केंद्र सरकार के खिलाफ सीटू का आंदोलन, 21 को जिला और ब्लॉक स्तर पर विरोध प्रदर्शन

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शिमला – सीटू राज्य कमेटी हिमाचल प्रदेश की बैठक प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई। बैठक में डॉ कश्मीर ठाकुर,विजेंद्र मेहरा,प्रेम गौतम,जगत राम,रमाकांत मिश्रा,रविन्द्र कुमार,सुदेश कुमारी,केवल कुमार,भूपेंद्र सिंह,राजेश शर्मा,राजेश ठाकुर,राजेन्द्र ठाकुर,बिहारी सेवगी,अजय दुलटा,कुलदीप डोगरा,ओमदत्त शर्मा,सरचन्द,दलजीत सिंह,वीना शर्मा,सुमित्रा ठाकुर,अशोक कटोच,हिमी देवी,मदन नेगी,भूप सिंह भंडारी,पदम् प्रभाकर,नरेंद्र विरुद्ध,मनोज कुमार,रंजन शर्मा,गुरदास वर्मा,विजय शर्मा,बालक राम,विनोद बिरसांटा,सुरेंद्र कुमार,विरेन्द्र लाल,नोख राम,राम प्रकाश,आदि शामिल रहे।

सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा व महासचिव प्रेम गौतम ने राज्य कमेटी बैठक के निर्णयों की जानकारी देते हुए कहा कि केंद्र सरकार की देश व जनता विरोधी नेशनल मोनेटाइजेशन पाइपलाइन योजना के खिलाफ सीटू के बैनर तले 21 अक्तूबर को मजदूर जिला व ब्लॉक स्तर पर धरना प्रदर्शन करेंगे।  मजदूरों व किसानों की मांगों को लेकर चल रहे देशव्यापी आंदोलन के 26 नवम्बर को एक साल पूरा होने पर प्रदेशभर में मजदूरों व किसानों के प्रदर्शन होंगे। निर्माण व मनरेगा मजदूरों को हिमाचल प्रदेश कामगार कल्याण बोर्ड के आर्थिक लाभों को सुनिश्चित करने व अन्य मांगों को लेकर सीटू के बैनर तले 2 दिसम्बर को प्रदेशव्यापी हड़ताल होगी व शिमला में प्रदेशभर के हज़ारों मजदूर विशाल प्रदर्शन करेंगे। आउटसोर्स कर्मियों की मांगों को लेकर बजट सत्र में हज़ारों आउटसोर्स कर्मी नियमितीकरण व नीति बनाने की मांग को लेकर विधानसभा पर जोरदार प्रदर्शन करेंगे।

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उन्होंने कहा कि केंद्र की मोदी सरकार व प्रदेश की जयराम सरकार लगातार मजदूर विरोधी निर्णय ले रही हैं। केंद्र सरकार ने केवल 2600 रुपये मासिक वेतन लेने वाले मिड डे मील वर्करज़ के वेतन में पिछले बारह वर्षों में एक भी रुपये की बढ़ोतरी नहीं की है। कोरोना काल में शानदार कार्य करने वाले आंगनबाड़ी कर्मियों को हिमाचल प्रदेश में हरियाणा के मुकाबले केवल आधा वेतन दिया जा रहा है व आइसीडीएस के निजीकरण की साज़िश रची जा रही है। कोरोना योद्धा आशा कर्मियों का भारी शोषण किया जा रहा है। मनरेगा व निर्माण मजदूरों को हिमाचल प्रदेश कामगार कल्याण बोर्ड के आर्थिक लाभों व रोज़गार से वंचित किया जा रहा है। आउटसोर्स कर्मियों को बारह घण्टे की डयूटी का मात्र तीन हज़ार से नौ हजार रुपये मासिक वेतन दिया जा रहा है।

उन्हें सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम वेतन तक नहीं दिया जा रहा है। हिमाचल प्रदेश के मजदूरों के वेतन को उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के साथ नहीं जोड़ा जा रहा है। कोरोना काल में देश की ही तरह प्रदेश में हज़ारों मजदूरों की छंटनी की गई है व उनके वेतन में चालीस प्रतिशत तक की कटौती की गई है। देश के मजदूर लंबे समय से 21 हज़ार रुपये वेतन की मांग कर रहे हैं परन्तु उनका वेतन बढ़ाने के बजाए मजदूरों के श्रम कानूनों को खत्म करके मजदूर विरोधी चार लेबर कोड बना दिये गए हैं। इन लेबर कोडों से नियमित रोज़गार खत्म हो जाएगा। इस से फिक्स टर्म रोज़गार व हायर एन्ड फायर नीति को बढ़ावा मिलेगा व मजदूरों की सामाजिक सुरक्षा खत्म हो जाएगी। मजदूरों पर आठ के बजाए बारह घण्टे का कार्य दिवस थोपा जा रहा है व उन्हें बंधुआ मजदूरी की स्थिति में धकेला जा रहा है।

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