बिलासपुर: वर्षों से भाखड़ा विस्थापितों व प्रभावितों की मूल भूत समस्याओं का नही हो पाया हैं समाधान

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31/03/2022

बिलासपुर जिला ग्रामीण भाखड़ा विस्थापितों व प्रभावितों की मूल भूत समस्याओं का वर्षों से नही हो पाया कोई भी समाधान

लोगों को करना पड़ रहा हैं समस्यओं का सामना

गोविन्द सगर झील में पानी भरने से अधिक हो जाती हैं समस्या 

बिलासपुर :-

बिलासपुर जिला ग्रामीण भाखड़ा विस्थापितों व प्रभावितों की मूल भूत समस्याएं वर्षों से अधर में लटकी हुई हैं। जिसके चलते लोगों को बहुत समस्यओं का सामना करना पड़ रहा हैं। गोविन्द सगर झील का क्षेत्रफल लगभग 168 वर्ग मील है इसमें लगभग 350 से अधिक गांव समाएं हैं व 41,000 एकड़ भूमि जलमग्न हुई है। जिसमें बिलासपुर जिला के 205 गांव व एक शहर झील में समाया है।

सरकार द्वारा समस्याओं पर नही दिया गया ध्यान 

भाखड़ा बाधं तैयार होने के बाद कई सरकारे केन्द्र व हिमाचल प्रदेश में आईं व गईं, परन्तु सरकार चाहे केन्द्र की हो या प्रदेश की किसी ने भी विस्थापितों के दर्द की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। क्षेत्र के पूर्व लोकसभा सदस्यों व विधानसभा सदस्यों ने भी इन समस्याओं के दर्द को न तो समझा और न ही सुना। कुछ एक पूर्व सदस्यों ने यह कहकर बात खत्म की कि भाखड़ा विस्थापितों का त्याग सराहनीय हैं ।

गोविन्द सगर झील में पानी भरने से बढ़ जाती हैं समस्या 

वहीँ, जब गोविन्द सगर झील जब भरती है तो पानी भाखड़ा से सलापड़ व सतलुज नदी की सहायक नदी नालों मे भर जाता हैं जिसके कारण एक गांव का दूसरे गांव से सामाजिक बंधन टूट जाता है। झील का पानी कम होने के कारण नदी नालों के किनारे दल-दल हो जाते है, जिनमे आवाजाही और भी कठिन हो जाती है तथा अनहोनी का डर भी बना रहता है।

1948 में  हुआ था भाखड़ा बांध का निर्माण

वर्ष 1954 में बिलासपुर सी स्टेट का विलीन हिमाचल प्रदेश में किया गया तथा भाखड़ा बांध का निर्माण 1948 में शुरू हुआ।  1963 में निर्माण पूर्ण होने के पश्चात् भारत के प्रथम प्रधानमंत्री ने देश को सौंपा। वर्ष 1957 से 1960 तक सभी औपचारिकतायें पूर्ण करने के बाद विस्थापितों का उजड़ना शुरू हो गया परन्तु विस्थापितों के पुर्नवास के लिए कोई भी नीति न तो केन्द्र सरकार और न ही प्रदेश सरकार की ओर से बनाई गई।

करीब 13 वर्ष के बाद विस्थापितों को किया गया पुर्नवासित 

विस्थापित आसपास के जंगलों में डेरा डाल कर बैठ गए।  कुछ एक विस्थापितों को हरियाणा में पुर्नवासित किया गया लेकिन वहां से भी कुछ परिवार वापिस आ गए और फिर से जंगल में पुर्नवासित हो गए। वर्ष 1971 में पुर्नवास के नियम शहर के लिए और ग्रामीण क्षेत्र के लिए अलग किये गए। विस्थापन के लगभग 13 वर्ष के बाद बने जिसके फलस्वरूप थोड़े से विस्थापितों को पुर्नवासित किया गया परन्तु उन्हें भी जो भूमि प्रदान की गई उस भूमि की निशानदेही भी सुचारू रूप से नहीं की गई।

क्या हैं भाखड़ा विस्थापितों व प्रभावितों की मूलभूत समस्यायें:-

1. भाखड़ा विस्थापित क्षेत्र का बन्दोबस्त करवाया जाये तथ विस्थापितों की कब्जे वाली भूमि स्वामित्व दिया जाए।

2. विस्थापितों व प्रभावितों के बिजली व पानी के काटे गए कनैक्शन शीघ्र बहाल किए जाए तथा विस्थापितों को बिजली पानी मुक्त दी जाए।

3. विस्थापितों व प्रभावितों का पीने का पानी व सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी झील से उपलब्ध करवाया जाए।

4. भाखड़ा विस्थापितों के बच्चों को BBMB व सरकारी नौकरियों में आरक्षण दिया जाए।

5. भाखड़ा से बिजली का उत्पादन का 7.19% हिस्सा हिमाचल सरकार को मिलता है तो राशि को विस्थापितों व प्रभावितों के क्षेत्र में मूलभूत सुविधाएं प्रदान करने पर खर्च किया जाए।

6. जिन भाखड़ा विस्थापितों को प्लॉट नहीं दिये गये उन्हें प्लॉट दिये जाऐं।

7. गोविन्द सागर झील में निम्न पुलों का निर्माण किया जाए:- भजवाणी पुल, वैरी दड़ोला से पुल- लूहणू ,ज्योर पतन पुल, बबखाल, बुखर से कोसरियां, गाह से चलैला, वाला पुल, डेहण से नारल पुल, नदं नगराँव से छंज्योटी

8. जिन विस्थापितों को भूमि प्रदान नहीं की गई उन्हें भूमि प्रदान की जाये। 10. मच्छवारों के हितों की रक्षा की जाये व उन के लिए कल्याणकारी योजनाएं बनाई जाएं।

9. गोविन्द सगर को पर्यटन की दृष्टि से विकसित किया जाए। हमें आप से आशा नहीं पूर्ण विश्वास है कि विस्थापितों व प्रभावितों की मूलभूत समस्य हल केन्द्र सरकार प्रदेश सरकार से शीघ्र अतिशीघ्र करवाने का प्रयास करें।

10. मच्छवारों के हितों की रक्षा की जाये व उन के लिए कल्याणकारी योजनाएं बनाई जाएं।

11.गोविन्द सगर को पर्यटन की दृष्टि से विकसित किया जाए।

 

 

 

 

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