1925 में ब्रिटिश एंजनीयर कर्नल B.C.Batty और मंडी के राजा जोगिंदर सेन के बीच हाइड्रो प्लांट बनाने के लिए एगरिमेंट हुआ और शानन पावर हाउस का सपना देखा गया ।’
कर्नल बैटि ने अपनी टीम के साथ सुक़राटी तात्कालिक जोगिंदरनगर से लेकर पहाड़ों की गोद में बसे बारोट गाँव का दौरा करने के बाद निष्कर्ष निकाला की 1829 मीटर समुद्र तल से ऊँचाई वाले बारोट में प्रोजेक्ट के लिए डैम बनेगा और 1240 मीटर पर शानन गाँव में पहाड़ के दूसरी ओर पावर प्लांट होगा। ।
डिज़ाइन तैयार था पर अगली चुनौती थी , प्रोजेक्ट के लिए भारी मशीनरी को इन पहाड़ों पर लेकर आना और सबसे मुश्किल बारोट जहाँ सड़क नाम की कोई चीज़ थी ही नहीं ।
इस चुनौती से निबटने के लिए पठानकोट से जोगिंदरनगर शानन गाँव तक नेरो गेज रेल ट्रैक के निर्माण का ख़ाका तैयार हुआ और 1929 में 164 km काँगड़ा घाटी रेल लाइन ( पठानकोट जोगिंदरनगर) अस्तित्व में आइ ।
शानन गाँव तक तो रेल पहुँच गई पर बारोट तक उसी तरह का ट्रैक लेकर जाना सम्भव ननहीं था । यातायात की दुनिया के दुर्लभ अच्चमभे पर काम किया गया और Haulege Trolly कोनसेप्ट से शानन और बारोट को जोड़ने की क़वायद शुरू हुई ।
देश आज़ाद हो गया पर शानन पावर हाउस और ये ट्राली सिस्टम आज भी पंजाब सरकार के पास है । कारण ये बताया गया कि 99 वर्ष की लीज़ एगरिमेंट जो मंडी के राजा जोगिंदर सेन और ब्रिटिश सरकार के बीच हुई थी उस लीज़ में ब्रिटिश सरकार का मतलब पंजाब प्राविन्स से था ।
2024 में लीज़ ख़त्म होने पर ये प्लांट और इससे जुड़ी ये एतिहासिक सम्पत्ति हिमाचल को वापिस मिलेगी की या अन्न्य देनदरियों की तरह क़ानूनी झमेले में फाँसी रहेगी भगवान जाने ।
पर पंजाब सरकार ने जो हश्र इस एतिहासिक ट्रौली ट्रेक् का किया है।वो राष्ट्र के रूप में शर्म की बात है । की हम अपनी एतिहासिक धरोहरों का कितना ख़याल रखते हैं ।
कभी 1975 तक बारोट तक जाने वाली ट्रौली आज यदा कदा वींच कैम्प तक जाती है । उससे आगे ट्रैक तो है पर धूल फाँक रहा है।
7-8 किलोमीटर का ट्रेक चढ़कर हम लोग हरबाग से वींच कैम्प पहुँचे जहाँ सन्नाटा पसरा था ।
एक ब्रिटिश क़ालीन घर से तड़के की महक आइ तो दरवाज़ा खटखटाने पर तेजवीर सिंह लोकल लड़का मिला जो टेम्प्रेरी रूप से वींच कैम्प में देखरेख करता है । तेजवीर ने हमें ट्रौली के परिचालन की बारिकियाँ समझाईं और चाय भी पिलाई । बतौर तेजवीर अब यह ट्राली यदा कदा विन्च कैम्प तक स्टाफ को लाने ले जाने से अलावा नहीं चलती। विंच कैम्प पर भी इसके रखरखाव हेतु ही तेजवीर नियुक्त है जिसे रेगुलर जॉब नहीं मिली है। अस्थाई नियक्ति के रूप में अपनी सेवाएं यहाँ दे रहा है। तेजवीर से पहले उसके पिताजी यहाँ स्थाई नियुक्ति पर हुआ करते थे। तेजवीर खुद सीधे पहाड़ पर पैदल चढ़कर यहाँ पहुंचता है। अकेलेपन में उसका साथी सिर्फ वफादार टॉम है जो , तेजवीर के साथ साथ भालुओं से भरे जंगल से रोज अप डाउन करता है। बतौर तेजवीर गर्मियों में हालाँकि इस ब्रटिशकालीन रेस्ट हाउस में रुकने के लिए पंजाब सरकार से या पंजाब से लोग ट्राली में आते हैं। या हम जैसे मुसाफ़िर यदा कदा टखर जाते हैं।
तेजवीर के हाथों से चाय की चुस्की का आनंद लेने के बाद मैंने और मित्र गुलेरिया जी ने तेजवीर से विदा ली। ट्रैक के साथ साथ चलते हुए हम लोग बारिश में भीगते हुए बुराँस के जंगल से होकर अपने ठिकाने पहुँचे।
2024 में क्या होगा ये देखना दिलचस्प होगा । हिमाचल के हिस्से में यह आता है जिसकी मुझे ख़ास आस हालाँकि नहीं है
फिर भी उम्मीद करते हैं कर्नल बैटि के इस भागीरथी प्रयास के कालजयी निर्माण के यौवन के दिन फिर आएँगे
चर चर करती ट्रौली शानन से बरोट तक शांन से अपने सफ़र पर निकला करेगी।
और तेजवीर जैसे सैंकड़ो युवाओं के लिए रोजगार व् स्वरोजगार के अवसर सृजित करेगी