भगत सिंह जयंती – 23 साल की उम्र में देश की आजादी के लिए चढ़ गए थे फांसी
गुलामी की जंजीरो से भारत को मुक्त कराने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले क्रांतिवीर शहीद भगत सिंह आज हर हिंदुस्तानी के दिल में बसते हैं। उनकी गिनती भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन के सबसे प्रभावशाली क्रांतिकारियों में की जाती है जो महज 23 साल की उम्र में देश की आजादी के लिए फांसी के फंदे पर झूल गए। अविभाजित भारत के लायलपुर से लेकर बंगा गांव में जन्मे भगत सिंह सरदार किशन सिंह और विद्यावती कौर के सुपुत्र थे। उनकी जन्मतिथि को लेकर थोड़ा विरोधाभास है कुछ इतिहासकार उनकी जन्मतिथि 27 या 28 सितंबर 1907 बताते हैं पर कुछ तत्कालीन साथियों के अनुसार उनका जन्म 19 अक्टूबर 1907 को हुआ था।
भगत सिंह के जन्म के समय पर उनके पिता और उनके दोनों चाचा ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ होने के कारण जेल में बंद थे। जिस दिन उनका जन्म हुआ उसी दिन उन्हें जेल से रिहा किया गया था। ऐसे में भगत सिंह के घर में खुशियों की लहारआ गई और इसी कारण भगत सिंह की दादी ने उनका नाम भागो वाला रख दिया। भगत सिंह की प्रारंभिक शिक्षा गांव के प्राइमरी स्कूल से हुई प्राथमिक शिक्षा के पूर्ण होने के पश्चात उनका दाखिला लाहौर के डीएवी स्कूल में करा दिया गया।
भगत सिंह का संबंध देशभक्त परिवार से था वह सूरवीरो की कहानियां सुनकर ही बड़े हुए थे। विद्यालय में उनका संपर्क लाला लाजपत राय तथा अंबा प्रसाद जैसे क्रांतिवीर उसे हुआ। उनकी संगति में भगत सिंह के अंदर का शांत ज्वालामुखी सक्रिय अवस्था में आ रहा था और बाद में गांधीजी के असहयोग आंदोलन ने उनके देश भक्ति के जोश को चरम पर पहुंचा दिया।
13 अप्रैल 1919 के दिन अमृतसर में स्वर्ण मंदिर के समीप स्थित जलियांवाला बाग नामक स्थान पर ब्रिटिश ऑफिसर जनरल डायर ने अंधाधुंध गोलियां चलाकर चारों लोगों को मौत के घाट उतार दिया तथा अनेक लोगों को घायल कर दिया इस घटना का भगत सिंह पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा और यहीं से भारत में ब्रिटिश शासन की उल्टी गिनती शुरू हो गई। चौरी चौरा घटना के बाद गांधी जी ने असहयोग आंदोलन को वापस लेने का आह्वान किया इस फैसले से नाखुश भगत सिंह ने गांधीजी की अहिंसक कार्यवाही से खुद को अलग कर लिया और वे युवा क्रांतिकारी आंदोलन में शामिल हो गए।
इस प्रकार ब्रिटिश राज के खिलाफ हिंसक विद्रोह के सबसे प्रमुख क्रांतिकारी के रूप में उनकी यात्रा आरंभ हुई एक कट्टरपंथी समूह हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन में शामिल हुए फरवरी 1928 में इंग्लैंड से साइमन कमीशन भारत दौरे पर आया जिसका मुख्य उद्देश्य था भारत के लोगों की स्वायत्तता और राजतंत्र में भागीदारी इस आयोग में कोई भी भारतीय सदस्य नहीं था और इसी कारण देश में इस आयोग के प्रति विद्रोह की ज्वाला भड़क उठी लाहौर में साइमन कमीशन के खिलाफ नारेबाजी करते समय ब्रिटिश अधिकारी कोर्ट के आदेश पर लाला लाजपत राय पर क्रूरता पूर्वक लाठीचार्ज किया गया। जिससे वह बुरी तरह से घायल हो गए और बाद में उन्होंने दम तोड़ दिया।
उनकी मृत्यु का बदला लेने के लिए भगत सिंह ने शिवराम राजगुरु सुखदेव थापर और चंद्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारियों के साथ मिलकर स्कॉट की हत्या करने की योजना बनाई लेकिन उन्होंने गलती से सहायक अधीक्षक जॉन सांडर्स को स्कॉट समझकर मार गिराया। क्रांतिकारियों ने इस घटना की जिम्मेदारी लेते हुए पोस्टर लगाए।
मौत की सजा से बचने के लिए भगत सिंह को लाहौर छोड़ना पड़ा। इस सबके बावजूद भगत सिंह भूमिगत रहने और क्रांतिकारी आंदोलन में योगदान करने में कामयाब रहे। अप्रैल 1929 को उन्होंने बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में बम फेंका उनका उद्देश्य किसी की जान लेना नहीं था और इसी कारण उसे भीड़ वाली जगह से दूर सिंह का गया था लेकिन फिर भी कई परिषद सदस्य हंगामे में घायल हो गए। इस घटना के जुर्म में वे हिरासत में लिए गए।
उनकी क्रांतिकारी प्रवृत्तियां केंद्रीय जेल में भी देखने को मिली जब उन्होंने एक भूख हड़ताल का नेतृत्व किया। जिसने प्रशासन को हिला कर रख दिया इसके फलस्वरूप सरकार ने सांडर्स हत्याकांड के मुकदमे की सुनवाई तय तारीख से पहले करके उन्हें लाहौर की केंद्रीय जेल में स्थानांतरित कर दिया और बम विस्फोट के मामले में उनका कारावास थोड़े समय के लिए स्थगित कर दिया।
भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 7 अक्टूबर 1930 के दिन सांडर्स की हत्या के जुर्म में मौत की सजा सुना दी गई। यह तीनों क्रांतिकारी देशभक्ति के गीत गाते हुए फांसी के फंदे पर झूल गए थे।