हिन्दू पक्ष के अनुसार हमने बहुत सी किवदंतियां और बहुत से सन्दर्भ पढ़े हैं जिनमे कुल्लू के लिए कुलूत तथा कुलांतपीठ नाम का वर्णन अन्यान्य अपभ्रंशों के आधार पर जोड़ा जाता रहा है।
कुल्लू की नाम व्युत्पत्ति के आरंभिक संदर्भ ब्रिटिश सेना के बंगाल इंजीनियर ग्रुप में इंजीनियर अलेक्जेंडर कनिंघम ने अपने पुरातात्विक लेखकीय वृत्तांतों में सर्वप्रथम इंगित किए थे। जिन्होंने अर्वाचीन समय में चीनी यात्री ह्वेन सांग द्वारा सम्बंधित क्षेत्र के उद्धरण देते हुए इसका पुराना नाम Kiu-lu-to उल्लिखित किया है। साथ ही कुल्लू के लोगों के लिए विष्णु पुराण के उद्धरण Uluta तथा रामायण व वृहत संहिता के उद्धरण Kaulutas का उल्लेख कनिंघम द्वारा किया गया है। कनिंघम के यही उद्धरण अलेक्जेंडर हेंडरसन डायक द्वारा संयोजित 1897 के कांगड़ा गेजेटीयर में भी उल्लिखित है। कुल्लू के स्थानीय इतिहास से संबंधित इसके बाद के काल की लगभग सभी पुस्तकों में इन्हीं उद्धरणों को आधार बनाकर आगे विवेचना की गई है।
स्थानीय स्तर पर विद्या चंद ठाकुर जी द्वारा कुल्लू नाम के विषय मे विस्तार से लिखा गया, जिसके अनुसार वामन पुराण, महाभारत के कर्ण पर्व, कुलांतपीठ महात्म्य के अंतर्गत कुल्लू नाम से मिलते जुलते नामों का उल्लेख किया गया। वहीं, कोलासुर, कुलौंउत राक्षस तथा कोली समुदाय से कुल्लू नाम के उध्दृत होने की संभावना भी प्रकट की गई है।
इसी प्रकार विद्या चंद ठाकुर जी के अलावा लाल चंद प्रार्थी जी ने अपनी पुस्तक ‘कुलूत देश की कहानी’ में ब्रह्मांड पुराण के अंश ‘कुलांतपीठ महात्म्य’ का ज़िक्र करते हुए नाम व्युत्पत्ति के इस अन्वेषण को आगे बढ़ाया है। हिमालय में 60-70 के दशक की सुप्रसिद्ध यात्री व The End of The Habitable World की लेखिका Penelope Chetwode ने भी अपनी पुस्तक में यही वृतांत प्रस्तुत किया है। उन्होंने औरों से एक कदम आगे जाकर अपनी पुस्तक के शीर्षक को कुलंटपीठ के साथ पूरी तरह सम्बद्ध किया है।
मूलतः बात यही है कि सभी देशी-विदेशी साहित्यकारों ने इन्हीं सन्दर्भों के आधार पर कुल्लू का नाम कुल्लू होने की संभावना व्यक्त करते हुए इस स्थान की कथा को आगे बढ़ाया है।
जहां तक सम्भावना और अनुमान की बात है, इस स्थान विशेष के लिए चीनी यात्री ह्वेन शांग के जिस सर्वप्रथम उद्धरण का वर्णन कनिंघम करते हैं , यदि गौर किया जाए तो उनका कुल्लू के लिए किया गया संबोधन ‘क्यू-लू-तो’ हमे इस नाम के एक अलग पक्ष को देखने पर मजबूर करता है। भोटी भाषा में ‘क्लू’ शब्द का अर्थ उस स्थान के विषय मे है जहां ‘snake gods’ रहते हों। ऐसे ‘snake gods’ जिनका जल पर अधिपत्य हो।
― heuen tsang (klu-to) and snake gods description from bon-po religion
देखने योग्य बात है कि स्थानीय साहित्यकार व लेखक इस बिंदु को केवल इस आधार पर नकार देते हैं कि चीन के लोगों के साथ उच्चारण और लिपिभेद के कारण ह्वेन सांग ने कुलूत को क्यू-लू-तो कहा होगा। यहां ध्यान देने योग्य बात है कि कुल्लू को तिब्बत के लोग न्यूँगति (Nyungati) कहते थे। तो इस बात की संभावना भी है कि तिब्बत से यहां आते हुए उसने आगे के महत्वपूर्ण पड़ावों की जानकारी एकत्र की हो। बहुत सम्भव है ह्वेन सांग को क्यू-लू-तो और न्यूंगति के उच्चारण भेद का अंतर पता हो।
दूसरे संदर्भ में यही नाम हमे हिंदुकुश की काफ़िर प्रजाति के सम्बंध में दिखता है। हिंदुकुश के प्रमुख पूर्व इस्लामिक देवताओं में से एक देवता हैं ― बागिष्त (Bagisht)। वहां के कबाइली समुदाय में बागिष्त देवता का दूसरा नाम ‘opkulu’ है। वहां भी ‘kulu’ शब्द जलधाराओं और नाग जाति की जलीय शक्तियों के लिए प्रयुक्त होता है और विशेष बात यह कि बागिष्त नाम का सम्बन्ध हमे वासुकी नाग से मिलता है।
― The religions of the Hindukush, vol 1 : Karl Jettmar
Page 74 , Bagisht/Opkulu
कुल्लू की स्थानीय मान्यताओं के अनुसार नाग देवताओं का जल पर अधिपत्य माना जाता रहा है। यदि हम भौगोलिक संबंध में भी देखें कुल्लू में ऐसा कौन सा जलाशय या झरना है जिसका सम्बन्ध किसी ना किसी रूप में नागों के साथ ना आता हो? बारिश के देवताओं में भी यही नाग जाति के देवता ही प्रमुख माने जाते हैं। नागणी सौर, बूढ़ी नागिन, किसी तालाब या झील के पास ―नागे रा डेहरा और ऐसे ही अन्य सैंकड़ों स्थान, जहां नागों का जल पर आधिपत्य है। क्या यह नाग और जल का सम्बंध काफ़ी नहीं, समझने के लिए कि कुल्लू का नाम इस संदर्भ में भी तो हो सकता है।
संभावनाओं के आधार पर यह भी एक सशक्त पहलू है जिसपर गौर करने की आवश्यकता बहुत पहले से थी। कबाइली प्रथाओं को छोड़कर कालांतर में पौराणिक सन्दर्भों का गौरव आयात करने की आवश्यकता क्यों पड़ी, अभी इसपर कुछ कहना मुश्किल है। पुराण और गौरव गाथाओं का अपना महत्व है। वे अपनी जगह हैं और स्थानों से संबंधित वास्तविकता अपनी जगह।
Kulu नाम के विषय में यह नाम कहीं ना कहीं हिंदुकुश और भोट भाषाओं में स्पष्ट रूप से जल से सम्बंधित देव शक्तियों को प्रस्तुत करता है। बाकी मान्यताओं के अनुसार आप जो भी मानते हों, उसका भी पूरा सम्मान है। चाहे किसी पुराण के व्याख्यान को मान लीजिए, या महाभारत के किसी अंश में वर्णित कुलूत को। वर्षों वर्ष हम सभी पूर्ववर्णित संदर्भो के आधार पर कुल्लू को कुलूत और कुलांतपीठ ही मानते रहे हैं। परंतु इतिहास के प्रति जिज्ञासु प्रवृति कभी-कभी इन पौराणिक किवदंतियों पर विश्वास करने नहीं दे रही थी।
रही बात ब्रह्मांड पुराण के कौलान्तक पीठ पर लिखे गए खंड की, तो सम्भवतः वह भी वैसे ही अस्तित्व में आया है, जैसे आदि मनु के लिखे गए 600 के लगभग श्लोक आज 2400 हो चुके हैं।