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विश्व के सबसे पुराने धर्म हिंदू धर्म में काफी रीति रिवाज,व्रत-त्योहार एवं परंपराएं हैं I हिंदू धर्म एक ऐसा धर्म है,जहाँ बच्चे के गर्भधारण से लेकर मृत्यु उपरांत तक अनेक संस्कार किए जाते हैं । हिन्दू धर्म में अंत्येष्टियों को अंतिम संस्कार कहा है I मृत्यु के बाद भी कुछ ऐसे कर्म रह जाते हैं,जिन्हें मृतक की संताने करती हैं Iजिनमें श्राद कर्म भी एक माना गया है,जिसे पिता की संतान या अन्य सगा संबंधी करते हैं I शास्त्रों के अनुसार प्रत्येक मास की अमावस्या को पितृ श्राद संज्ञा भी दी गई है I
प्रति वर्ष भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पूर्णमासी से लेकर आश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या पितृ पक्ष कहलाता है I हिन्दू धर्म के शास्त्रों के अनुसार अपने पूर्वजों के प्रति आस्था व् सम्मान देने के लिए साल में एक बार श्राद किए जाते हैं I मान्यता है कि धर्मराज पितरों को इन दिनों पन्द्रह दिनों के लिए म्रत्यु लोक में भेजते हैं I इसलिए पितरों को खुश करने के लिए उनकी संताने श्रधा के साथ नानाप्रकार के व्यंजनों का भोज ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा सहित करवाते हैं ताकि पूर्वजों का अश्रीवाद बना रहे I
हमारे ग्रंथों में बताया गया है कि कोई भी शुभ कार्य की शुरुआत से पहले पितरों की भी पूजा करनी चाहिए I ज्योतिषाचार्यो के अनुसार कुंडली में पितृ दोष को भी प्रमुख माना गया है I पितृदोष से मनुष्य को संतान हानि ,धन हानि और बाधाओं की अधिक संभावना रहती है I इसलिए पितृदोष से मुक्ति के लिए पितृ शांति करानी बहुत जरुरी मानी गई है I
जब किसी मनुष्य की कुंडली में मंगल और राहु ग्रह अशुभ स्थान पर हों तो उस मनुष्य को पितृदोष का प्रभाव रहता है I इसलिए ऐसे मनुष्यों को पितृदोष शांति अवश्य करवानी चाहिए I
श्राद कब करवाना चाहिए -:
जिस दिन किसी प्राणी की मृत्यु होती है उस दिन पंचांग में जो तिथि होगी व उस प्राणी की मृत्यु तिथि कहलाती है I तो उस प्राणी का श्राद अश्विन कृष्ण पक्ष की उसी तिथि को किया जाता है I
यदि प्राणी की मृत्यु तिथी ज्ञात नहीं हो तो उनका श्राद अश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या को किया जाता है I इसे सर्वपितृ या अमावस्या श्राद भी कहा जाता और इसके साथ ही श्रादों का समापन भी हो जाता है I
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