राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग को ज्यादा शक्तियां दी जाए : डॉ अमित धर्मसिंह

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शिमला

दिल्ली के युवा दलित चिंतक, सामाजिक कार्यकर्ता और नव दलित लेखक संघ के संस्थापक डॉ. अमित धर्मसिंह ने कहा है कि राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग को और प्रभावी बनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जाति आधारित भेदभाव के खिलाफ सभी वर्गों और समुदायों के युवाओं को साथ लेकर अभियान चलाने की जरूरत है।

भारत रत्न बाबा साहब अंबेडकर के महापरिनिर्वाण दिवस पर उमंग फाउंडेशन द्वारा आयोजित वेबीनार “अनुसूचित जातियों के मानवाधिकार और उनके संरक्षण में युवाओं की भूमिका” में वह मुख्य वक्ता थे।

कार्यक्रम के संयोजक और दिल्ली विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर डॉ. सुरेन्दर कुमार ने बताया कि आजादी के अमृत महोत्सव और हिमाचल प्रदेश की स्वर्ण जयंती के उपलक्ष में उमंग फाउंडेशन द्वारा मानवाधिकार जागरूकता के वेबिनारों की सीरीज़ में  यह 12वां कार्यक्रम था।

 

डॉ अमित धर्म सिंह ने कहा कि डॉ. भीमराव अंबेडकर का संघर्ष, सफलता और शिक्षाएं समूचे समाज के लिए प्रेरणा हैं। यदि वे संविधान निर्माण में सबसे महत्वपूर्ण और अग्रणी भूमिका में नहीं होते तो आज दलित वर्ग को कानूनी अधिकार नहीं मिल पाते। उन्होंने कहा कि लोगों की सड़ी-गली मानसिकता में बदलाव सिर्फ संविधान और कानून के माध्यम से नहीं आ सकता। इसके लिए युवाओं को समाज में लगातार काम करने की जरूरत है।

 

उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय स्तर के आंकड़े बताते हैं कि सबसे ज्यादा आबादी वाले उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश बिहार आदि राज्यों के साथ-साथ छोटे राज्यों में भी दलितों के उत्पीड़न की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। इन मामलों में सज़ा का प्रतिशत बहुत कम है। जबकि यह माना जाता है की अनुसूचित जाति अत्याचार निवारण कानून काफी सख्त है। हकीकत यह है कि पुलिस शुरू में ही केस को काफी कमजोर बना देती है। इससे परिणाम शून्य हो जाता है और अपराधी छूट जाते हैं।

उनका कहना था कि दलितों के साथ गांवों में पीने के पानी के स्रोतों, श्मशान एवं मंदिर में प्रवेश, बरात में दूल्हे का घोड़ी पर चढ़ना व बैंड-बाजा बजाना आदि मुद्दों पर भेदभाव और अत्याचार होता है। सदियों पुरानी दकियानूसी सोच को बदलने में युवा महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

डॉ अमित धर्म सिंह ने अनुसूचित जातियों के मानवाधिकारों पर विस्तार से चर्चा की और कानूनी प्रावधान भी बताए। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के पास पर्याप्त शक्तियां नहीं हैं। उससे पीड़ितों को अक्सर न्याय नहीं मिल पाता।

उमंग फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रो. अजय श्रीवास्तव ने अपने बचपन के निजी अनुभव सांझा करते हुए कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से प्रभावित उनके माता-पिता की सोच में छुआछूत या जाति आधारित भेदभाव कभी नहीं रहा। इसलिए आने वाली पीढ़ियों की मानसिकता में बुनियादी बदलाव आ गया। उन्होंने कहा कि युवाओं को यह बदलाव खुद में लाना चाहिए। कार्यक्रम के संचालक में डॉ. सुरेंदर कुमार, विनोद योगाचार्य, सवीना जहाँ, और उदय वर्मा आदि ने सहयोग दिया।

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