The news warrior
3 अक्तूबर 2023
बिलासपुर : सदर विधायक त्रिलोक जमवाल ने प्रदेश सरकार के शहरी स्थानीय निकायों से ग्रांट-इन-एड का 50 फीसदी पैसा मांगने के आदेशों की कड़ी निंदा की है। उन्होंने कहा कि आर्थिक तंगी का रोना रो रही प्रदेश सरकार ने शहरी स्थानीय निकायों की ग्रांट पहले ही कम कर दी है। अब उसकी गिद्ध दृष्टि इन निकायों को छठे वित्त आयोग के तहत इस वित्त वर्ष के लिए मिले बजट पर भी पड़ गई है। उन्होंने कहा कि इसका प्रभाव जनहित से जुड़े कार्यों पर पड़ेगा वहीं विकास कार्यों पर भी ग्रहण लग जाएगा। इस तरह के बेतुके आदेश जारी करने के बजाए सरकार को अपने खर्चों में कटौती करनी चाहिए।
ग्रांट-इन-एड का 50 फीसदी पैसा जमा कराने के आदेश
त्रिलोक जमवाल ने कहा कि प्रदेश सरकार ने 60 शहरी स्थानीय निकायों से ग्रांट-इन-एड का 50 फीसदी पैसा जमा करवाने को कहा है। शहरी विकास विभाग की ओर से इस बारे आदेश जारी किए गए हैं। इनमें 26 नगर पंचायतें, 29 म्युनिसिपल काउंसिल और 5 म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन शामिल हैं। इस लिहाज से इन निकायों को कुल 143.8 करोड़ रुपये जमा करवाने होंगे। नगर पंचायतों को 76.8 करोड़, म्युनिसिपल काउंसिल को 33.3 करोड़ तथा म्युनिसिपल कॉरपोरेशन को 33.74 करोड़ देने पड़ेंगे। यह ग्रांट छठे वेतन आयोग के तहत चालू वित्त वर्ष के लिए मिली है। प्रदेश सरकार ने पिछले साल की तुलना में इन निकायों की ग्रांट में पहले ही 20 फीसदी कटौती कर दी है। ऐसे में सरकार के इस नए बेतुके फरमान से संबंधित निकाय भी हैरान हैं।
सरकार द्वारा पैसा लेना बेहद शर्मनाक
त्रिलोक जमवाल ने कहा कि अपने-अपने क्षेत्रों में विकास कार्यों को अमलीजामा पहनाने के लिए निकाय काफी हद तक सरकार की ग्रांट पर निर्भर करते हैं। ऐसे में सरकार द्वारा उन्हें कुछ देने के बजाए उनसे पैसा लेना बेहद शर्मनाक है। सरकार के इस फरमान से संबंधित निकायों के सामने हाथ खड़े करने जैसी नौबत आ गई है। बरसात के मौसम में आपदा के दौरान बंद हुई कई सड़कों और रास्तों को बहाल करने का काम अभी बाकी है। विकास के नए काम शुरू करना तो दूर, सरकार द्वारा ग्रांट-इन-एड का पैसा मांगने से इस तरह के जरूरी कार्य भी नहीं हो पाएंगे। कई निकायों ने ग्रांट का पैसा खर्च कर लिया है, जबकि कइयों ने अलग-अलग कार्यों के लिए टेंडर जारी कर दिए हैं। इस लिहाज से अब उन्हें टेंडर रद करने पड़ेंगे। सरकार का कहना है कि निकायों को सालाना के बजाए अब हर महीने ग्रांट दी जाएगी, लेकिन उसकी नीयत में खोट साफ नजर आ रहा है। अपने बेतुके फरमान से उसने निकायों को शोपीस बनाकर रख दिया है। बेहतर होगा कि इस जनविरोधी आदेश को तुरंत वापस लिया जाए, ताकि क्षेत्र के विकास और अन्य कार्यों को अमलीजामा पहनाने में निकायों को कोई परेशानी न हो।