मैकाले का शैक्षणिक षड़यंत्र

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भारतवर्ष सदैव से ही विश्व में शिक्षा का केंद्र रहा। आदि काल से यहाँ शिक्षा राष्ट्र गौरव के विषय के रूप में सुशोभित रही। धर्म ग्रंथों की बहुतायत में उपलब्धता ने शिक्षा प्राप्ति के मार्ग को सुगम एवं सरल बना दिया था। यही कारण था कि भारतवर्ष में खगोल, आयुर्वेद, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, राजनीति, कर्मकांड, गणित, विज्ञान एवं नैतिक मूल्य जैसे सहस्त्रों महान विषयों का अध्ययन होता था। प्राचीनतम भारतीय इतिहास में भारतवर्ष की यह सनातन शिक्षा पद्धति विभिन्न कालों में भारतीय शासकों द्वारा सम्पोषित रही। गुरुकुल शिक्षा पद्धति, भारतीय शिक्षा व्यवस्था की एक व्यवस्थित और प्रभावशाली पद्धति थी जहाँ गुरु शिष्य का सम्बन्ध भक्त और भगवान के सम्बन्ध से भी बढ़कर था। गुरुकुलों के अतिरिक्त भारतवर्ष के कई मुख्य एवं संपन्न मंदिर भी शिक्षा का केंद्र हुआ करते थे।

यह सनातन शिक्षा पद्धति विदेशी आक्रांताओं के आने तक सफलता पूर्वक चलती रही। इसके बाद राजा रजवाड़ों के मध्य की आपसी फूट का लाभ उठाकर विदेशी आक्रांता भारतवर्ष की ओर कूच करने लगे। इन कट्टरपंथी इस्लामिक आक्रांताओं में भारतवर्ष की संपन्नता को लूटने और साम्राज्य स्थापित करने की लालसा जाग उठी। इन आक्रांताओं को पता था कि यदि भारतवर्ष में इस्लामिक साम्राज्य स्थापित करना है तो यहाँ के हिंदुओं को कमजोर करना होगा। इसके लिए आवश्यक था उनकी शिक्षा एवं सामाजिक व्यवस्था का नाश करना। बस फिर क्या था। शिक्षा देने वाले ब्राह्मणों का नरसंहार किया गया। गुरुकुलों को नष्ट कर दिया गया। मंदिर तोड़े गए और जो बची हुई शिक्षा की सुविधाएं थी उन्हें आर्थिक रूप से अपंग कर दिया गया। यह तानाशाही और क्रूरता यूरोपीय उपनिवेशवादियों के आने तक चलती रही।

यूरोपियों ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था को नष्ट करने के लिए अलग रणनीति बनाई। उनकी रणनीति क्रूरता और नरसंहार पर आधारित नहीं थी। हालाँकि ऐसा नहीं है कि यूरोपीयों ने इन साधनों का उपयोग नहीं किया लेकिन उनकी प्राथमिकता में प्रशासनिक एवं वैधानिक उपायों के द्वारा भारतीय शिक्षा पद्धति का पश्चिमीकरण निहित था। यूरोपीय ये जानते थे कि भारतीय जनमानस में जब तक उनकी सनातन शिक्षा पद्धति स्थापित है तब तक उन्हें हिंसा के द्वारा भी कमजोर नहीं किया जा सकता। भारतीय उपनिवेश की स्थापना के इसी कुलक्ष्य की सम्पूर्णता के लिए इन यूरोपीयों ने एक कूटनीति के तहत भारतीय समाज और प्राचीन शिक्षा व्यवस्था को छिन्न भिन्न कर दिया। भारतवर्ष आज भी शिक्षा की इस हीनता से जूझ रहा है। थॉमस बैबिंगटन अर्थात लार्ड मैकाले को वर्तमान भारतीय शिक्षा पद्धति का मूर्तिकार माना जाता है। मैकाले मूर्तिकार कम षडयंत्रकारी अधिक था। उसने भारत में अंग्रेजी शिक्षा के साथ यूरोपीय शिक्षा व्यवस्था लागू करने की वकालत की। उसका उद्देश्य दूरदर्शी था। वहविज्ञान और अर्थशास्त्र जैसे व्यवहारिक विषयों की शिक्षा को आम भारतियों के लिए दुष्कर बना देना चाहता था क्योंकि तत्कालीन भारतीय समाज स्थानीय भाषाओं पर अधिकतर निर्भर था। मैकाले हिन्दुस्तान में एक ऐसी पीढ़ी तैयार करना चाहता था जो अंग्रेजी साम्राज्य की नीतियों की वकालत करे। इस कार्य के लिए उसने मानविकी और विज्ञान की शिक्षा को अंग्रेजी के अधीन करके भारतवर्ष के सामान्य नागरिकों के लिए उच्च शिक्षा के मार्ग बंद कर दिए। हालाँकि उस दौर में कुछ भारत समर्थक अंग्रेजों ने इसका विरोध किया लेकिन इनकी संख्या बहुत कम थी अतः इनके स्वरों को दबा दिया गया। मैकाले ये जानता था कि अंग्रेजी हुकूमत का भविष्य अब भारतवर्ष में बहुत दिनों तक नहीं रहेगा अतः उसने भारतवर्ष के भीतर एक ऐसा वर्ग तैयार करने का प्रयास किया जो भविष्य में भी ब्रिटेन से आर्थिक और राजनैतिक सम्बन्धों का समर्थक हो I

भारतीय शिक्षा के पश्चिमीकरण का प्रभाव दिखा भी। भारतवर्ष की महान मानविकी और विज्ञान की शिक्षा का ह्वास होने लगा। यूरोपीय साहित्य भारत के उच्च वर्ग का फैशन बन गया। निम्न एवं मध्यम वर्ग औद्योगिक क्षेत्रों में मजदूरी करने लायक बचा। शिक्षा में असंतुलन बढ़ने लगा। तकनीकी और चिकित्सा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में अंग्रेजी भाषियों का प्रभुत्व स्थापित हो गया। शिक्षा व्यवसाय में बदल गई। भारत से ब्रिटेन जाने वाले छात्रों की संख्या लगातार बढ़ने लगी और भारत में यूरोप आधारित शिक्षा व्यवस्था स्थापित हो गई।

आज देश को आज़ाद हुए भी 73वर्ष पुरे होने को है और मैकाले ने अपनी शिक्षा को भारत में लागु करने की शुरुआत 1835 में की थी । परन्तु चिंता का विषय भारत में सरकारों की कार्य प्रणाली को लेकर है कि मैकाले की निति को बदलने के लिए हम 200 वर्ष पुरे होने के वावजूद भी अधर में लटके है । हिंदुस्तान की राष्ट्रवादी जनता हर सरकार की तरफ देखती है परन्तु ताकते ताकते 200 वर्ष पुरे होने को है और अभी भी हम गुलामी की शिक्षा निति में बंधे है । कब बदलेगी शिक्षा व्यवस्था, इस प्रशन का संशय आज भी बना हुआ है ।मोदी 2. के बाद शिक्षा में क्रांति की उम्मीद जरुर जागी है परन्तु कब बदलाव होगा इसका जबाब हम भी तलाश रहे है ।

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