चलो चाँद के पार चलो

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14 जुलाई 2023

हमीरपुर : मानव सभ्यता के विकास के शुरुआत से ही आसमान में रात के समय में दिखने वाले चाँद, तारे हमारे के लिए जिज्ञासा का विषय रहे हैं । रात के समय सूर्य के प्रकाश को परावर्तित करके पृथ्वी पर चांदनी बिखरते हुए तथा समुंदर में ज्वार का कारण बनने वाले चन्द्रमा को पास देखने और छु लेने भर की लालसा हमेशा हमारे के मन में रही है ।

 

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान रॉकेट तकनीकी के क्रांतिकारी विकास के साथ – साथ मनुष्य को अंतरिक्ष जाने का मार्ग प्रशस्त हुआ । धीरे – धीरे मानव युक्त मशीनों द्वारा चन्द्रमा में रहस्य को जानने के सपने भी साकार होने लगे हैं ।

आपने पाकीजा फ़िल्म का गाना तो सुना ही होगा, “चलो दिलदार चलो चाँद के पार चलो हम हैं तैयार चलो”, असल में ये साबित कर दिखाया है, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने, इस संस्था ने आज से 15 साल पहले इस क्षेत्र में एक ऐसी उपलब्धि हमारे देश को हासिल करवाई जो उस समय कुछ ही चुनिंदा देशों के पास थी।

 

15 साल पूर्व देश के पहले चंद्र अभियान में अंतरिक्ष यान को चंद्रमा की कक्षा में सफलतापूर्वक दाखिल कराया गया जो कि भारत के अंतरिक्ष मिशन के लिये मील का पत्थर साबित हुआ था। भारत सरकार ने नवंबर 2003 में पहली बार भारतीय चंद्र मिशन के लिए इसरो के प्रस्ताव चंद्रयान -1 को मंज़ूरी दी। इसके 5 साल बाद 22 अक्तूबर 2008 को चंद्रयान-1 का सफल प्रक्षेपण किया गया। चंद्रयान-1 को पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल, यारॉकेट के ज़रिये सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र श्री हरिकोटा से लॉन्च किया गया। चंद्रयान-1, चंद्रमा मिशन के लिये भारत का पहला मानवरहित अभियान था ।

 

चंद्रयान-1 के 3 प्राथमिक उद्देश्य थे, जिनमें चंद्रमा के चारों ओर की कक्षा में मानव रहित –अंतरिक्ष यान स्थापित करना, चंद्रमा की सतह के खनिज और रसायनों का मानचित्रण करना और देश में तकनीकी आधार को उन्नत बनाना आदि प्रमुख थे। सभी प्रमुख उद्देश्यों को सफलतापूर्वक पूरा करने के बाद 19 मई, 2009 को चंद्रयान-1 की कक्षा 100 से 200 किलोमीटर तक बढ़ाई गई थी। इस मिशन को दो वर्ष के लिये भेजा गया था लेकिन 29 अगस्त, 2009 को इसने अचानक रेडियो संपर्क खो दिया। इसके कुछ दिनों बाद ही इसरो ने आधिकारिक रूप से इस मिशन को ख़त्म करने की घोषणा कर दी थी।

उस समय तक चंद्रयान-1 ने चंद्रमा की 3400 से ज़्यादा बार परिक्रमा पूरी कर ली थी। ये यान चंद्रमा की कक्षा में 312 दिन तक रहा और सेंसरों के माध्यम से जानकारी भेजता रहा। चंद्रयान-1 ने चंद्रमा की सतह की 70000 से ज़्यादा तस्वीरों को भेजा । इस अंतरिक्ष यान ने चंद्रमा पर पाई गई रासायनिक और खनिज सामग्री से संबंधित मूल्यवान जानकारी भी उपलब्ध करवाई । चंद्रयान-1 के सभी प्राथमिक लक्ष्यों और उद्देश्यों को प्रक्षेपण के 8 महीने के दौरान ही सफलतापूर्वक हासिल कर लिया गया था। चंद्रयान-1 के माध्यम से करके चाँद पर बर्फ संबंधी जानकारी भी मिली।

 

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने यह पुष्टि की है कि 15 साल पहले भारत द्वारा शुरू किये गए मिशन चंद्रयान -1 अंतरिक्ष यान से प्राप्त आँकड़ों का उपयोग करते हुए वैज्ञानिकों ने चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों के सबसे अंधकारमय और ठंडे हिस्सों में बर्फ जमी होने का पता लगाया है। चंद्रमा पर पाई गई यह बर्फ इधर-उधर बिखरी हुई है। यह बर्फ ऐसे स्थान पर पाई गई है, जहाँ चंद्रमा के घूर्णन अक्ष के बहुत कम झुके होने के कारण सूर्य की रोशनी कभी नहीं पहुँचती। यहाँ का अधिकतम तापमान कभी -156 डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं  हुआ।

 

वैज्ञानिकों ने मून मिनरेलॉजी मैपर (एम3) से प्राप्त आँकड़ों का इस्तेमाल कर अध्ययन किया और इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि चंद्रमा की सतह पर जल, बर्फ़ के रूप में मौजूद है। सतह पर पर्याप्त मात्रा में बर्फ के मौजूद होने  के संकेत आगे के अभियानों और यहाँ तक कि चंद्रमा पर रहने के लिये भी जल की उपलब्धता की संभावना को भी सुनिश्चित करते हैं।

 

इसरो चंद्रयान-1 की सफलता के बाद से ही चुनौतीपूर्ण अंतरिक्ष मिशन चंद्रयान-2 की तैयारी में जुट गया था।
चंद्रयान-2 या द्वितीय चन्द्रयान, चंद्रयान-1 के बाद भारत का दूसरा चन्द्र अन्वेषण अभियान है, जिसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसन्धान संगठन (इसरो) ने विकसित किया है। इस अभियान में भारत में निर्मित एक चंद्र कक्षयान, एक रोवर एवं एक लैंडर शामिल हैं। इन सब का विकास इसरो द्वारा किया गया। चंद्रयान 2 को 22 जुलाई 2019 को उसी लॉन्च पैड से लॉन्च किया गया था, जहां से चंद्रयान 1 ने उड़ान भरी थी। पहले इस्तेमाल किए गए पुराने पीएसएलवी रॉकेट का उपयोग करने के बजाय, अंतरिक्ष यान ने उन्नत जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल मार्क III (जीएसएलवी एमके III) का उपयोग किया।

चंद्रयान-2 को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने की योजना थी। चंद्रयान-2 के लैंडर ‘विक्रम’ से संपर्क टूट जाने के बाद चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के निकट यान उतारने वाला पहला देश बनकर इतिहास रचने का भारत का प्रयास संभवत: निराशा में बदल गया।

 

इसरो लगातार अंतरिक्ष में नए नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। इसी कड़ी में एक और उपलब्धि जोड़ने की तैयारी में इसरो ने 14 जुलाई 2023 को चंद्रयान 3 भी लांच कर दिया गया। चंद्रमा पर इसकी लैंडिंग 23 या 24 अगस्त को हो सकती है। इस मिशन की अवधि चंद्रमा का एक दिन है, यह धरती के 14 दिन के बराबर होता है । अभी तक कोई भी देश चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की ओर लैंडिंग नहीं कर सका है। भारत सफल हुआ तो ऐसा करने वाला पहला देश बनेगा।

स्वतंत्र लेखक

प्रत्यूष शर्मा

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