सुहागिनों व कुँवारी कन्याओं की मनोकामना से जुड़ा- हरितालिका व्रत

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30 /08 /2022

हरितालिका तीज व्रत को महिलाएं बड़ी उत्साह से मनाती है

हरितालिका तीज:-

हिन्दू धर्म में उपवास या व्रत रखने का प्रचलन आदिकाल से है । धर्मशास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि पर्वतराज हिमालय एवं मैना की पुत्री सती ने शिव को प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी । अनेक कष्ट सहन किए, कई दिन भूखे प्यासे रहकर अपना प्रण पूरा किया । आखिर भगवान शिव ने हर जन्म में सती का ही वरण किया । हर बार माता पिता यही इच्छा थी कि सती का विवाह शिव से न हो लेकिन हर बार सती ने उन्हें किसी न किसी ढंग से मना लिया । इसके लिए सती ने अन्न जल तक छोड़ दिया । इससे ही उनकी मनो-कामना पूरी हुई । ऐसा मन जाता है कि इस तरह के धार्मिक घटनाक्रम से व्रत रखने का प्रचलन अस्तित्व में आया तथा इसे विधि विधान से किया जाने लगा ।

महिलाओं में व्रत रखने का अत्यधिक शौक

पुरुषों की आपेक्षा महिलाओं में व्रत रखने का अत्यधिक शौक होता है । इसलिए के व्रत त्यौहार के रूप में मनाए जाने लगे । सावन माह के शुक्ल पक्ष की तृतीय तिथि को मनाए जाने वाले हरितालिका तीज व्रत को महिलाएं बड़ी उत्साह से मनाती है । पक्ष में परिवर्तन होने के कारण यह व्रत भादो महीने में आया है । करवा चौथ के बाद हरितालिका तीज या चिड़िया रा व्रत महिलाओं का अत्यधिक लोकप्रिय व्रत है । चिड़िया रे व्रत को विवाहित महिलाएं भी रखती है तथा कुँवारी  कन्याएं सुपात्र वर को पाने के लिए इस व्रत को करती है । हर क्षेत्र में इस व्रत को अलग अलग विधि विधान से मनाने का रिवाज है ।

सती ने दूसरे जन्म में पार्वती के रूप में लिया था जन्म 

इस व्रत के बारे में कहा जाता है कि सती ने दूसरे जन्म में पार्वती के रूप में जन्म लिया था । देवऋषि नारद पर्वती का विवाह विष्णु भगवान से करवाने के बारे में हिमालयराज से बात कर चुके थे । लेकिन पार्वती शिव से ही विवाह करने के लिए अडिग थी । वह किसी भी परिस्थिति में भगवान विष्णु की अर्धांगनी बनाने को तैयार नहीं थी । कथानुसार पार्वती ने अपनी यह समस्या अपनी एक सखी को बताई । सावन का महीना था । हर ओर हरियाली छाई थी । सखी ने पार्वती का हरण करके एक वीरान स्थान पर ले गई तथा एक गुफा में बिठा दिया । उस दिन शुक्ल पक्ष की तृतीय तिथि थी । वहां न पीने को पानी था और न ही कन्दमूल आदि खाने को थे । पार्वती वहां कई दिनों तक भूखी प्यासी रही । महलों में न पाकर पिता को पुत्री की चिंता सताने लगी । उधर यह भी डर था कि इस बात से कहीं विष्णु नाराज न हो जाए ।

महिलाएं एकत्रित होकर भजन-कीर्तन करती है

एक दिन हिमालय ने उन्हें गुफा में ढूंढ ही लिया । पुत्री के हठ के आगे पिता को झुकना ही पड़ा । इसलिए पार्वती का विवाह दूसरी बार भी शिव से ही हुआ ।भगवान शिव ने स्वयं यह कथा पार्वती को सुनाई थी । अब यही कथा व्रतधारी महिलाएं सुनती है । मिट्टी से बनी शिव पार्वती व चिड़ियां आदि मूर्तियों की पूजा करती है । रात भर महिलाएं एकत्रित होकर भजन-कीर्तन करती है । कई महिलाएं तो व्रत के दौरान पानी तक भी नहीं पीती है । यह एक दिन एक रात का व्रत माना गया ।

व्रत से एक महीने से ही तैयारी में जुट जाती है महिलाएं 

ग्रामीण महिलाएं इस व्रत से एक महीने से ही तैयारी में जुट जाती है । आसपास से चिकनी मिट्टी लाई जाती है । उसे छान कर बारीक मिट्टी को गूंथ कर उसके पेड़े बनाकर सुखाया जाता है । व्रत के सप्ताह भर पहले उसे कूट कर फिर बारीक किया जाता है । उसमें कुछ रुई और चीड़ की पत्तियों का बारीक चुरा मिलाकर उसे माखन की तरह मुलायम बनाया जाता है । उस मिट्टी से शिव पार्वती व अन्य देवी देवताओं के साथ चिड़ियों की छोटी छोटी मूर्तियां बनाई जाती है । उन्हें रंगों से सजाया जाता है । व्रत के दौरान उन मूर्तियों की पूजा की जाती है । उन्हें भोग लगाने के बाद ही व्रत को खोला जाता है । कई व्रत होने के बाद महिलाएं अपनी सामर्थ्य अनुसार इस व्रत का उद्यापन भी करती है । बताया जाता है कि इस व्रत को धारण करने से कुवांरी  कन्याओं को मनपसंद वर मिलता है तथा विवाहित महिलाओं के सुहाग की रक्षा होती है ।

 

 

 

 

 

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