THE NEWS WARRIOR
11 /07 /2022
बढ़ती जनसंख्या पर लगाम लगाना जरूरी
विश्व जनसंख्या दिवस:-
हर वर्ष 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस दुनिया भर में बढ़ती जनसंख्या के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिये मनाया जाता है। पहली बार 11 जुलाई, 1989 को विश्व जनसंख्या दिवस मनाया गया था, उस समय विश्व की जनसंख्या लगभग 500 करोड़ थी। आज विश्व की जनसंख्या सात अरब से ज्यादा है और हमारे देश की जनसंख्या 125 करोड़ से अधिक है। भारत विश्व का दूसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है। आजादी के समय भारत की जनसंख्या 33 करोड़ थी, जो आज चार गुना तक बढ़ गई है। अभी भारत की जनसंख्या विश्व की जनसंख्या का लगभग 17.5 प्रतिशत है। क्षेत्रफल के नजरिये से देखें तो हमारे पास विश्व की 2.4 प्रतिशत भूमि है और 4 प्रतिशत जल संसाधन हैं ।
परिवार नियोजन के प्रति जागरूकता की कमी
गरीबी,अनपढ़ता, स्वास्थ्य और परिवार नियोजन के प्रति जागरूकता की कमी के कारण जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। भारत की पिछले दशक की जनसंख्या वृद्धि दर 17.64 प्रतिशत रही है। विभिन्न अध्ययनों से पता चला है कि 2025 तक भारत चीन को भी पीछे छोड़ देगा और विश्व का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन जाएगा।
लैंसेट अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2048 में भारत की जनसंख्या विश्व में सबसे ज्यादा होने का अनुमान लगाया गया है जो वर्ष 2017 की 1.38 बिलियन जनसंख्या से बढ़कर लगभग 1.6 बिलियन हो जाएगी।
चीन की वार्षिक वृद्धि दर के दोगुने से अधिक
उच्च जनसंख्या वृद्धि दर के कई कारण हैं जिनमें बढ़ती जन्म-दर और बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था के कारण घट रही मृत्यु-दर, गरीबी, संयुक्त परिवार, बाल विवाह, कृषि पर निर्भरता, अशिक्षित समाज, धार्मिक व सामाजिक अंधविश्वास, भ्रामक धारणाएं और स्वास्थ्य के प्रति अवैज्ञानिक दृष्टिकोण आदि प्रमुख हैं। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष द्वारा जारी स्टेट ऑफ़ वर्ल्ड पॉपुलेशन-2019 रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2010 और 2019 के बीच भारत की आबादी लगभग 1.2 प्रतिशत बढ़ी है, जो चीन की वार्षिक वृद्धि दर के दोगुने से अधिक है। स्टेट ऑफ़ वर्ल्ड पॉपुलेशन-2022 रिपोर्ट के ताजा आंकड़ों के अनुसार , यौन और प्रजनन स्वास्थ्य की देखभाल औऱ सम्बंधित जानकारी के अभाव के कारण 2015 से 2019 के बीच हर वर्ष वैश्विक स्तर पर लगभग 121 मिलियन अनपेक्षित गर्भधारण हुए।
भारतीय संतान उत्पत्ति को ईश्वरीय समझते हैं वरदान
जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए सरकार ने कई जनसंख्या नीतियां, परिवार नियोजन और कल्याण कार्यक्रम शुरू किए हैं और प्रजनन दर में लगातार कमी भी आई है। हम भारतीय संतान उत्पत्ति को ईश्वरीय वरदान समझते हैं और कृत्रिम उपायों से गर्भ निरोध को पाप समझते हैं। बढ़ती आबादी के कारण बड़े पैमाने पर बेरोजगारी तो बढ़ ही रही है, साथ ही साथ कई तरह की आर्थिक और सामाजिक समस्याएं भी पैदा हो रही हैं। इतनी बड़ी जनसंख्या को भोजन उपलब्ध करवाने के लिए यह आवश्यक है कि हमारा खाद्यान्न उत्पादन भी उसी दर से बढ़े जिस दर से जनसंख्या वृद्धि हो रही है।
प्राकृतिक संसाधनों पर भी बढ़ रहा भार
जनसंख्या में वृद्धि होने के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों पर भार भी बढ़ रहा है। जनसंख्या वृद्धि के कारण खाद्यान्न समस्या का सबसे अधिक सामना विकासशील देश कर रहे हैं। हमारे देश की खुशहाली के लिए यह जरूरी है कि जनसंख्या की गति धीमी की जाए। हमने मृत्यु-दर को तो सफलतापूर्वक कम कर दिया है, पर जन्म-दर कम करने में हम उतने सफल नहीं हो पाए हैं । भारत में, प्रति महिला कुल प्रजनन दर वर्ष 1969 के 5.6 से घटकर वर्ष 1994 में 3.7 और वर्ष 2019 में 2.3 थी। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के अनुसार
कुल प्रजनन दर 2.2 थी। हाल ही में जारी राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के पांचवें दौर की रिपोर्ट के अनुसार देश में कुल प्रजनन दर 2.2 से घटकर 2.0 हो गई है। यह जनसंख्या नियंत्रण उपायों के कारण ही संभव हो पाया है। केवल पांच राज्य ऐसे हैं जहां प्रजनन दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है। ये राज्य हैं-बिहार (2.98), मेघालय (2.91), उत्तर प्रदेश (2.35), झारखंड (2.26) और मणिपुर (2.17)
दक्षिण भारतीय राज्यों की प्रजनन दर का संतोषजनक स्तर 1.5 है।
जनसंख्या वृद्धि दर बहुत ऊँची
हमारे देश के कई राज्यों में प्रति महिला बच्चों की प्रतिस्थापन प्रजनन दर 2.1 है, यही जनसंख्या वृद्धि पर रोकथाम लगाने पर वांछित परिवार का आकार होना चाहिए।
प्रतिस्थापन स्तर का मतलब है जब जितने लोग मरते हैं उनका खाली स्थान भरने के लिये उतने ही नए बच्चे पैदा हो जाते हैं। कभी-कभी कुछ जगहों में प्रजनन दर का स्तर प्रतिस्थापन दर से नीचे रहता है। आज विश्व में कई ऐसे देश और क्षेत्र हैं जहाँ ऐसी स्थिति है जैसे, जापान, रूस, इटली एवं पूर्वी यूरोप। वहीं दूसरी तरफ कुछ क्षेत्रों में जनसंख्या वृद्धि दर बहुत ऊँची हो जाती है।
स्टेट ऑफ़ वर्ल्ड पॉपुलेशन-2019 रिपोर्ट के अनुसार, प्रजनन और यौन अधिकारों की कम जानकारी होने का महिलाओं की शिक्षा, आय एवं सुरक्षा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे वे अपना स्वयं का भविष्य निर्माण करने में असमर्थ हो जाती हैं और जल्दी विवाह हो जाना भी महिला सशक्तीकरण और बेहतर प्रजनन अधिकारों के संबंध में एक बाधा बना हुआ है।
बढ़ती जनसंख्या राष्ट्रीय चिंता
2001 में हिमाचल की जनसंख्या 60 लाख के करीब थी जो 2011 में 68.64 लाख हो गई, या यूं कहें कि पिछले दशक में हिमाचल में जनसंख्या वृद्धि दर 12.94 प्रतिशत रही। राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000 में जनसंख्या को स्थिर करने का लक्ष्य 2045 रखा गया था जो बाद में 2065 कर दिया गया। देश की बढ़ती जनसंख्या राष्ट्रीय चिंता है। इस पर जन-जागरूकता जरूरी है। शिक्षित और जागरूक परिवार जनसंख्या नियंत्रण के पक्ष में हैं। समृद्ध परिवारों की प्रजनन दर गरीब परिवारों की प्रजनन दर से कम है।
दृष्टिकोण औऱ सोच को बदलना
जनसंख्या में कमी, बेहतर पोषण, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं जैसे सभी लक्ष्यों को पाने के लिये सरकारों और सामाजिक संस्थाओं के बीच बेहतरीन सामंजस्य की जरूरत है। महिलाओं की आर्थिक स्थिति में सुधार औऱ शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना तथा अधिक बच्चों के जन्म देने के दृष्टिकोण औऱ सोच को बदलना आदि कुछ ऐसे उपाय हैं जिनसे जनसंख्या को नियंत्रित किया जा सकता है।
हम दो, हमारा एक, सुंदर और नेक
1990 के दशक में मैनें बचपन में कई अस्पतालों में परिवार नियोजन से सम्बंधित कई नारे लिखे हुए देखे हैं, जैसे कि, हम दो , हमारे दो, दो ही काफी, बाकी से माफी, और छोटा परिवार, सुखी परिवार, आदि। फिर भी जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है। कुछ दिन पहले एक नया नारा कहीं लिखा हुआ पढ़ा मैंने- वो नारा था- हम दो, हमारा एक, सुंदर और नेक।
मुझे लगता है अब समय आ गया है कि हम इस नये नारे का सही तरीके से कार्यान्वयन करें ताकि बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण पाया जा सके। ये शिक्षित और जागरूक समाज के सहयोग से ही सम्भव हो सकता है।
लेखक- प्रत्यूष शर्मा
ईमेल- ankupratyush5@gmail.com
फोन- 7018829557
पता– प्रत्यूष शर्मा S/O विधि चंद शर्मा, गाँव – पलासन, डाकघर- नाल्टी, तहसील और जिला- हमीरपुर, हिमाचल प्रदेश। पिन-177001
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