
संघर्ष हमेशा परिवर्तन एवं सुधार हेतु किया जाता है। जरूरी नहीं है कि संघर्ष विध्वंसात्मक हो, न्यायोचित लक्ष्य की पूर्ति के लिए भी कभी कभी संघर्ष अनिवार्य हो जाता है। पिछले 15 वर्षों से केंद्रीय सशस्त्र पुलिस के भूतपूर्व जवान अपने हकों और मांगों को लेकर संघर्षरत,आंदोलनरत हैं। चाहे वीआईपी सुरक्षा की बात हो, आंतरिक सुरक्षा के हालात हों जिन्हें स्थानीय पुलिस संभाल ना पा रही हो, बाढ़ हो, आपदा हो या फिर आतंकवाद-नक्सलवाद से लड़ाई का मसला हो, चुनावी ड्यूटी हो, राष्ट्रपति भवन, संसद भवन की सुरक्षा की बात हो,परमाणु प्रक्षेपण स्थल,बंदरगाहों ,सभी हवाई अड्डों, तेल रिफाइनरियों और लगभग सभी महत्वपूर्ण और संवेदनशील ठिकानों को रक्षा आवरण देने की बात हो हर जगह केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के अफसर और जवान मुस्तेद मिलेंगे। केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के अफसरों, जवानों पर 15 से 18 घंटे काम का दबाव रहता है। यह दबाव इतना है कि अकेले 2010 से 2013 की अवधि में ही 47,000 से ज्यादा जवान स्वैच्छिक समयपूर्व सेवानिवृति ले चुके हैं। इतना ही नहीं गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार बीएसएफ में स्वीकृत कुल 5309 असिस्टेंट कमांडेंट के पदों में से 522 पद खाली पड़े हैं। जबकि 2017 में बीएसएफ में असिस्टेंट कमांडेंट पदों के लिए सिलेक्ट 28 में से 16 यानी 57 फ़ीसदी युवाओं ने सिलेक्ट होने के बावज़ूद नौकरी लेने से इनकार कर दिया था। पिछले कुछ समय से देखने में आ रहा है कि मुश्किल हालात में नौकरी ऊपर से कम तनख्वाह और सुविधाओं के चलते केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों में नौकरी के प्रति आकर्षण कम हुआ है। इन बलों के अफसर और जवान निरंतर आतंकवाद विरोधी अभियानों में सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलते हैं और भारतीय सशस्त्र सेनाओं के शहीद 25,942 के मुकाबले इन बलों के 31,895 अधिकारियों और जवानों ने अपनी शहादतें कुर्बानियां दी हैं और भारत की सीमाओं की रखवाली एवं सुरक्षा के लिए केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के जवान 24 घंटे अविरल चौकस ड्यूटी देते हुए मिल जाएंगे। संयुक्त राष्ट्र संघ शांति अभियानों में इन बलों ने बेहतरीन सेवाएं देकर देश का मान बढ़ाया है तो वहीं वीरता, खेलों एवं सिविल अवार्ड्स भी बड़ी संख्या में अर्जित किये हैं और इन पदकों की कुल तादात 4667 है।
वर्तमान समय में सीआरपीएफ, आईटीबीपी, एसएसबी, सीआईएसफ, बीएसएफ, एनएसजी ,एनडीआरएफ और सशस्त्र सीमा बल केंद्रीय सशस्त्र बलों के संगठन का हिस्सा हैं।
2017 की स्थिति के अनुसार केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की कुल स्वीकृत संख्या 1078514 थी जिसमें से 158591 पद अर्थात 15 फ़ीसदी खाली थे। ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट की रिपोर्ट के अनुसार घटिया सामाजिक परिवेश,प्रमोशन की कम संभावनाएं,अधिक काम, निरंतर गश्त और बढ़ते ड्यूटी के घंटे, तनावग्रस्त माहौल में ड्यूटी देना, कम वेतन भत्ते तथा मामूली पेंशन, छुट्टी मिलने में अड़चनें, घटिया खाना अकेलापन, सीनियर्स द्वारा प्रताड़ना के कारण इन बलों के जवानों का मनोबल गिरा है। इनकी नेचर आफ ड्यूटी बिल्कुल अलग होने के बावजूद इन्हें वेतन भत्तों और पेंशन के मामले में भी केंद्र सरकार के सिविलियन कर्मचारियों के समक्ष रखकर इनके साथ घोर अन्याय किया जा रहा है। ऊपर से 01 जनवरी 2004 से इन बलों के अफसरों और जवानों को न्यू पेंशन स्कीम में लाकर रही सही कसर भी पूरी कर दी गई है ? यह घोर विडंबना है कि इन बलों के डीआईजी तथा ऊपर के रेंक के ऑफिसर आईपीएस कैडर के होते हैं जबकि जवानों और निचले स्तर के अफसरों के अलावा असिस्टेंट कमांडेंट पद पर इन बलों से ही भर्ती की जाती है। सीधे असिस्टेंट कमांडेंट भर्ती अफ़सर भी डीआईजी के पद से ऊपर नहीं जा पाते हैं क्योंकि उससे ऊपर के पदों पर आईपीएस अधिकारियों का कब्जा है। जिन्हें इन बलों को पेश आने वाली परेशानियों का ज़्यादा ज्ञान नहीं होता है। भूतपूर्व केंद्रीय पेरामिलिट्री फोर्स संगठन की मांग है कि कार्य संस्कृति के हिसाब से केंद्र सरकार में पैरामिलिट्री बलों का अलग से मंत्रालय बनाया जाना चाहिए वहीं डीआईजी, अपर महानिदेशक और महानिदेशक रैंक तक के पदों पर पदोन्नति भी सेना की तर्ज पर इन्हीं बलों के मूल कैडर से और असिस्टें
कमांडेंट से लेकर महानिदेशक पद तक होनी चाहिए।
हिमाचल प्रदेश भूतपूर्व सेंट्रल पेरामिलिट्री फोर्स संगठन ने प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में कुछ मांगें उठाई हैं जैसे पूर्व केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों को भी वन रैंक वन पेंशन का लाभ दिया जाए। पैरामिलिट्री स्पेशल पे दी जाए, सेना की ECHS की तर्ज पर मुफ्त चिकित्सा स्वास्थ्य सुविधाएं दी जाएं और भूतपूर्व सैनिकों का दर्जा मिले, हिमाचल प्रदेश की सरकारी नौकरियों में आरक्षण दिया जाए, इन बलों की भर्तियों में हिमाचली कोटे को बढ़ाया जाए ताकि ज्यादा से ज्यादा युवाओं को इन बलों में नौकरी मिल सके। एनपीए के स्थान पर पुरानी पेंशन प्रणाली को लागू किया जाए। केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के लिए अलग मंत्रालय बनाया जाए। हिमाचल प्रदेश के हर जिले में सीजीएचएस का एक क्लीनिक खोला जाए। इस समय जिला कांगड़ा में ही केंद्रीय अर्धसैनिक बलों और केंद्रीय कर्मचारियों की संख्या लगभग 30,000 के आसपास है। इन्हें निकटवर्ती स्थानों पर सीएसडी एवं स्वास्थ्य सुविधाएं मिलनी चाहिए। हिमाचल सरकार द्वारा 24 जुलाई 2017 को जारी नोटिफिकेशन के अनुसार पूर्व केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के सदस्यों के कल्याणार्थ एक बोर्ड का गठन किया गया है। हिमाचल प्रदेश पैरामिलिट्री वेलफेयर एसोसिएशन ने प्रदेश सरकार द्वारा शहीद पैरामिलिट्री फोर्स के आश्रितों को योग्यता के आधार पर हिमाचल प्रदेश में सरकारी नौकरी देने के फैसले का स्वागत किया है।

यह वक्त का तकाजा है कि केंद्र सरकार पहले यह तय करे कि सशस्त्र अर्धसैनिक बल के जवान एव अधिकारी मात्र केंद्रीय कर्मचारी हैं या सशस्त्र लड़ाके जो देश की सेवा में दिन रात एक करते हुए अपने प्राणों की आहुति देते हैं। यह समानता के अधिकार के कतई विपरीत है क्योंकि कर्तव्य ड्यूटी के लिहाज से इन बलों के कर्मचारी 24 घंटे ड्यूटी देते हैं जबकि इनके समकक्ष सिविलियन कर्मचारी केवल 8 घंटे की ड्यूटी देते हैं और वीकएंड का फायदा लेते हुए अपने परिवारों संग रहते हैं। जबकि सशस्त्र बलों के अधिकारियों तथा जवानों को दुर्गम सीमांत क्षेत्रों में प्रतिकूल परिस्थितियों में समर्पण के साथ अपनी सेवाएं देनी होती हैं ताकि राष्ट्र की सम्प्रभुता एवं सुरक्षा अखंड रहे और देशवासी सकूं और चैन के साथ शांतिपूर्वक जीवन जी सकें। इन बलों के कर्मियों के साथ हो रहे भेदभाव के बावज़ूद इनके हौसलें बुलंद हैं और राष्ट्र सेवा में कहीं कोई कोताही नहीं दिखती फिर क्यों नहीं केंद्र सरकार इनके साथ न्याय करते हुए इनको दिये जाने वाले लाभों यथा वेतन-भत्तों, पुरानी पेंशन, सुविधायुक्त कैम्प, बेहतर लाइफ स्टाइल, सेवाकाल और सेवानिवृति के बाद सुंदर स्वास्थ्य सुविधाएं तथा सम्मानजनक पेंशन आदि देकर इनकी सेवाओं के लिए इनका सम्मान करती है ? आशा है कि केंद्र सरकार प्राथमिकता के आधार पर केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों की नौकरी को आकर्षक एवं सुविधाओं से परिपूर्ण बनाने के उपायों पर गौर फर्मायेगी ताकि इन पुलिस बलों के माध्यम से राष्ट्र सेवा करने वाले अधिकारियों और जवानों का मनोबल ऊंचा रहे और वे दुश्मन को मुंहतोड़ ज़वाब देकर राष्ट्र की आन बान और शान को अक्षुण्ण बनाए रखें। वर्ना लम्बे इंतजार के बाद इन सशस्त्र बलों के कर्मियों के दिलों से कवि शिवओम अंबर के लिखे यही अल्फाज़ निकलेंगे- ‘राजभवनों की तरफ़ न जायें फरियादें पत्थरों के पास अभ्यंतर नहीं होता ये सियासत की तवायफ़ का दुपट्टा है ये किसी के आंसुओं से तर नहीं होता ॥’