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26 /03 /2022
कालीनाथ महाकालेश्वर महादेव मंदिर ब्यास नदी के तट पर स्थित है
शिवलिंग में महाकाली और भगवान शिव दोनों का वास है
वास्तु कला से निर्मित इस मंदिर में महादेव की पिंडी भू-गर्भ में है स्थित
हर साल एक जौ के दाने के बराबर पाताल में धंसता जा रहा शिवलिंग
कांगड़ा:
देवभूमि में भी हर जगह भोलेनाथ की गूंज है। हम आपको एक ऐसी जगह के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके बारे में शायद ही आपने पहले सुना होगा। यह जगह हिमाचल के कांगड़ा देहरा के परागपुर गांव में अवस्थित श्री कालीनाथ महाकालेश्वर महादेव मंदिर ब्यास नदी के तट पर स्थित है। यहां पर स्थापित शिवलिंग भी अपने आप में अद्वितीय है। मान्यता है कि इस शिवलिंग में महाकाली और भगवान शिव दोनों का वास है। इसके समीप ही श्मशानघाट है जहां पर हिंदू धर्म के लोग अपने प्रियजनों का अंतिम संस्कार करने आते हैं। महाशिवरात्रि पर यहां बड़े पैमाने पर मेला लगता है।
महादेव की पिंडी भू-गर्भ में स्थित
बताया जाता है कि वास्तु कला से निर्मित इस मंदिर में महादेव की पिंडी भू-गर्भ में स्थित है। मान्यता है कि मां काली ने शिव को पति के रूप में पाने के लिए यह आकर अतिंम तपस्या की थी। मां काली युद्ध के बाद शिव के मानव रूपी शव को लेकर पूरी पृथ्वी में जगह-जगह तपस्या करने लगी। शिव ने काली मां पर दया कर शर्त रखी कि जिस स्थान पर राक्षसों का खून नहीं गिरा होगा, वहीं मैं तुम्हें मिलूंगा। कालेश्वर मंदिर वही स्थान है। यहीं पर काली मां को शिव प्राप्त हुए थे।
पंचतीर्थी तीर्थ स्थल बनवाया था पांडवो ने
शिवलिंग के बारे में मान्यता है कि यह हर साल एक जो के दाने के बराबर पाताल में धंसता जा रहा है। कालेश्वर तीर्थ स्थल के पास प्राचीन पंचतीर्थी सरोवर भी है। जहां स्नान करने से फल प्राप्त होता है। यह पंचतीर्थी तीर्थ स्थल पांडवों ने बनाया था।
पवित्र तीर्थ स्थल के दर्शनों के लिए दूर-दूर से आते हैं श्रद्धालु
इस पवित्र तीर्थ स्थल के दर्शनों के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, जालंधर दैत्य की इस पवित्र भूमि पर महाकाली ने भगवान शंकर को खुश करने के लिए दाहिने पैर के अंगूठे के बल पर 14 हजार साल तक जाप किया। इसका जिक्र ऋग्वेद और स्कंद पुराण में है। राक्षस से युद्ध के बाद मां काली क्रोधित हो उठी थी। उनके क्रोध को शांत करने के लिए शिव उनके पैरो में लेट गए। इसके बाद उनका क्रोध शांत हो गया। पुराणों की मानें तो यहां पांडव अज्ञात वास में रहे। इसका प्रमाण यहां मौजूद है। क्योंकि पांडवों की मां ने जब स्नान की इच्छा जताई तो अर्जुन ने पहाड़ से मां गंगा को प्रकट किया। योगी शिव नंद स्वामी बताते हैं कि ये हिमाचल के तपो स्थलों में सबसे मान्य तपो स्थल है। मां चिंतपूर्णी के इर्द-गिर्द चारों तरफ रुद्र माह देव मंदिर है। उन्ही में से एक है माह कालेश्वर मंदिर।
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