<1974 की बात है उस समय डाक्टर यशवंत सिंह परमार हिमाचल के मुख्यमंत्री हुआ करते थे। उस दौर में कांगड़ा से टूटकर बने हमीरपुर जिले का वर्तमान भोरंज विधानसभा क्षेत्र " मेवा " विधानसभा के रूप में जाना जाता था। मुख्यमंत्री यशवंत सिंह परमार मेवा विधानसभा में एक मेले के दौरान मुख्यअथिति क रूप में पधारे थ। मंच समारोह के बाद डाक्टर परमार मेले का मुआयना करने पैदल निकल पड़े और हर दूकान का अवलोकन करते हुए लोगो से बात करने लगे। मुख्यमंत्री के साथ मुख्य सचिव समेत पूरा प्रशासनिक अमला साथ चल रहा था।
एक चूड़ियों की दूकान जिसमे सिर्फ एक चादर के ऊपर ढेर सारी रंग बिरंगी चुडिया सजी हुई थी परमार का काफिला पहुंचा। चूड़ियां खरीद रही महिलाएं एक साथ इतने सारे पुरषों को देखकर सकपकाकर एक तरफ हट गईं और डाक्टर परमार अचानक चूड़ियां बेच रहे दुकानदार के सामने आ गए। दोनों की नजरे मिली और एक बार के लिए ठिठक गईं। डाक्टर परमार के मुंह से हैरानी से शब्द निकले " अमर सिंह तुम यहाँ ?
दुकानदार अमर सिंह ने भी आगे बढ़कर डाक्टर परमार का अभिवादन किया। डाक्टर परमार ने अमर सिंह को भींच के गले लगाया और पूछा अमर सिंह तुम ये चूड़ियां यहाँ मेले में बेच रहे हो ? अमर सिंह ने कहा परमार साब अब मैं विधायक तो रहा नहीं। जीवन यापन और भरण पोषण परिवार चलाने के लिए यही मेरी आजीविका का साधन है।
चूड़ियां बेचने वाले वो दूकानदार भाजपा के मूल संगठन तात्कालिक जनसंघ से वर्ष 1967 से 1972 विधायक रहे अमर सिंह थे। अमर सिंह एक गरीब परिवार से सम्बन्ध रखते थे और एक ईमानदार व्यक्ति थे। 1972 मे वह चुनाव हार गए। उसके बाद अपनी आजीविका चलाने के लिए मेलो मे चूडियां बेचने लगे। डॉ परमार यह देख सुन कर स्तब्ध रह गये। उन्होने सोचना शुरू किया कि वह व्यक्ति जो कुछ माह पहले मुख्यसचिव से प्रोटोकॉल में उपर था आज इस दयनीय स्थिति मे है। वह यह सब देख और सुन कर विचलित हो गए। परमार के मन में विचार आया कि इस प्रकार यदि पूर्व विधायको को चूडियां बेचनी पडी तो वह चुने हुए प्रतिनिधियो की गरिमा को खत्म कर देगा। कोई भी अफसर कह सकता है कि विधायक जी क्यो इतरा रहे हो पांच साल बाद तो आपने चूडियां ही बेचनी है। इसलिए डॉ परमार ने पहली बार पूर्व विधयकों के लिए तीन सौ रूपये प्रति माह पैंशन का प्रावधान किया था।
सबसे बड़ी बात एक विपक्षी पूर्व विधायक की यह स्थिति देखकर डाक्टर परमार ने यह फैसला लिया था। हालाँकि आज न विद्यायाको की यह स्थिति है न उनकी पेंशन इतनी कम।
प्रदेश कर्मचारियों के बीच NPS की जगह OPS लगाने का मुद्दा आज जोर शोर से चल रहा है। नई पेंशन स्कीम से कर्मचरी खफा है और कहते है की उन्हें भी सेवानिवृति के उपरान्त कही ऐसे ही काम धंधे न करने पड़ जाएँ। वही उनका तर्क है की फिर मंत्री विधायक खुद नई पेंशन स्कीम के दायरे में क्यों नहीं आ जाते।
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