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सराकर को कोविड काल मे भी किसानों की परवाह नहीं
कृषि क़ानूनों से पहले भंडारण में अडानी ग्रुप किरायेदार बन चुका है तो अब केंद्र सरकार झूठ बोल रही है
-: राम लाल ठाकुर
सराकर को कोविड काल मे भी किसानों की परवाह नहीं तपती भीषण गर्मी और कोरोना संक्रमण से किसान सड़को पर अब भी अपना आंदोलन जारी किए हुए है उतरी भारत मे अलग अलग जगहों पर किसान महापंचायतें जारी है और एक यह केंद्र की सरकार है जो लोकतांत्रिक देश मे निरंकुश बनी हुई है। कोरोना से देश में चिकित्सक, नर्सों, पैरा मेडिकल स्टाफ और सफाई कर्मचारियों ने अपने प्राणों को आहुति दे दी लेकिन सड़को पर किसानों को लेकर सरकार तानाशाह बनी हुई है। यह कहना है अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य व पूर्व मंत्री व विधायक श्री नयना देवी जी राम लाल ठाकुर का।
उन्होंने किसान बिलों को काला कानून करार दिया है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को किसानों की समस्याओं को सुनने में वक्त नहीं है जबकि अडानी जैसे लोंगो के खाद्य भंडारण किराए पर देने हेतू योजना 2 वर्ष पहले से ही बन चुकी थी। मौजूद जानकारी के अनुसार केंद्र सरकार सात दिसंबर 2020 को सरकार कृषि बिलों को लेकर आक्रामक हो गई। शाम तक कुछ संगठन भी पकड़ लाई जिनके हवाले से दावा किया जाने लगा कि वे सरकार के साथ हैं। राम लाल ठाकुर ने कहा कि किसी आंदोलन को तोड़ने का यह पुराना तरीक़ा है।
मैं केंद्र और राज्य सरकार को बताना चाहता हूं कि इन बिलों पर सरकार घिर चुकी है और किसानों के साथ आमजन और राजनैतिक पार्टियां भी खड़ी हुई है। राम लाल ठाकुर ने तीखे सवाल दागते हुए कहा कोई यह तो बताए कि तीनों नए क़ानून से पहले भंडारण के लिए अडानी ग्रुप से करार किस क़ानून के तहत किया गया?
यह जानकारी जून 2019 में मिल गई थी। एफ सी आई बिहार और पंजाब में भंडारण के लिए अडानी ग्रुप से एक करार करती है और जिसके तहत बड़े बड़े साइलोस बनाए गए है। इस बात की जानकारी सामने आनी चाहिए कि भंडारण के लिए पहले प्राइवेट पार्टी को प्रवेश दिया जाता है और फिर एक साल बाद क़ानून बदल कर प्राइवेट कंपनियों को स्टॉक लिमिट से छूट दी जाती है।
ऐसा क्यों किया गया? यह तो वह हुआ कि पहले अडानी ग्रुप को किरायेदार बना कर लाओ और फिर मकान ही दे दो! जून 2019 में इकोनॉमिक टाइम्स की खबर के अनुसार बिहार के कटिहार में अडानी ग्रुप अनाज रखने के लिए जो साइलोस बनाएगा उसे FCI तीस साल तक किराया देगी और यह किराया 97 रुपये प्रति टन प्रति माह और बाद में इस किराए में प्रतिवर्ष वृद्धि का भी प्रयोजन रखा गया है।
ये सारी जानकारी अब मंत्रालय में भी उपलब्ध है। सरकार ही बता सकती है कि एफ. सी. आई. ने अडानी ग्रुप को साइलोस बनाने के लिए अपनी ज़मीन दी है या प्राइवेट कंपनी ने अपनी ज़मीन ख़रीद कर साइलोस बनाए हैं ? यह इतनी बड़ी धांधली है कि इस पर केंद्र सरकार एक बहुत बड़े भ्र्ष्टाचार और भ्रामक तंत्र में फस चुकी है और देश के किसानों के साथ कोरोना काल मे आज तक का सबसे बड़ा विश्वासघात किया गया है।