डॉ. राकेश शर्मा
अक्सर हम देश के लिए ही दिल के धड़कने की बातें सुनते आए हैं परन्तु प्रदेश के संतुलित एवं समग्र विकास के लिए प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में अपने गांव, पंचायत, ज़िले से पहले लोगों के दिलों में अपने प्रदेश के गौरव और प्रेम की भावना जगना आवश्यक है। ऐसी प्रादेशिक प्रेम भावना को मैंने वर्ष 2009 में तब महसूस किया था जब मैं गुजरात के अनेक हिस्सों के भ्रमण पर था। जहाँ भी जाता, वहीं लोग अनायास यह पूछते कि “आपको हमारा गुजरात कैसा लगा?”। इस भावना के जगने से प्रदेश के अंदर बुरे से बुरे व्यक्ति भी दूसरे राज्यों से आने वाले लोगों से अच्छा बर्ताव करने लगते हैं। पर्यटन आधारित अर्थव्यवस्था में यह पहलु बेहद महत्वपूर्ण हैं, विशेष तौर पर तब जब हम स्वयं ही “अतिथि देवो भवः” के स्लोगन देते आए हैं।
प्रदेश के लिए दिल धड़कना ही काफी नहीं, प्रदेश के लिए सही से दिमाग भी चलना अति-आवश्यक है भले हम किसी भी स्तर पर हों। चाहे वस्तुओं सेवाओं के उपभोक्ता हों या उत्पादक, मतदाता हों या जन-प्रतिनिधि। दिमाग के सही चलने से तात्पर्य यह हैं कि व्यर्थ की नकारात्मकता एवं महज़ आदर्शवादिता से आगे यथार्थ व व्यवहारिकता पर आधारित सकारात्मक सोच के साथ सुधार के उपाय जनता स्वयं खोजना शुरू करे। हर बुराई का ठीकरा हम सरकार और व्यवस्था पर नहीं फोड़ सकते। जन-प्रतिनिधि समाज का आइना है। लोग सजग होंगे तभी जवाबदेही की बातें मायने रखेंगी अन्यथा भाग्यवादिता की परछाईं में लोग सिर्फ अपना उल्लू स्वयं सीधा करने में ही लगे रहते हैं।
समाज में जागरूकता लाने के लिए कुछ आदर्श शिक्षकों और निर्भीक पत्रकारों के अलावा अनेकों व्यवसाय में कार्यरत उन लोगों का विशेष योगदान रहता है जिनका दिल प्रदेश के त्वरित एवं संतुलित विकास और बदहाल लोगों के लिए धड़कता है। इसके बाद ही प्रदेश में एक ऐसा नेतृत्व कौशल उभर पाएगा जिसमें प्रदेश के लिए धड़कने वाला दिल भी होगा और दूरदृष्टि वाला दिमाग भी। जनता फिर यह स्वयं पहचानना शुरू कर लेगी कि कौन सच्चे मन से प्रदेश सेवा में है और कितने दूरगामी विजन और सम्पूर्ण नेतृत्व कौशल के साथ जो बेहतर विशेषज्ञों की टीम के माध्यम से काम करे।
फिलहाल इस लेख में मेरा किसी पार्टी विशेष या नेतृत्व विशेष पर टिप्पणी करने का विचार नहीं परन्तु इस बात का उल्लेख करना नहीं भूलता कि दिल और दिमाग के इस सच्चे गठजोड़ के बिना वर्ष 1985 से कोई भी राजनैतिक दल प्रदेश में अपनी सरकार रीपीट नहीं कर पाया। मुझे ऐसा भी प्रतीत होता है कि कुछ बड़े राज्यों व् राष्ट्रीय स्तर के नेतृत्व जैसी कर्मठता की कमी के चलते हम पहाड़ी लोग पांच साल में ही इतनी थकान महसूस कर लेते हैं कि फिर हमें विश्राम की ही आवश्यकता रहती हैं।
शीर्ष नेतृत्व को चाहिए कि प्रदेश-प्रेम की भावना जगाने हेतु एक व्यापक रणनीति पर मंथन शुरू हो। यह उन्हीं पद-चिन्हों पर हो जैसा कि हिमाचल निर्माता से हमें विरासत मिली थी जिसमें शिमला-सिरमौर भी कांगड़ा-चम्बा को मन ही मन गुनगुनाता और ऊना बिलासपुर भी स्कूल कॉलेज में नाटी करता। अपने ज़िले के अंदर ही अपने निर्वाचन क्षेत्र तक घुसते गए नेताओं को प्रदेश-व्यापी होने के ईमानदार प्रयास करने होंगे अन्यथा प्रदेश को दिल-दिमाग के अंदर बसाने के सपने के विपरीत नकारात्मक एवं विध्वंसकारी सोच प्रदेश के लिए भी ‘टुकड़े टुकड़े’ चिल्लाने में देर न लगाएगी। नई पीढ़ी को भी प्रदेश-प्रेम के संस्कार परिवारों के बड़े अवश्य दें अगर वे सच में ही बड़े कहलाने के काबिल हैं तो। आखिर में फिर वही बात दोहराना चाहता हूँ कि जन-प्रतिनिधि समाज का आइना है इसलिए शिक्षकों और पत्रकारों को मुख्य रूप से समाज में सजगता के प्रयास तेज़ करने होंगे ताकि दिल भी धड़के और दिमाग भी चले।
इसी लक्ष्य हेतु मैं ‘द न्यूज़ वारियर्ज़’ को बधाई देता हूँ और हार्दिक शुभकामनाएं भी !