वोकल फॉर लोकल नयी शिक्षा नीति

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वोकल फॉर लोकल नयी शिक्षा नीति

 

लेख़क

हेमान्शु मिश्रा

हिमाचल प्रदेश सरकार में अतिरिक्त महा अधिवक्ता हैं !

 

कुछ परिवर्तन दूरगामी प्रभाव छोड़ते हैं , जिससे देश, समाज, सम्पूर्ण विश्व , लोगों के व्यक्तित्व तो प्रभावित होते ही हैं बल्कि देश की छवि , वैश्विक अवधारणा और देश के प्रति समझ भी बदलती है । कभी सपेरों के देश से बदनाम हम अब माउस के महारथियों में जाने जा रहे है । लेकिन विश्व गुरु के स्वप्न को पूरा करने के लिए कई निर्णय आवश्यक थे । करोना महामारी के बीच जहाँ भारत की नयी शिक्षा नीति 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई  कैबिनेट ने 29 अगस्त को मंजूरी दी,  वहीँ प्रधानमन्त्री जी ने वोकल फॉर लोकल का नारा भी दिया । नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति का मसौदा पूर्व इसरो प्रमुख के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में विशेषज्ञों की एक समिति ने तैयार किया है । नई शिक्षा नीति ने 34 साल पुरानी शिक्षा नीति को बदला है, जिसे 1986 में लागू किया गया था। नई नीति का लक्ष्य भारत के स्कूलों और उच्च शिक्षा प्रणाली में इस तरह के सुधार करना है कि भारत दुनिया में ज्ञान का ‘सुपरपॉवर कहलाए। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 21वीं सदी के नए भारत की नींव तैयार करने वाली है। हर देश को अपनी शिक्षा व्यवस्था को अपने राष्ट्रीय मूल्यों,  आर्थिक चिन्तन और समाजिक उदेश्यों को ध्यान में रखते हुए , अपने राष्ट्रीय ध्येय के अनुसार सुधार करते हुए चलना चाहिए । उसी के अनुरूप नयी राष्ट्रिय शिक्षा नीति स्वागत योग्य और राष्ट्रिय हित में है ।

बदलते समय के साथ एक नई विश्व व्यवस्था खड़ी हो गई है। एक नया ग्लोबल स्टैंडर्ड भी तय हो रहा है।  बदलते वैश्विक मानकों  के हिसाब से भारत की शिक्षा प्रणाली में बदलाव करने भी बहुत जरुरत थी । हमें अपने विद्यार्थियों  को वैश्विक नागरिक भी बनाना है और उसे जड़ों से भी जुड़े रहने को प्रेरित करना है ।  इन्ही उदेश्यों को ध्यान में रख कर शिक्षा नीति 2020 में शिक्षा पर सकल घरेलू उत्पाद का 6% खर्च किया जाना तय किया गया है  जो  अभी 4.43% है ।

9 सितम्बर हिमाचल प्रदेश के लिए और भी ऐतिहासिक है, जहाँ परम वीर चक्र विजेता शहीद कैप्टेन विक्रम बत्रा की जयंती के अवसर पर हिमाचल में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को तत्काल प्रभाव से लागू कर दिया । इसके लिए माननीय मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर और उनका मंत्रिमंडल बधाई के पात्र हैं । इसे सफलतापूर्वक लागू करने के लिए शिक्षा मंत्री गोविन्द ठाकुर की अध्यक्षता में 43 सदस्यों की टास्क फोर्स का भी  गठन किया गया है । टास्क फ़ोर्स का दायित्व है कि वो  नरेंद्र मोदी जी की सोच , विधायिका की मंशा और प्रदेश की आवश्यकताओं  के अनुरूप हिमाचल में इस नीति को अक्षरश लागू करवाए ।

हिमाचल के सन्दर्भ में शिक्षा नीति ऐसी हो जो हिमाचल की समाजिक आर्थिक और क्षेत्रीय  जरूरतों की पूर्ति करती हो , हिमाचल के छात्रों में वैश्विक प्रतिस्पर्था के समकक्ष खड़ी करती हो ।

हमारे पास हिमाचल में संसाधनो की प्रचुरता है , लेकिन हमने उनके उपयोग की कोई योजना ही नही बनाई है । इसी लिए नयी शिक्षा नीति में हमे छात्रों को  अपने गाँव के इतिहास ,विकास, भूगोल, परम्पराओं, बोलियों ,व्यंजनों ,परम्परागत ज्ञान और सम्भावित उद्योगों से परिचित करवाना चाहिए । अपने गाँव के इतिहास ,प्रमुख घटनाओं , ऐतिहासिक व्यक्तित्वों ,ऐतिहासिक धरोहरों ,  कृषि कार्यों , कुहल एवं सिंचाई के इतिहास के साथ जल जंगल जमीन और जानवरों के प्रबन्धन से भी  छात्र परिचित होने चाहिए।

बहुत दुःख होता है जब हमारे छात्र तैमुर लंग, इल्तुम्श और खिलजी वंश तो पढ़ लेते हैं परन्तु यह बहुत कम जानते है कि 1857 में भारत के  प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में हिमाचल कांगड़ा में रजेहड़ (पालमपुर) के  वीर सिंह कटोच जी और कुल्लू के  ठाकुर प्रताप सिंह जी  ने  फांसी के फंदे को चूम कर शाहदत पायी थी और 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल बजाय था । उसी समय कुल्लू के सूरत राम सरदूल आदि अन्य लोगों को 8 साल तक अंग्रेजों ने जेल भेज दिया गया । रजेहड़ गांव के वीर चंद स्वतंत्रता संग्राम के पहले शहीद हैं परन्तु वर्तमान पाठ्यक्रम में उन्हें कहीं स्थान नही दिया गया । श्री के सी यादव की पंजाब के शहीदों पर लिखी  पुस्तक के पृष्ठ 339 में इसका पूरा वर्णन डिप्टी कमिश्नर टेलर के नोट के साथ है । आशा है नयी शिक्षा नीति में बनने वाले पाठ्यक्रम में  हिमाचल से जुड़े इए अनेक ज्ञात अज्ञात घटनाओं व्यक्तिओं को स्थान मिलेगा और छात्र मिटटी से जुड़ेंगे .

वहीँ भी देखने में आया है की क़ानून व्यवस्था की समस्या जमीन के विवादो के कारण भी उत्पन्न होती है ,  ऐसे में अपने गाँव के भूगोल और राजस्व इकाई से छात्र परिचित होना चाह्हिये । कानून व्यवस्था को सुधारने में यह एक बहुत  ही कारगर कदम रहेगा, छात्रों को  अपने गाँव और अपनी पंचायत की प्रशासनिक सीमाएं का ज्ञान होना चाहिए । अपने गाँव के संसाधनो के स्थान महत्व और उपयोगिता  की जानकारी होनी आवश्यक होनी चाहिए इससे रोजगार के अवसर स्थानीय स्तर पर सृजित किये जा सकेंगे । अपने गाँव में बहने वाले नदी, नाले ,जल निकासी, जल वितरण की जानकारी होनी चाहिए । गाँव में विकास के लिए सरकारी भूमि आवश्यक होती है,  छात्रों को गाँव की सरकारी भूमि और उसके प्रकार की जानकारी स्कूल के दौरान ही होनी चाहिए । अपने गाँव में वन आच्छादित क्षेत्र की जानकारी पाठ्यक्रम में होनी चाहिए । अपने गाँव के मेलों और त्योहारों की विस्तृत जानकारी को भी पाठ्यक्रम में होने चाहिए  । अपनी लोक संस्कृति , लोक गीत ,लोक नृत्य नाटी और लोक वाद्यों  की जानकारी , गाँव के मन्दिर धार्मिक स्थल की जानकारी व इतिहास प्रबंध समिति की जानकारी छात्रों को रहेगी तो उनका जुड़ाव भी अपने गाँव से हमेशा बना रहेगा । कहते हैं पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी पहाड़ के काम नही आती अर्थात पहाड़ के प्राकृतिक संसाधन और मानव संसाधन का उपयोग प्रदेश के अंदर नही होता है और नयी शिक्षा नीति इसी अवधारणा को बदलने का सबसे उपयुक्त अवसर है ।

 

नयी शिक्षा नीति में अब पांचवी कक्षा तक की शिक्षा मातृ भाषा में होगी । मुझे लगता है की इसको आगे बढाते हुए, गाँव में बोले जाने वाली स्थानीय बोली का ज्ञान और  माँ बोली  के मुहावरों  की जानकारी हर छात्र को रहनी चाहिए , इसी सन्दर्भ में माँ बोली में गाए जाने वाले धार्मिक भजन गीत इतियादी को लिपिबद्ध करना , गाँव में विवाह आदि सभी समय में गाए जाने वाले गीतों की जानकारी और उन्हें लिपिबद्ध करना भी छठी से नवमी के पाठ्यक्रम का हिस्सा रहना चाहिए । अपने गावों में बनने वाले पारम्परिक व्यंजन जैसे मदरा ,सेपू बड़ी ,धुली मुंगी, स्थानीय धाम, सिड्डू, पतरोड़े आदि अनेक व्यंजनों को भी छठी से नवमी के पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए ।

कुल मिलाकर नयी शिक्षा नीति से अपेक्षा है कि वैश्विक प्रतिस्पर्धा में लोहा लेने वाले अच्छे वैज्ञानिक डॉक्टर इंजिनियर अध्यापक वकील प्रशासनिक अधिकारी किसान स्वरोजगार में आगे बढ़ते लोगों की फ़ौज को तैयार की जा सके जो आत्मनिर्भर हो जिसे अपनी माटी से प्यार हो और जो अपनी माटी के संसाधनों के उपयोग से खुद के साथ अन्य अनेक लोगों के रोजगार के अवसरों को भी सृजित करे । टास्क फ़ोर्स को बहुत बड़ा काम नरेंद्र मोदी जी और जय राम ठाकुर जी ने दिया है .

 

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