पहाड़ बने आप के लिए बड़ी चुनौती

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24/03/2022

AAP के सामने संगठनात्मक ढांचा तैयार करना सबसे बड़ी समस्या

तीसरे विकल्प के तौर पर नौ सियासी दलों को नकार चुके हैं हिमाचल के लोग

6 अप्रैल को तय होगा AAP का भविष्य

शिमला:-

पंजाब में जीत के बाद अब आम आदमी पार्टी पड़ोसी राज्य हिमाचल में भी वैसे ही करिश्मा करने की उम्मीद के साथ तैयारी में जुट रही है। पहाड़ी राज्य का इतिहास बताता हैं कि पार्टी के सामने अभी भी ‘पहाड़’ बड़ी चुनौती के रूप में खड़े है। जहां पहाड़ो में AAP के सामने संगठनात्मक ढांचा तैयार करना सबसे बड़ी समस्या है वहीं हिमाचल के लोग इससे पहले तीसरे विकल्प के तौर पर नौ सियासी दलों को नकार चुके हैं।

पहाड़ क्यों बने AAP के लिए बड़ी चुनौती

हिमाचल में 2019 में लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को चारों सीट पर चुनाव लड़ने के बाद मात्र 2.06 फीसदी वोट मिले थे। वहीं पिछले साल सोलन नगर निगम चुनाव में भी AAP ने सभी वार्डों से प्रत्याशी उतारे और चुनावी मैदान में ताल ठौकी पर वहां भी AAP को 2 फीसदी से कम वोट ही मिल पाए।  52 लाख से ज्यादा मतदाताओं वाले हिमाचल प्रदेश में अभी तक आम आदमी पार्टी के मात्र 2.25 लाख सदस्य ही हैं। आम आदमी पार्टी अभी तक हिमाचल के लोगों का व्यापक सपोर्ट सदस्यता के तौर पर पाने में नाकाम रही है। अब पंजाब की जीत के बाद पार्टी में सदस्यता  की तेजी आ सकती है।

हिमाचल प्रदेश में सियासी समीकरण बिगाड़ेगी AAP

राजनीतिक पंडितों के मुताबिक AAP यदि हिमाचल प्रदेश की सभी 68 सीटों पर चुनाव लड़ती है तो सियासी समीकरण बिगाड़ सकती है। कांग्रेस-भाजपा दोनों दलों को इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है। खासकर कांग्रेस खुद AAP के चुनाव लड़ने से होने वाले नुकसान को लेकर ज्यादा सतर्क है। वहीं पिछले दो सप्ताह में AAP में शामिल हुए अधिकांश लोग कांग्रेस पृष्ठभूमि के हैं।

पार्टी का भविष्य 6 अप्रैल की रैली से होगा तय 

अगर AAP हिमाचल में पूरी ऊर्जा के साथ चुनाव लड़ती है तो सत्ता विरोधी लहर के फायदे से उसके अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद की जा सकती है। पहाड़ पर AAP की सियासत किस करवट बैठती है इसका अंदाजा 6 अप्रैल को मंडी में पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल और पंजाब के CM भगवंत मान के रोड शो से ही हो जाएगा।

हिमाचल में पहाड़ चढ़ने में AAP अभी तक रही हैं नाकाम

देवभूमि के लोग इससे पहले कई चुनावों में तीसरे विकल्प को नकार चुके हैं। प्रदेश में अब तक समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी, शिव सेना, राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी, जनता दल, लोक जनशक्ति पार्टी, माकपा, भाकपा, हिमाचल विकास दल, हिमाचल विकास कांग्रेस, हिमाचल लोकहित पार्टी ने अपने आप को तीसरे विकल्प के रूप में चुनाव मैदान में उतारा है। पूर्व केंद्रीय मंत्री पंडित सुखराम और पूर्व मुख्यमंत्री रामलाल ठाकुर जैसे धाकड़ नेताओं की पार्टियां चमत्कार नहीं कर पाईं। अभी तक प्रदेश में तीसरे विकल्प के रूप में किसी भी दल को पहाड़ की सियासत रास नहीं आई है।

 

 

 

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