फिल्म नगरी मुंबई की चमक दमक भरी जिन्दगी से अक्सर नौजवान आकर्षित हो कर मुम्बई का रूख करते है। उन्हे अपने हुनर पर भरोसा होता है, परन्तु जब वह वहां की असलियत से रूबरू होते है तो बहुत से लोग उस चमक की जगह इस फिल्मी दुनिया की भद्दी शक्ल का दीदार करते हैं। अभी हाल ही मे ऐसे एक हुनर वाले कलाकार श्री सुशांत सिंह राजपूत की आत्म हत्या ने इस महानगरी की नकाव खींचकर उसकी बदसूरत शक्ल सबके सामने ला दी है।
कहते है कि फिल्म जगत मे एक ऐसा माफिया सक्रिय है जो बाहर से आए कलाकारों को जमने नही देता है। वह वहां कुछ परिवारों का ही अधिपत्य चाहते है। मिडिया मे उस माफिया मे फिल्म जगत से जुड़े बड़े लोगों का नाम लिया जा रहा है। कहा जा रहा है कि इन लोगों ने उसे इतना परेशान और प्रताड़ित किया कि वह डिप्रेशन मे चला गया था। इस प्रताड़ना ने ही उसे आत्म हत्या करने पर मजबूर कर दिया और देश ने एक प्रतिभा को खो दिया।
राजनैतिक क्षेत्र मे भी इस प्रकार का माफिया सक्रिय रहता है। यदि आपका कोई आका नहीं है और योग्यता भले कितनी भी है। आप आत्म हत्या करें न करें परन्तु आपकी राजनैतिक हत्या कर दी जाएगी। मै भी ईर्ष्या और नफ़रत का शिकार हो चुका हूँ। परन्तु आज मै राजनीति के एक स्थापित नेता का ही उल्लेख करूंगा जिसने भले राजनीति के शिखर को छूआ पर फिर भी जीते जी और मरने के बाद भी प्रताड़ित हुआ। आजकल तेलगांना पूर्व प्रधानमंत्री श्री नरसिम्हा राव की जन्म शताब्दी मना रहा है। इसी सन्दर्भ मे दो लेख अखबारों मे छपे है।
एक श्री शांता कुमार जी का और दूसरा पूर्व विदेश सचिव श्याम शरण जी का। इन दोनो के लेखो ने मुझे आज की यह पोस्ट लिखने के लिए प्रेरित किया है। हालांकि श्री राजीव गांधी की हत्या के बाद 1991 मे कांग्रेस की अल्पमत की सरकार का नेतृत्व करने का श्री नरसिम्हाराव को अवसर मिला । वह देश को दक्षिण भारत से पहले प्रधानमंत्री मिले थे। यह भी ठीक है की अल्पमत को बहुमत मे बदलने के चक्कर मे उन्हे एक आपराधिक मामले मे सजा भी हुई थी। परन्तु यह भी सच्चाई है कि कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद दस जनपथ ने कभी उस सरकार को पूरी तरह कांग्रेस की सरकार की मान्यता नही दी थी।
वह सरकार इतिहास मे अपने आर्थिक सुधारों को लेकर सदा याद की जाएगी। उस सरकार ने इस देश की अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी थी। इन दो लेखकों के लेख पढ़ने के बाद मेरे मन मे नरसिम्हाराव के बारे मे कई भ्रातियां दूर हुई है। कमियां तो हर इंसान मे होती है, परन्तु उन्हे वह आदर अंतिम समय नही मिला जिसके वह हकदार थे।
फिल्म नगरी मुंबई की चमक दमक भरी जिन्दगी से अक्सर नौजवान आकर्षित हो कर मुम्बई का रूख करते है। उन्हे अपने हुनर पर भरोसा होता है, परन्तु जब वह वहां की असलियत से रूबरू होते है तो बहुत से लोग उस चमक की जगह इस फिल्मी दुनिया की भद्दी शक्ल का दीदार करते हैं। अभी हाल ही मे ऐसे एक हुनर वाले कलाकार श्री सुशांत सिंह राजपूत की आत्म हत्या ने इस महानगरी की नकाव खींचकर उसकी बदसूरत शक्ल सबके सामने ला दी है।
कहते है कि फिल्म जगत मे एक ऐसा माफिया सक्रिय है जो बाहर से आए कलाकारों को जमने नही देता है। वह वहां कुछ परिवारों का ही अधिपत्य चाहते है। मिडिया मे उस माफिया मे फिल्म जगत से जुड़े बड़े लोगों का नाम लिया जा रहा है। कहा जा रहा है कि इन लोगों ने उसे इतना परेशान और प्रताड़ित किया कि वह डिप्रेशन मे चला गया था। इस प्रताड़ना ने ही उसे आत्म हत्या करने पर मजबूर कर दिया और देश ने एक प्रतिभा को खो दिया।
राजनैतिक क्षेत्र मे भी इस प्रकार का माफिया सक्रिय रहता है। यदि आपका कोई आका नहीं है और योग्यता भले कितनी भी है। आप आत्म हत्या करें न करें परन्तु आपकी राजनैतिक हत्या कर दी जाएगी। मै भी ईर्ष्या और नफ़रत का शिकार हो चुका हूँ। परन्तु आज मै राजनीति के एक स्थापित नेता का ही उल्लेख करूंगा जिसने भले राजनीति के शिखर को छूआ पर फिर भी जीते जी और मरने के बाद भी प्रताड़ित हुआ। आजकल तेलगांना पूर्व प्रधानमंत्री श्री नरसिम्हा राव की जन्म शताब्दी मना रहा है। इसी सन्दर्भ मे दो लेख अखबारों मे छपे है।
एक श्री शांता कुमार जी का और दूसरा पूर्व विदेश सचिव श्याम शरण जी का। इन दोनो के लेखो ने मुझे आज की यह पोस्ट लिखने के लिए प्रेरित किया है। हालांकि श्री राजीव गांधी की हत्या के बाद 1991 मे कांग्रेस की अल्पमत की सरकार का नेतृत्व करने का श्री नरसिम्हाराव को अवसर मिला । वह देश को दक्षिण भारत से पहले प्रधानमंत्री मिले थे। यह भी ठीक है की अल्पमत को बहुमत मे बदलने के चक्कर मे उन्हे एक आपराधिक मामले मे सजा भी हुई थी। परन्तु यह भी सच्चाई है कि कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद दस जनपथ ने कभी उस सरकार को पूरी तरह कांग्रेस की सरकार की मान्यता नही दी थी।
वह सरकार इतिहास मे अपने आर्थिक सुधारों को लेकर सदा याद की जाएगी। उस सरकार ने इस देश की अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी थी। इन दो लेखकों के लेख पढ़ने के बाद मेरे मन मे नरसिम्हाराव के बारे मे कई भ्रातियां दूर हुई है। कमियां तो हर इंसान मे होती है, परन्तु उन्हे वह आदर अंतिम समय नही मिला जिसके वह हकदार थे।