कब जागेंगे फोरलेन विस्थापित व प्रभावित -: Adv. विजय ठाकुर

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          लेखक
विजय ठाकुर अधिवक्ता
अध्यक्ष, जिला समाज सुधार मंच
बिलासपुर (हिमाचल प्रदेश)
नोट -: यह लेखक के निजी विचार हैं
कब जागेंगे फोरलेन विस्थापित व प्रभावित?
हिमाचल प्रदेश में भूमि की खरीद-फरोख्त पटवार सर्कल की औसत कीमत के आधार पर होती थी। हिमाचल में फोरलेन प्रोजैक्ट आने से पहले एक सोची समझी चाल के तहत ज़मीन के सर्कल रेट फिक्स कर दिए गए। न तो किसी ज़मीन के मालिक को सुना गया न ही किसी को भी पक्ष रखने का मौका दिया गया। हमने जिलाधीश महोदय बिलासपुर को आपत्तियां भी पेश की लेकिन सरकार की नियत कुछ और थी इसलिए कोई सुनवाई न हुई।
हिमाचल का भोला किसान-बागवान इस चाल को न समझ सका। इसके तुरंत बाद हिमाचल में फोरलेन के लिए भू-अधिग्रहण शुरू हुआ। किसानों की भूमि का अधिग्रहण आनन-फानन में शुरू हो गया क्योंकि जल्द ही इस बारे में नया कानून लागू होने वाला था। इसकी मार जिला बिलासपुर के किसानों को ऐसी पड़ी कि जहां 100% सोलिसियम मिलना था वहां एक रूपया भी सोलिसियम का नहीं मिला। सरकारी तंत्र द्वारा मनमाने सर्कल रेट को, मुआवज़ा निर्धारित करती बार तरजीह दी गई। किसान अदालत में इस अन्याय के खिलाफ जंग लड़ रहा है, पता नहीं कौन सी पीढ़ी अंतिम फैसला सुनेगी।
इससे भी बड़ी दुर्दशा यह हुई कि नए कानून के प्रावधान के अनुसार फैक्टर 1 या फैक्टर 2 का फैसला प्रदेश सरकार को करना था। उस समय की तत्कालीन सरकार ने 01-04-2015 को सर्कुलर जारी कर दिया कि हिमाचल में फैक्टर 1 ही लगेगा। लेकिन हमे कुछ उम्मीद तब बंधी जब भारतीय जनता पार्टी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र (स्वर्णिम हिमाचल दृष्टि पत्र) में वायदा किया कि पार्टी के सत्ता में आने पर किसानों से अधिकृत की जाने वाली कृषि भूमि के मुआवजे का भुगतान केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित 4 गुना की दर से किया जायेगा। साफतौर पर कहा जाये तो फैक्टर 2 लागू करने का वायदा किया।
सरकार को बने तीन वर्ष बीत गए लेकिन किसानों की सुध किसी ने नहीं ली। वर्ष 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि कृषि करना हमारे किसान की जीविका से जुड़ा है, ज़मीन उसकी सिक्योरिटी है। किसान-बागवान सिर्फ और सिर्फ कृषि पर निर्भर हैं। किसान तो खेतों में पसीना बहाने के अलावा अन्य कोई हुनर नहीं जानता, जैसे ही उसे उजाड़ा जाता है, उसकी दुनिया खत्म हो जाती है, जैसे आकाश में उड़ने वाले पक्षी के पंख काट लिए गए हों। सरकार ने तो सड़क पर टोल बैरियर लगाकर खूब पैसा कमाना है तो फिर किसान को देने में हिचकिचाहट क्यों? जब तक टोल रहे, तब तक उससे प्राप्त होने वाली आमदन का कम से कम 5% तो विस्थापित किसानों को पीढ़ी दर पीढ़ी मिलना चाहिए।
आजकल रेलवे के लिए भी जिला बिलासपुर में भू-अधिग्रहण का काम ज़ोरो पर है। किसान की भूमि को सरकार कौड़ियों के भाव ले रही है। पैसा अभी मिलेगा, ऐसा लालच देकर उनकी ज़मीन लूटी जा रही है। इस अधिग्रहण में भी फैक्टर 1 ही लागू है। इस अत्याचार के खिलाफ जिला समाज सुधर मंच बिलासपुर ने किसानों को जागरूक करने का निर्णय लिया है। मंच के माध्यम से गाँव औहर व बाग़ठेडु में कार्यक्रम किये जा चुके हैं। मेरी समाज का भला चाहने व करने वालों से विनम्र अपील है कि इस कार्य के लिए बढ़-चढ़ कर आगे आएं। किसान रहेगा तो देश रहेगा। अगर हम अभी नहीं जागे तो फिर बहुत देर हो जाएगी।
THE NEWS WARRIOR
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Spread the love डॉ. कमल सोई PhD, MSc, MBA, MEP (IIMA), MITE, MACRS, MCIHT (अंतर्राष्‍ट्रीय सड़क सुरक्षा विशेषज्ञ) सदस्य- राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा परिषद, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय, भारत सरकार, सदस्य-यूरोपीयन एसोसिएशन फॉर एक्सीडेंट रिसर्च एंड एनालिसिस सलाहकार- जिला योजना बोर्ड, लुधियाना, पंजाब सरकार। सदस्य- यूरोपीय सड़क सुरक्षा परिषद, सदस्य- […]