क्या गुल खिलाएंगे चांद पर थूकने वाले कांग्रेसी! निशिकांत ठाकुर

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03 /09 /2022

क्या गुल खिलाएंगे चांद पर थूकने वाले कांग्रेसी!

जब जहाज डूबने लगता है तो सबसे पहले चूहे भागना शूरू करते हैं। यह कहावत आजकल कांग्रेस पार्टी पर पूरी तरह चरितार्थ हो रही है। जब कांग्रेस ‘कामधेनु’ थी, तो उसके आसपास मंडराने वालों की भीड़ लगी रहती थी, लेकिन इधर कुछ वर्षों से उसकी राजनीतिक स्थिति क्या डावांडोल हुई, उसके तथाकथित मतलबपरस्त नेता ही शीर्ष नेतृत्व पर पार्टी को न संभालने का आरोप मढ़कर किनारा करना शुरू कर दिया। तथाकथित बड़े-बड़े नेताओं का कांग्रेस से ‘पलायन’ शायद कुछ लोगों को अच्छा लगे, लेकिन सच यह है कि इस तरह की प्रवृत्ति देश के विकास को कहां अवरुद्ध कर देगी, इस पर गहन चिंतन करने की जरूरत है। यह ठीक है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी आज बीच समुद्र में बिना पतवार के हिलते-डुलते डूबने की स्थिति में नजर आ रही है (हालांकि ऐसा सोचना दिवास्वप्न ही होगा), लेकिन यह स्थिति आई क्यों, इस पर देश के बुद्धिजीवियों को गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।

पचास वर्ष तक इस पार्टी के लिए त्याग किया

यहां एक बात जो समझ में नहीं आती, वह यह कि जब कोई कांग्रेस से इस्तीफा देता है तो गांधी परिवार पर ही क्यों आरोप लगाकर पीठ दिखाता है? उनका कहना होता है कि उन्होंने पचास वर्ष तक इस पार्टी के लिए त्याग किया है, इसे खून-पसीने से सींचा है, और भी न जाने क्या-क्या किया है, लेकिन पार्टी ने, और विशेष रूप से गांधी परिवार ने उन्हें अपमानित किया और उचित सम्मान नहीं दिया? यह तो बेवकूफाना तर्कों की हद हो गई। समझ में यह बात भी नहीं आई कि पचास वर्ष तक आप पार्टी में अपने लिए वह जगह नहीं बना सके, जो गुरु द्रोणाचार्य ने बनाई थी। आप अर्जुन की ही तरह आज्ञाकारी शिष्य बनकर अपनी राजनीति करते रहे? उम्र के आखिरी पड़ाव पर आपको दिव्यज्ञान की प्राप्ति होती है और आप पिछला इतिहास भूलकर आरोप लगाने के घटिया खेल में शामिल हो जाते हैं। इन प्रश्नों का उत्तर कौन देगा कि आप गुरु द्रोणाचार्य क्यों नहीं बन सके! यह तो सरासर आपकी कमी है कि आप पार्टी के नियंता नहीं बन सके, सब सुख-समृद्धि भोगते रहे और जब उसमें कमी रह गई तो बिलबिला उठे तथा दल सहित व्यक्ति विशेष पर आरोप लगाया और पीठ दिखाकर चलते बने।

1956 में कांग्रेस के दिग्गज नेता सी. राजगोपालाचारी ने छोड़ी पार्टी   

कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे सी. राजगोपालाचारी ने वर्ष 1956 में पार्टी छोड़ दी। बताया जाता है कि तमिलनाडु में कांग्रेस नेतृत्व से विवाद होने के बाद उन्होंने अलग होने का फैसला लिया था। रोजगोपालाचारी ने पार्टी छोड़ने के बाद इंडियन नेशनल डेमोक्रेटिक्स कांग्रेस पार्टी की स्थापना की, जो मद्रास तक ही सीमित रही।
हालांकि, बाद में राजगोपालाचारी ने एनसी रंगा के साथ 1959 में स्वतंत्र पार्टी की स्थापना कर इंडियन नेशनल डेमोक्रेटिक्स पार्टी का उसमें विलय कर दिया। स्वतंत्र पार्टी का फोकस बिहार, राजस्थान, गुजरात, ओडिशा और मद्रास में ज्यादा था। वर्ष 1974 में स्वतंत्र पार्टी का विलय भी भारतीय क्रांति दल में हो गया था। इसके अलावा वर्ष 1964 में केएम जॉर्ज ने केरल कांग्रेस नाम से नई पार्टी का गठन किया। हालांकि, बाद में इस पार्टी से निकले नेताओं ने अपनी सात अलग-अलग पार्टियां खड़ी कर लीं। वर्ष 1966 में कांग्रेस छोड़ने वाले हरेकृष्णा मेहताब ने ओडिशा जन कांग्रेस की स्थापना की। बाद में इसका विलय जनता पार्टी में हो गया। वर्ष 2014 में भाजपा की सरकार आने के बाद से अब तक कई दिग्गज और बड़े नेता कांग्रेस का साथ छोड़ चुके हैं। एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉम्र्स की रिपोर्ट के अनुसार, 2014 और 2021 के बीच हुए चुनावों के दौरान 222 चुनावी उम्मीदवारों ने कांग्रेस पार्टी छोड़ी, जबकि 177 सांसदों और विधायकों ने पार्टी को अलविदा कहा। इसके अलावा 2016 और 2020 के बीच दलबदल करने वाले लगभग 45 प्रतिशत विधायक भाजपा में शामिल हो गए थे। ऐसे में एक नजर उन नेताओं पर डालते हैं जो वर्ष 2014 से लेकर अबतक कांग्रेस से दूरी बना चुके हैं।

परिवार पर आरोप लगाकर  नेताओं ने पार्टी से अपना नाता तोड़ा

सच तो यह है कि जिस परिवार पर आरोप लगाकर इन नेताओं ने पार्टी से अपना नाता तोड़ा है उनमें ऐसा आकर्षण या उनका व्यक्तित्व ऐसा नहीं है जो जनमानस को अपनी ओर आकर्षित कर सके। दरअसल, उस गांधी परिवार ने जिसे पानी पी-पीकर पलायन करने वाले नेता कोसते हैं, देश को तीन प्रधानमंत्री दिए जिनमें दो आतंकवादियों के हाथों असमय मार दिए गए। प. जवाहरलाल नेहरू ने आजादी की लड़ाई के दौरान अपने जीवन के कई महत्वपूर्ण वर्ष जेल में बिताए, यातनाएं सहीं। फिर महात्मा गांधी की अगुवाई में देश की आजादी में भाग लिया। इसके बाद इंदिरा गांधी और राजीव गांधी देश के लिए आतंकवादियों के हाथों मारे गए। इसलिए सारी सत्ता और जनता में इस परिवार की छवि ऐसी है कि कोई सामने आकर यह कहने के लिए तैयार नहीं है कि वह सत्ता की बागडोर किसी और को सौंपे। और, न ही किसी नेता में ऐसी हिम्मत हुई कि वह खुलकर उनका विरोध करें। हां, पार्टी छोड़ने के बाद वे मुखर जरूर हो जाते हैं और अनाप-शनाप विलाप-प्रलाप करने लगते हैं। अभी हाल ही में कांग्रेस छोड़ने वाले वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद आरोप लगाते हैं कि कांग्रेस में सुधार की बात को नेतृत्व को चुनौती के रूप में लेता है। तो क्या पचास वर्षों तक गुलाम नबी आजाद इस तथाकथित अपमान को झेलते रहे! उसी बीच वे जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री बने, पार्टी के कई उच्च पद पर रहे, केंद्रीय मंत्री भी बने, फिर उन्हे आज यह दिव्य ज्ञान कैसे प्राप्त हो गया कि अब राहुल गांधी या सोनिया गांधी इतने बुरे हो गए? यह सब गहन विचार का विषय है। अब आजाद अपनी पार्टी बनाएंगे या भाजपा के खेमें में जाएंगे, यह सब अभी स्पष्ट नही है। वैसे, उन्होंने नई पार्टी बनाने का एलान किया है। ऐसा हुआ तो यह 65वां मौका होगा, जब कोई कांग्रेस छोड़कर नए राजनीतिक दल का गठन करेगा। वर्ष 1885 में पार्टी की स्थापना हुई। तब से अब तक कांग्रेस ने 64 ऐसे बड़े मौके देखे, जब कांग्रेस छोड़ने के बाद नेताओं ने अपनी पार्टी बनाई। वर्ष 1969 में तो कांग्रेस के दिग्गज नेताओं ने इंदिरा गांधी को ही पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था। तब इंदिरा ने भी अलग कांग्रेस बना ली थी।

पार्टी का गठन अंग्रेज अधिकारी एओ ह्यूम ने सन् 1885 में किया था

यह ठीक है कि इस पार्टी का गठन भारत में कार्यरत एक अंग्रेज अधिकारी एओ ह्यूम ने सन् 1885 में किया था, लेकिन उस काल में भी उस पार्टी में शीर्ष नेतृत्व तो उस समय के देश को राष्ट्रीय फलक पर ले जाने वाले दादाभाई नौरोजी, दिनशा वाचा आदि भारतीय ही तो थे। उद्देश्य था सन् 1857 वाली स्थिति देश में फिर न आने पाए। ऐसे पुराने, गुणी और क्रांतिकारी लोगों से बनी एक पार्टी को स्वहित के लिए कुछ नेताओं द्वारा कीचड़ उछालकर छोड़ देने से कांग्रेस हिल जाएगी, यह सोचकर ही देश के भविष्य पर खतरे के बादल मंडराते नजर आते हैं। वैसे, ऐसा बार-बार इस पार्टी के साथ होता रहा है, लेकिन हर बार वह गिरकर संभल जाती है और देशसेवा में नए आयाम स्थापित करती है। इस बार भी कुछ अच्छा ही होगा, इसकी उम्मीद की जानी चाहिए। अब देखना यह है कि पार्टी छोड़ देने के बाद गुलाम नबी आजाद क्या करिश्मा दिखाते हैं जिससे उनका मान-सम्मान बढ़ जाएगा। हां, राज्यसभा से रिटायर होते समय उनका जो झुकाव भाजपा के प्रति दिखा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनकी जो तारीफ की, वह तो यही दर्शा रहा था कि उनका अंदरखाने भाजपा के साथ साठ-गांठ है, जिसका कार्यान्वयन कब तक होता है, अब यही देखना बाकी है। वह सच में नया किसी और दल के साथ राष्ट्रीय राजनीति से अलग अपनी पार्टी बनाकर कांग्रेस से अपने कथित अपमान का खुन्नस निकालते हैं या फिर वापस जम्मू-कश्मीर की राजनीति में अपना हाथ आजमाते हैं, यह तो भविष्य ही बताएगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक है)
mail id: editorshuklpaksh@gmail.com
mobile: +91 9810053283

 

 

 

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