी और पैंक्रियाज में पहुंच गई। दवा का कोई अंश हृदय, फेफड़े व प्लीहा में नहीं पाया गया। बहुत कम मात्रा में यह मस्तिष्क में मिली। मालीक्यूल रक्त मस्तिष्क बाधा पार करने में सक्षम रहा। लगभग 10 घंटे में यह रक्तसंचार से बाहर निकल गया।
बीटा सेल इंसुलिन बनाने के लिए आवश्यक
आइआइटी मंडी के शोधार्थी प्रो. डा. प्रोसेनजीत मंडल ने कहा कि बीटा सेल इंसुलिन बनाने के लिए आवश्यक है। इसलिए पीके2 टाइप वन व टाइप टू डायबिटीज में प्रभावी होगा। प्रयोग में शामिल चूहों को मुंह से इसकी खुराक दी गई। ग्लूकोज स्तर व इंसुलिन के स्राव का माप किया। कंट्रोल ग्रुप की तुलना में पीके2 से इलाज किए गए चूहों में सीरम इंसुलिन का स्तर छह गुना बढ़ा पाया गया।
शोध जर्नल आफ बायोलाजिकल केमिस्ट्री में प्रकाशित
शोध जर्नल आफ बायोलाजिकल केमिस्ट्री में प्रकाशित हुआ है। शोधार्थियों में स्कूल आफ बेसिक साइंसेज आइआइटी मंडी के एसोसिएट प्रो. प्रोसेनजीत मंडल, सहलेखक प्रो. सुब्रत घोष, डा. सुनील कुमार, नई दिल्ली, डा. बुधेश्वर देहुरी भुवनेश्वर, डा. ख्याति गिरधर, शिल्पा ठाकुर, डा. अभिनव चौबे, डा. पंकज गौर, सुरभि डोगरा, बिदिशा बिस्वास, डा. दुर्गेश कुमार द्विवेदी (क्षेत्रीय आयुर्वेदिक अनुसंधान संस्थान (आरएआरआइ) ग्वालियर शामिल हैं।
रामबाण सिद्ध होगा मरीजों के लिए
लाल बहादुर शास्त्री राजकीय मेडिकल कालेज एवं अस्पताल नेरचौक के प्राचार्य डा. राजेश भवानी का कहना है आइआइटी मंडी ने मधुमेह के लिए जो पीके 2 मालीक्यूल तैयार किया है, वह निकट भविष्य में मरीजों के लिए रामबाण सिद्ध होगा। मरीजों को इंजेक्शन के झंझट से निजात मिलेगी।
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