हिमालय के आँचल के शिव कैलाशी

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हिमालय के आँचल में बसे हिमाचल प्रदेश के वासी , शिव को चार कैलाशों में पूजते हैं। उनके अनुसार शिव बारी बारी इन कैलाशों में रहने आते हैं।

मानसरोवर
मानसरोवर
मणिमहेश सरोवर
किन्नर कैलास
श्री खण्ड महादेव

मानसरोवर कैलाश जो अब तिब्बत यानी चीन का अवैध क़ब्ज़ाया भाग है के अलावा बाकी तीन कैलाशों को हिमाचल वासी अपनी धरती के ” किन्नर कैलाश (किन्नौर ) श्रीखंड कैलाश (कुल्लू ) और मणिमहेश कैलाश (चम्बा ) के रूप में मानते हैं। चम्बा से आगे भरमौर के चौरासी प्रांगण में बहुत से मंदिर हैं इन्ही में से एक हरिहर के चबूतरे से देखो तो उत्तर पश्चिम की तरफ बर्फ से ढकी पर्वत श्रेणी है । यही श्रेणी उत्तर की तरफ चली जाती है जिस पर मणिमहेश चोटी है।उसी पर मणिमहेश का सुंदर सरोवर है। भरमौर से आगे हड़सर से मणिमहेश के पवित्र सरोवर तक की 16 किलोमीटर लम्बी कठिन यात्रा शुरू होती है। जो धन्छो और गौरीकुंड पड़ावों से होती हुई अंत में मुख्य सरोवर तक पहुँचती है। गौरी कुंड से आगे महिलाएं नहीं जाती। मणिमहेश सरोवर तक सिर्फ पुरुष जा सकते हैं।पहाड़ की चोटी में पिंडी रूप में दिखती आकृति को शिवलिंग के रूप में दूर सरोवर किनारे से ही पूजा जाता है।सावन के महीने में दूर दूर से लोग मणिमहेश के दर्शन के लिए आते हैं। सैंकड़ों बकरे महादेव के लिए बलि स्वरुप यंहा लाये जाते हैं। जम्मू से आने वाले डोगरी समुदाय के लोग तो हर पड़ाव पर बकरे चढ़ाते हैं। (अब बलि प्रथा बंद है )गद्दी लोगों का यह देश जिसे कालांतर में चम्बा की राजधानी होने का गौरव प्राप्त था “गद्देरण” के नाम से भी जाना जाता था। हिमालय पुत्री शिव अर्धांगिनी उमा या “पार्वती” का यही मायका है। इस कारण हर गद्दी परिवार उमा को अपने घर की बेटी मानता है। उमा और उनके पति महादेव से सबंधित बहुत से लोक गीत यंहा प्रसिद्ध है। कई तो ऐसे हैं रात रात गाने पर भी खत्म न हों।इन गीतों में उमा एक चंचल गद्दी कन्या है। और महादेव नाचने गाने में मस्त रहने वाले। इन गीतों के बोलो के अनुसार धुड़ू यानी “महादेव अपनी जटाएं खोलकर नाच रहे हैं। उमा को यह रूप बिलकुल पसंद नहीं वो अपने धुंडु को ऐसे नहीं देखना चाहती। महादेव को नाच से फुर्सत नहीं और घर में उमा की उनके इंतज़ार में भूख से जान निकली जा रही है।

यंहा के लोकगायकी में उमा सिर्फ एक स्वाभिमानी गद्दी कुमारी नहीं बल्कि उसके लिए गद्दी कुमारियों की तरह भेड़ बकरियां चराना , मन मन बोझ ढोना , अस्सी हाथ काली रस्सी बांधना भी आवश्यक है। वो यह नहीं देख सकती, वो काम करती रहे, और उसका पति महादेव सिर्फ नाचता रहे उसकी पीठ पर वो चार चार मन बोझ डलवाना चाहती है और चोगे में चार चार मेमने भी रख देना चाहती है। भरमौर के उमा और उसके पति महादेव बिल्कुल मानवी हैं। दहेज़ प्रथा यंहा उलटी है कन्या के पिता को शुल्क देकर ही कन्या को ब्याह के लिए ले जाया जा सकता है I

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