प्रदेश में अपमान तो देश ने दिया मनाली के शिवा केशवन को देश का सर्वोच्च खेल सम्मान

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*मनाली के शिवा केशवन को मिला देश का  सर्वोच्च खेल सम्मान अर्जुन अवार्ड

*प्रदेश ने  सर्वोच्च खेल सम्मान  परशुराम पुरस्कार के काबिल भी नहीं समझा केशवन को 

 

  Pic Credit The Indian Express  केन्द्रीय मंत्री  किरण रिजीजू  अर्जुन अवार्ड का  सर्टिफिकेट शिवा  केशवन को देते हुए  

 “तेरे हौसलों के वार से
रुकावट कि दीवार जरूर गिरेगी
तुम देख लेना सफलता जरूर मिलेगी”

यह लाइनें फिट बैठती हैं 29 अगस्त शनिवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा अर्जुन अवॉर्ड से नवाजे पर्यटन नगरी मनाली के शिवा केशवन पर जिन्हें गृह राज्य हिमाचल प्रदेश में कभी प्रदेश के सर्वोच्च खेल सम्मान, परशुराम पुरस्कार के काबिल भी नहीं समझा यहाँ तक की उनकी सफलताओं पर कभी नगद पुरस्कार से सम्मानित तक नहीं किया गया I परन्तु आज देश के सर्वोच्च खेल सम्मान अर्जुन अवार्ड मिलने पर शिवा ने अपनी क़ाबलियत का लोहा मनवा लिया है I शिवा केशवन की इस उपलब्धि ने प्रदेश की सरकारों और उनके अफसरान को आज बौना साबित कर दिया जो आज तक प्रदेश के हीरे को नहीं पहचान पाए I

 

हम बात कर रहे हैं 25 अगस्त 1981 को हिमाचल प्रदेश की पर्यटन नगरी मनाली में रोसाल्बा केशवन और सुधाकरन के घर जन्मे अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त मनाली के विंटर ओलंपियन शिवा केशवन की जिन्हें 29 अगस्त शनिवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अर्जुन अवॉर्ड से नवाजा है। शिवा की मां इटली की हैं और पिता केरल से हैं। लेकिन यह मनाली में रहते हैं।

किसी वक्त पैसे की तंगी की वजह से इस खेल को अलविदा कहने वाले शिवा केशवन शीतकालीन खेलों के पहले एथलीट हैं जिन्हें अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।

अंग्रेजी अख़बार द इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में इन्होने कहा की देश के सर्वोच्च खेल सम्मान अर्जुन अवार्ड पाकर तो खुश हैं बल्कि इससे ज्यादा ख़ुशी इस बात की है कि इस अवार्ड की वजह से विंटर स्पोर्ट्स में उपलब्धियों को आधिकारिक तौर पर देश में मान्यता भी मिल गई । इस तरह की मान्यता से पता चलता है कि मैंने जो किया है वह सिर्फ मेरे लिए नहीं बल्कि पूरे शीतकालीन खेल समुदाय के लिए है। हालाँकि मान्यता मेरी सेवानिवृत्ति के बाद आई है, परन्तु यह देश में शीतकालीन खेलों को व्यापक बनाने में मदद करेगा। इस बातचीत में इन्होने गृह  राज्य की बेरुखी पर कहा कि अफसोस की बात यह है कि मुझे परशुराम पुरस्कार से पहले अर्जुन मिला, जो हिमाचल का सर्वोच्च खेल सम्मान था। मुझे पहले HPWGFI और पर्वतारोहण संस्थान, मनाली द्वारा नामांकित किया गया था, लेकिन मैं अभी भी राज्य सरकार से एक शब्द सुनने के लिए इंतजार कर रहा हूं,

शिवा के पिता सुधाकरन 1970 के दशक के अंत से मनाली में एक एडवेंचर स्पोर्ट्स की दुकान चला रहे हैं और माँ रोसाल्बा एक कैफे चलाती हैं I युवा केशवन हमेशा छुट्टियों के दौरान सोलंग घाटी या आस-पास की जगहों पर स्की ढलानों में स्लेज करने के लिए जाता था। 1997 में जब इंटरनेशनल ल्यूस फेडरेशन ने कसौली में अपने स्कूल में स्काउटिंग शिविर का आयोजन किया था तब केशवन ने पहियों के साथ स्लेज के साथ प्रशिक्षण लेना शुरू किया था। ऑस्ट्रियन पूर्व विश्व चैंपियन गुंथर लेमर द्वारा शिविर का संचालन किया गया था, तब 16 वर्षीय केशवन ने स्लेज पर पंचकूला राजमार्ग पर कालका से रन बनाने के दौरान सभी को प्रभावित किया था। उसी वर्ष, शिव ऑस्ट्रिया में प्रशिक्षण लिया  और 1998 में अपने पहले शीतकालीन ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना गया था I

शिवा कहते हैं मनाली में पैदा होने के कारण मैंने हमेशा हिमालय को अपने खून में महसूस किया जो की शीतकालीन खेलों की तरफ मेरे प्यार का कारण थाविदेशों में अंतर्राष्ट्रीय ल्यूज फेडरेशन द्वारा कोचिंग शिविरों में भाग लेना और यूरोपीय और अन्य देशों में उचित सुविधाओं के बीच प्रशिक्षण और यूरोपीय अन्य देशों में उचित सुविधाओं के बीच प्रशिक्षण ने मुझे सही तकनीक और ल्यूज खेल के लिए योग्य बनाया

जिससे केशवन  शीतकालीन ओलंपिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया और  और चार स्वर्ण, चार रजत और दो कांस्य पदक सहित एशियाई चैंपियनशिप में 10 पदक जीते ।केशवन छह बार के शीतकालीन ओलंपिक और चार बार के एशियाई चैंपियन

केशवन ने दो दशक तक ल्यूज स्पर्धा में देश का प्रतिनिधित्व किया है। शिवा ने अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा में 10 पदक अपने नाम करने के अलावा कई विश्व स्तर के रिकार्ड कायम किए हैं।गौरतलब है कि एशियन ल्यूज चैंपियनशिप में चार बार गोल्ड मेडल जीतकर शिवा एक खास मुकाम हासिल कर चुके हैं। वहीं आधा दर्जन बार ओलंपिक में भी शिरकत की है। इसके साथ विश्व कप में 100 मीटर रेस में भी जीत दर्ज की है। शिवा केशवन के अनुभव और खेल के प्रति उनकी लग्न को देख उन्हें भारतीय ल्यूज महासंघ का मुख्य कोच नियुक्त किया गया है।

 

केशवन कहते हैं हिमाचल प्रदेश को भीं शीतकालीन खेलों का हब बन साकता है  बुनियादी ढांचा तैयार करने की आवश्यकता है।प्रदेश के युवाओं के लिए इस खेल में अपना भविष्य बनाने की आपार सम्भावनाएं हैं इस खेल के लिए व्यक्ति को प्राकृतिक और कृत्रिम पटरियों की आवश्यकता होती है। जबकि हिमाचल प्रदेश में युवा और अनुभवी खिलाड़ी बर्फ की ढलानों पर पटरियों का निर्माण करके और बर्फ को मैन्युअल रूप से  लुग सीखते हैं और अभ्यास करते हैं, प्रदेश में एक उचित पाठ्यक्रम के अलावा अच्छी ढलान वाला  कृत्रिम स्टेडियम होना जरुरी है ।

 

जिस खिलाडी ने प्रदेश की पहचान अंतराष्ट्रीय स्तर पर बनाई  शीतकालीन ओलंपियन दिए हैं वहां राज्य सरकारों का फोकस  क्रिकेट स्टेडियम बनाने की तरफ है  बजाए इसके जरुरत है एक कृत्रिम शीतकालीन खेल परिसर बनाने की I 

केशवन ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया की यूरोपीय देशों और संयुक्त राज्य अमेरिका में, स्की रिसॉर्ट बनाए जाते हैं,जहां एथलीटों को पर्यटकों को सुविधा का उपयोग करने के अलावा प्रशिक्षित किया जाता है। इससे  खेलों के साथ पर्यटन क्षेत्र में भी विकास होता है I  

 

2012 से केशवन ने राज्य के सर्वोच्च खेल सम्मान परशुराम पुरस्कार और नगद पुरस्कार के लिए आवेदन किया था जिसका आज तक इंतजार कर रहे हैं Iइसके बारे में जब हिमाचल प्रदेश के खेल एवं युवा मामलों के सचिव अजय शर्मा से इंडियन एक्सप्रेस की बात हुई तो उन्होंने कहा की इन्होने एक हफ्ता पहले जॉइनिंग की है इस मामले को देखा जाएगा की केशवन को नगद पुरस्कार मिला है या नहीं I

हिमाचल में अब खेल एवं युवा मंत्री की डोर हाल में पहली बार मंत्री बने नूरपुर के विधायक राकेश पठानिया के पास जिससे प्रदेश के खिलाडियों में निष्पक्ष रूप से अवार्डों के चयन और प्रदेश को खेल के क्षेत्र में नई पहचान दिलाने की आस बंधी है I

 

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