किसी ने बेच दी जमीन तो किसी ने लुटा दी जमा पूंजी, योजनाबद्ध तरीके से किया संगठित अपराध

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10 /05 /2022

किसी ने जमीन बेची तो किसी ने पिता की सेवानिवृत्ति पर मिलने वाली राशि दे दी

प्रदेश में पुलिस की लिखित परीक्षा हुई रद्द 

अपराधियों ने ‘पुलिस वाला तरीका’ प्रयोग करते हुए पुलिस को दी चुनौती

हिमाचल प्रदेश:-

किसी ने जमीन बेची तो किसी ने पिता की सेवानिवृत्ति पर मिलने वाली राशि दे दी। सपना था कि कुल का दीपक पुलिस में भर्ती हो जाएगा तो कष्ट कट जाएंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। धन भी गया और नौकरी की संभावना भी। हिमाचल प्रदेश में पुलिस की लिखित परीक्षा रद हुई। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने स्वयं घोषणा की कि पर्चा लीक हो गया था और कि वह चाहते हैं कि यह कार्य पारदर्शी ढंग से हो। उसके बाद से प्रतिपक्ष सरकार पर मुखर है। मुखर होना लोकतांत्रिक अधिकार है, किंतु यह पक्ष भी याद रखने योग्य है कि शातिरों के पूरे प्रयास के बावजूद यह बात कुछ अच्छे, ईमानदार अधिकारियों की त्वरा के कारण बाहर आई और जैसे ही मुख्यमंत्री के ध्यान में आई, उन्होंने परीक्षा रद करने का साहस दिखाया।
विशेष जांच दल कर रहा जांच 
पर्चा लीक होने को कोई कैसे ठीक ठहरा सकता है। विशेष जांच दल जांच कर रहा है। जांच इसलिए समय ले रही है, क्योंकि यह संगठित अपराध बहुत योजनाबद्ध ढंग से किया गया है जिसमें अपराधियों ने ‘पुलिस वाला तरीका’ प्रयोग करते हुए पुलिस को चुनौती दी है। पर्चा लीक कोई नई घटना नहीं है, किंतु यहां नया यह है कि परीक्षा से पहले ही उन लोगों को उत्तर रटवा दिए गए, जिन्होंने इस छोटे रास्ते के पथिक बनना स्वीकार किया था। यानी क के स्थान पर ख बैठ गया हो, ऐसा कुछ नहीं। परीक्षा का प्रश्नपत्र उसी समय लीक हुआ हो, ब्लूटूथ या किसी पर्ची के माध्यम से नकल हुई हो, ऐसा भी कुछ नहीं। यह तो एक माह पहले बनी योजना के अनुसार हुआ। पहले यह कहा गया कि आठ लाख रुपये जो देगा, वह प्रश्नपत्र पाएगा। उत्तरों के विकल्प रटवा दिए गए। परीक्षा तो ठीक ही संचालित हुई।
चार स्तरीय सुरक्षा व्यवस्था
जिलों तक में चार स्तरीय सुरक्षा व्यवस्था थी। जितनी सुरक्षा इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन की होती है, उतनी ही प्रश्नपत्र की भी होती है। वास्तव में व्यवस्था कभी दुर्बल नहीं होती। उसे दुर्बल तो प्रक्रिया के साथ जुड़े लोगों की चारित्रिक विशेषताएं बनाती हैं। प्रश्न यह है कि जब प्रश्नपत्र बनाने वाले लोग अलग हैं, उसे छपवाने वाले लोग अलग हैं, दोनों पक्षों को एक दूसरे के बारे में पता नहीं है, इसके बावजूद प्रश्नपत्र कैसे चोर दरवाजे से बाहर निकल जाता है और कैसे कथित लाभार्थियों तक पहुंच जाता है। विचारणीय यह है कि इतनी सुरक्षा के बावजूद पर्चा कैसे लीक हुआ, कैसे एजेंट सक्रिय हुए, कैसे उन्होंने लाभार्थी बनने वालों को चुना, फिर कैसे परीक्षा से पहले सबसे संपर्क किया और उत्तर बताए गए। यह एक दिन या एक सप्ताह का काम नहीं था
लिखित परीक्षा में 75 प्रतिशत अंक

सच यह है कि पुलिस बल में भी मनुष्य ही आते हैं। छोटे रास्ते का आकर्षण कुछ लोगों के लिए निर्धनता में भी बना रहता है, कुछ के लिए सब सुविधाएं पाने के बाद भी। इसी छोटे रास्ते के मोह में आकर कई लोग मंजिलों से बिछड़ जाते हैं। वे योग्य न होने के बावजूद भर्ती की इच्छा रखने वाले हों या फिर सरकार से सब कुछ पाकर भी कंगाल महसूस करने वाले बड़े लोग हों। जिन लोगों के लिए हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री का नाम नरेन्द्र मोदी हो, जो अमित शाह तक को हिमाचल का मंत्री बताएं, और उन्होंने लिखित परीक्षा में 75 प्रतिशत अंक लिए हों, उन पर संदेह न होता तो क्या होता। अभिभावकों की पूंजी को पुलिस में किसी तरह भर्ती हो जाने के लिए लुटा देने वाले युवा कल को किसी बड़े अधिकारी के नाम पर उगाही न करते तो और क्या करते। पहले सूचनाएं थीं कि पैसे देकर एक हजार लोगों ने ही प्रश्नपत्र हासिल की है, किंतु अब सूचना ढाई हजार की है।

जिलों के सिर पर प्राथमिकी थोप देना कोई हल नहीं

जिलों के सिर पर प्राथमिकी थोप देना कोई हल नहीं है। सबसे पहले पुलिस मुख्यालय को यह साहस दिखाना चाहिए कि वह विशेष जांच दल के साथ विशेष सहयोग करे। यह परीक्षा की प्रतिष्ठा को अक्षुण्ण रखने का प्रश्न है। यह उस साहस के सम्मान का प्रश्न है जो सरकार ने पारदर्शिता के लिए दिखाया है। आशा की जानी चाहिए कि जांच के निष्कर्ष आते ही सरकार किसी को बख्शेगी नहीं। यदि कोई संलिप्त पाया गया और बच गया तो वह टाइम बम से कम कुछ नहीं होगा।आखिर उन परीक्षार्थियों के सरोकारों के साथ भी न्याय को संबोधित करना होगा जिन्होंने छोटा रास्ता नहीं चुना था और किसी को धन भी नहीं दिया था।

 

 

 

 

 

 

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