लेखिका
तृप्ता भाटिया
सामाजिक कार्यकर्त्ता हैं सोशल मीडिया पर व्यंग लिखती हैं
कांगड़ा जिला के नगरोटा बंगवा से
“मन तो करता है कि कुछ लोगों के पाखंड की धज्जियां उड़ा दूँ”
मन तो करता है कि कुछ लोगों की और उनके पाखंड की धज्जियां उड़ा दूँ, उनकी धार्मिक और राजनीतिक भावना को इतना आहत करूँ कि ज्ञान देना भूल जायें ,फिर सोचती हूँ इनका वही हाल है जैसा “सावन के अंधे को सब हरा-हरा दिखता है” । कुछ लोगों ने औकात में छोटा समझा वो छोटा समझ के आशीर्वाद दे दें। जिनको लगता है मेरा कोई एजेंडा है, तो है हर किसी को सपने देखने का हक़ है, यह हक़ चंद बड़े अमीर या पावर मे बैठे लोगों का ही नहीं है। मेरे पास वही है जो समाज ने दिया है , छुआछुत, गरीबी और इंसान को इंसान न समझ के छोटा-बड़ा समझना भेदभाव करना।जिस समाज में औरत किसी का पक्ष लेने से रंडी, नाजायज़, डायन और पता नहीं क्या -क्या हो जाती है और कुछ औरतें इसलिए लाइक कर रहीं की वो उनकी विरोधी विचारधारा की हैं तो सही आप लड़ाई नहीं लड़ सकते।
जहां आपको मन्दिर जाने का अधिकार नहीं है और धिक्कार है आपके हिन्दू होने पर लड़ाया जाये तो मुझे कहीं न कहीं वो खलता है। जहां आपका उत्पीड़न सिर्फ क्षेत्रवाद से हो ये निचली हिमाचल के हैं हम इन्हें आफिस में कॉपोरेट क्यों करें तो चुभता है।
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जहां कोई औरत सिर्फ अपने अधिकार का प्रयोग करे और उसे सोशल मीडिया पर गंदी गंदी गलियां दी जाएं तो मन दुखता है। दुख इस बात का भी है कि खुद की नस्लें पब में नगां नाच रहीं वो न देख कर विदेशी महिला पर गन्दे कॉमेंट करते हैं। अपने बच्चे नालायक हैं और दूसरों के पढ़ रहे तो तकलीफ है, मुझे दुखता है। कोई भूखे पेट, बिना चप्पल बूट के दिख जाए तो मुझे दुखता है।
कोई पढ़ने की उम्र में टायर पंचर लड़की लगा रही हो तो मुझे दुखता है। कोई किसी की हवस का शिकार हो जाये और लोग चरित्रहीन बोल दें तो मुझे दुखता है।
मुझे दुखता है जब कोई भूखे पेट सो जाये, मुझे दुखता है जब कोई बच्चा अनाथ हो जाये। मुझे दुखता है जब जवान बेटों की लाश तिरंगे में लिपट कर आती है।
मुझे दुखता है जब कोई मेहंदी लगे हाथों से अपने मंगलसूत्र उतरतीं हैं।
मैं परेशान हूँ इन मजहबी नफरतों से, मैं परेशान हूँ जहां खुद के बच्चों को बच्चा समझा जाता है और दूसरों के बच्चों को नौकर।मुझे दुखता है जब किसी के अहम की बजह से सड़क एक्सीडेंट में किसी की मौत हो जाती जाती है। मुझे सूनी मांग, सुनी कलाई दुखती है और सफेद लिवास दुखता है। मुझे दुखता है जब अमीर गरीब के हक़ का न्याय भी छीन लेते हैं।
मुझे सच्च में दुखता है कि जब हम अच्छा इन्सान बनने की कोशिश में होते है और लोगों को दिखावा पसन्द होता है। कभी-कभी तो सच में लगता ही कि मैं इस दुनिया के और कुछ लोगों के लायक नहीं हूँ!
नोट – यह लेखिका के निजी विचार हैं
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