गाँव से होकर गुजरता है आत्मनिर्भर भारत का रास्ता…

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“गांव” हर काम काजी व्यक्ति के लिए संबल का प्रतीक हैं। बड़े-बड़े शहरों या विदशों में काम करने वाले भारतीय जब भी थोड़े उदास होते हैं, किसी परेशानी में फंसते हैं, किसी त्योहार में अकेले पड़ जाते हैं या वहां प्रदूषण आदि जब बढ़ जाता है तो अचानक से गांव की याद आती है। मैंने कई लोगों को कहते सुना है और सुनता आ रहा हूं, ‘ज्यादा दिक्कत होगी तो गांव चला जाऊंगा, वहीं अपने घर में रहूंगा और खेती-बाड़ी करूंगा। भले कोई सुख सुविधा न मिले पर वहां सुकून तो मिलेगा। ‘ ऊपर की ये बातें अधिकांश भारतीयों के जीवन में लागू होती हैं, चूंकि भारत को गांवों का देश भी कहा जाता है। वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़े भी कहते हैं कि भले ही शहर बढ़ रहे हों, लेकिन गांवों की आबादी में भी इजाफा हुआ है।

गांव हमेशा से प्रासंगिक रहे हैं लेकिन एक वैश्विक महामारी कोरोना वायरस ने गांव की महत्ता को आज और बढ़ा दिया है। चूंकि इस वायरस का फिलहाल कोई इलाज नहीं है इसलिए सरकार ने इसका प्रसार न हो इसके लिए लगभग दो महीने से ज्यादा का लॉकडाउन घोषित किया।

आर्थिक क्षेत्र में भारत को एक नया मॉडल अपनाने की आवश्यकता है। यह मॉडल अपनी प्रकृति में देशज और स्थानिक होगा। यह सत्य है कि कोरोना संकट ने भारत के सामने अपनी अर्थव्यवस्था के व्यापक विकास और अंतरराष्ट्रीय विस्तार का ऐतिहासिक अवसर उपलब्ध कराया है। इस संकट के फलस्वरूप विश्व बिरादरी में चीन की साख में जबरदस्त गिरावट आई है। अमेरिका से लेकर यूरोपीय और अफ्रीकी देशों में भारत की विश्वसनीयता बढ़ी है। यह बढ़ी हुई विश्वसनीयता कोरोना संकट से निपटने में भारत द्वारा प्रदर्शित अभूतपूर्व क्षमता और अंतरराष्ट्रीय सहयोग और समन्वय के लिए की गई उसकी पहल का ही परिणाम है। इस लॉकडाउन के दौरान अचानक तेजी से चल रहा देश थम गया और जो जहां था वहीं फंस गया। इतने समय के दौरान शायद ही ऐसा कोई आदमी हो जिसे अपने गांव की याद न आई हो। हमारे देश का श्रमिक वर्ग जो विभिन्न राज्यों में अपनी श्रम शक्ति/कौशल का इस्तेमाल कर देश की अर्थव्यवथा को गति दे रहा है वह अपने-अपने गांव आने के लिए आतुर दिखा। श्रमिक सब छोड़-छाड़ कर पहले अपने गांव लौटना चाहते थे, इसकी तसदीक रोज टीवी और समाचार पत्र कर रहे थे। इस दौरान कई दुर्भाग्यपूर्ण हादसे भी हुए फिर भी कई लोग दिखे जो साइकिल, पैदल, खुले ट्रकों में, ट्रेन से जैसे भी हो गांव लौटने पर अड़े दिखे।

लॉकडाउन में अपने अपने प्रदेश लौटते श्रमिक

फिलहाल काफी लोग अपने-अपने प्रदेश लौट चुके हैं और लौटने का क्रम लगातार जारी है। कोरोना के भय और लॉकडाउन की दिक्कतों के कारण वापस लौटे श्रमिकों में से अधिकांश का कहना है कि अगले कुछ महीनों तक वे अपने गांव में ही रहेंगे। इतने बड़े पैमाने पर गांव में मानव संपदा लौटने से किसी भी प्रदेश की दशा और दिशा में बदलाव आ सकता है और वह आत्मनिर्भर बनने की दिशा में आगे बढ़ सकता है।

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भारत को आत्मनिर्भर बनाने का आह्वान किया है। उन्होंने हाल ही में एक विशेष आर्थिक पैकेज का भी ऐलान किया है जिसकी मदद से इस लक्ष्य को पाया जा सकता है। गांव कैसे सशक्त हों, हर हाथ को काम मिले, किसानों को आर्थिक समस्या न हो और उत्पादों का भी उचित मूल्य मिले इससे जुड़ी हर बात का ध्यान रखा गया है।

केंद्र सरकार ने मनरेगा में औसत मजदूरी दर 182 से बढ़ाकर 202 रुपये कर दिया है साथ ही बारिश के दिनों में काम मिलने में दिक्कत न हो इसके लिए  मनरेगा में काम के दायरे को बढ़ाया गया है। पीएम मोदी ने भी कहा कि देश की आत्मनिर्भरता में संसार के सुख, सहयोग और शांति की चिंता होती है. पहली बार देश के किसी पीएम ने लोकल स्तर पर मैन्युफैक्चरिंग की जोरदार तरीके से वकालत की और इसे आम जनजीवन के मूल मंत्र के तौर पर स्थापित करने का नारा दिया है.
सही मायनों में देखा जाए तो किसान और श्रमिकों की खुशहाली ही देश की आर्थिक तरक्की की नींव हैं। केंद्र सरकार ने 18,700 करोड़ रुपये डीबीटी (डायरेक्ट बेनीफिट ट्रांसफर) के माध्यम से किसानों के खाते में ट्रांसफर किए हैं। तीन महीनों तक उन्हें यह राशि दी जानी है। फसलों की बिक्री भी किसान अब ऑनलाइन कर सकते हैं।

बहुत सारे लोगों के मन में ये सवाल उठ रहा है कि इस 20 लाख करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज का फायदा देश के आम लोगों तक पहुंचेगा कैसे.

इसका फायदा मुख्य तौर पर तीन वर्गों को मिलेगा. पहला वर्ग उन श्रमिकों और गरीबों का है जो इस कोरोना वायरस से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं. इसके पहले भी सरकार ने इस वर्ग के लिए कुछ राहत पैकेज की घोषणा की थी. इसके तहत गरीबों और श्रमिकों को जनधन खातों, आधार कार्ड और मोबाइल फोन के जरिए ये राहत पहुंचाई जा सकती है. दूसरा वर्ग, मध्यम वर्ग है. इस वर्ग को टैक्स और EMI में राहत दी जा सकती है. संभव है कि सरकार लोन पर ब्याज चुकाने की सीमा कुछ और आगे बढ़ा दे और आपको अगले 6 से 12 महीनों के लिए ब्याज चुकाने से राहत मिल जाए.

उद्योगपतियों को भी राहत पैकेज के जरिए कुछ राहत दी जा सकती है. ताकि कोरोना के बाद उद्योग धंधों को आगे बढ़ने में आसानी हो सके.उद्योग जगत और सेवा-क्षेत्र के व्यापक विस्तार के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था अपनी प्रकृति में मूलत: कृषि आधारित है।

खेती-बाड़ी और उससे संबंधित कामों पर देश की दो-तिहाई जनसंख्या की निर्भरता है। इसके बावजूद भारत में किसान, किसानी और गांव उपेक्षित हैं। किसानी के क्रमश: लाभरहित उद्यम बनते चले जाने की मजबूरी में मजदूरी और छोटे-मोटे काम की तलाश में शहरों की ओर पलायन करने वाले ग्रामीणों की संख्या बढ़ती जा रही है। इसे रोकने के लिए व्यापक निर्णय लेने होंगे और गांवों को रहने लायक बनाने की दूरगामी रणनीति बनानी होगी। गांधी जी द्वारा प्रतिपादित ग्राम स्वराज के आधारभूत तत्व-समानता, स्वावलंबन, स्वदेशी, विकेंद्रीकरण आदि हैं। अत: ग्रामीण आर्थिक संकट के संसाधन के लिए परिवारों को अपने ही गांव में मेहनत कर बुनियादी जरूरतें पूरी करने में सक्षम बनाएं। यदि गांव में हमें ऐसी सोच चाहिए, जो कमजोर वर्ग के रहते हुए ही सब परिवार अपनी आर्थिक जरूरतें पूरी करने में सक्षम होते हैं तो इसके साथ यह संभावना भी जरूरी है कि गांव के मेहनतकश अपने गांव व आसपास के खेत, चरागाह, वन, जलस्रोत सुधारकर गांव के दीर्घकालीन विकास व गांव के पर्यावरण कीरक्षा की संभावनाओं को निरंतर बढ़ा सकेंगे। प्रदेश सरकारो से आह्वान है की बह जो लोग बापिस आये है उनके रोज़गार के लिए नए रास्ते शुरू करे | कुशल प्रदेश सरकार बही होगी जो बाहिर से आये हुए अपने लोगो को रोज़गार के अवसर मुहिया करवाएगी और उन्हें वापिस नहीं जाने देगी | ऐसा मौका दोबारा नहीं मिलेगा ,ऐसी क्रीम लाभी बापिस नहीं आएगी ऐसा प्राय: देखा गया है कि संकट की घड़ी में कोई भी परिवार एकजुट होता है, आज हम एक अदृश्य दुश्मन का मुकाबला कर रहे हैं। इस समय हम और पूरा देश एकजुटता से ही इसे परास्त कर सकते हैं। ऐसे में हमारा दायित्व बनता है कि हम हर उस व्यक्ति को संबल दें, हर हाथ को काम मिले उस रास्ते को बताने का प्रयास करें जिससे भारत एक बार फिर सोने की चिड़िया बनने की ओर अग्रसर हो।

यह भी पढ़ें – : गारंटी रोजगार प्रदान करने की नई पहल

 

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